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BJP–PDP गठबंधन: बेमेल जोड़ी चल भी जाये पर बेमुरव्वत जोड़ी कब तक चलती!

2014 में जब PDP ने BJP से गठबंधन कर जम्मू और कश्मीर में सरकार बनाई उस वक्त एक डॉक्टर मित्र, जो आरएसएस के दिल्ली के सेन्टर में अक्सर हाजरी देने जाते थे, उन्होंने मिलते ही कहा था – “कश्मीर भी अब फतह कर लिया हमने”! बात तो मज़ाकिया लहज़े में कही, पर पूरा मज़ा लेते हुए 3 से 4 बार ये बात जब बार-बार कही तो लगा, कहीं ना कहीं मुसलमान होने की वजह से मुझसे कुछ ज़्यादा ही कटुता भरे स्वर में बात की जा रही है।

जम्मू और कश्मीर भारत का अखंड हिस्सा है, 2014 से नहीं बल्कि 1947 से, इस बात पर भारत के किसी भी वासी को कोई शक नहीं।

जब BJP के राम माधव ने प्रेस काँफ्रेंस की, BJP के गठबंधन तोड़ने के ऐलान के बाद, तब ये बात तो साफ ही हो गयी कि बेमेल जोड़ी एक बार को चल भी जाये पर बेमुरव्वत जोड़ी कब तक चलती! 

हालांकि राम माधव प्रेस काँफ्रेंस में कुछ ऐसा कह गए जो उनकी पार्टी की साम्प्रदायिक राजनीति में एक और पैंतरा जोड़ गया 2019 के लिए।

उनका जम्मू और लद्दाख के बारे में अलग से बात करना और ये कहना कि विकास के मामले में जम्मू के साथ भेदभाव हुआ बेहद ही घटिया दर्जे की राजनीति थी, वो इसलिए क्योंकि BJP खुद सरकार में बराबर की भागीदार थी। अगर राम माधव और BJP को ये लगता है कि जम्मू के साथ भेदभाव हुआ तो ज़िम्मेदार अकेले PDP और मेहबूबा मुफ्ती ही कैसे हुई? BJP भी बराबर की ज़िम्मेदार हुई (अगर सच मे जम्मू के साथ भेदभाव हुआ है तो!)।

इस वाक्य को अगर फिर से पढ़ा जाए तो मायने ये है कि जम्मू और कश्मीर में विकास तो हुआ पर बस कश्मीर में हुआ, जम्मू में नही। क्या इस वाक्य में थोड़ी भी सच्चाई है? क्या कश्मीर घाटी की हिंसा, मार काट, गोला बारी, पत्थरबाजी, हत्याएं, बंद, बेरोज़गारी, रेप, अत्याचार, जवानों का मरना विकास है?? अगर हां तब तो जम्मू को शुक्र मनना चाहिए की ऐसा विकास वहां नही हुआ!

जम्मू हिन्दू बहुल हिस्सा है और कश्मीर मुस्लिम बहुल। जम्मू की हिन्दू धर्म बहुल आबादी के कंधे पर बंदूक रख कर BJP ने अपना वोट बैंक का बुलेट खूब चलाने की कोशिश की। c

जम्मू की हिन्दू आबादी को अपना निशाना बना कर, जब-जब मौका मिला BJP-RSS की बंटी-बबली जोड़ी ने खूब उत्पात मचाया।

हिजबुल मुजाहिदीन के बुरहान वानी की मौत के बाद जो हिंसा हुई, पेलेट गन से लोग अंधे हुए और कईयों की जाने गयी वो लॉ एंड आर्डर फेलियर का ही नज़ारा था। 2016 में NIT श्रीनगर में, इंडिया – वेस्ट इंडीज़ मैच में इंडिया के हार का ‘कथित’ सेलिब्रेशन पर जो बाहरी छात्रों ने बवाल किया और आरएसएस ने उसको देहद्रोह से जोड़ कर हवा दी और हिंसा का साथ दिया, वो BJP पार्टी की साम्प्रदायिक राजनीति का पैतरा ही नहीं बल्कि आगे आने वाले मुद्दों और ड्रामों की झलक भर थी। राजस्थान और पंजाब में कश्मीरी विद्यार्थितों के साथ हिंसा इसी मुद्दे को ले कर की गई।

जब स्कूल जाने वाली 14-15 साल की लड़कियों ने सड़क पर उतर कर पत्थरबाज़ी की, तब उस नज़ारे की फोटो खूब वायरल हुई। बस उस एक तस्वीर भर से कश्मीर के हालात को खूब समझा जा सकता है। मेजर गोगोई ने जब जीप पर एक कश्मीरी युवक को बांध कर आर्मी की जीप चलवाई तब भी बहुत ही हैरतअंगेज़ करने वाली तस्वीर सामने आई थी। आर्मी के मेजर का ऐसा बर्ताव बहुतों को सही लगा, और बहुतों को आर्मी की प्रतिष्ठा के नामुनासिब भी लगा।

फिर सबसे झकझोर देने वाली घटना कठुआ में हुई। बच्ची के साथ कई दिनों तक मंदिर में बलात्कार और फिर हत्या! ये बलात्कार सिर्फ बलात्कार नहीं बल्कि साम्प्रदायिक बलात्कार था। आसिफा बानो का बलात्कार उसके धर्म की वजह से किया गया।

जम्मू बार एसोसिएशन ने उस वक्त वकालत प्रोफेशन और वकीलों की गरिमा तार-तार कर दी थी, जब बलात्कारियों के समर्थन में उतर आए थे। कुछ स्थानीय हिंदुओं ने मार्च निकाल कर जब बलात्कारियों को बचाने की कोशिश के तहत CBI जांच की मांग की, तब उस मार्च में भी BJP के दो नेताओं का आना बस की शर्मनाक ही नहीं था, बल्कि BJP-RSS की साम्प्रदायिक राजनीति का सबसे निचला स्तर था।

कठुआ का गुस्सा अभी ठंडा ही हुआ था कि खबर आई पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या की।राम माधव ने अपनी प्रेस वार्ता में इस मुद्दे को बार बार उठाया। वो इस तरह बात कर रहे थे मानो शुजात बुखारी की मौत के वक्त BJP सरकार में नही थी! वो इस बात से बस पलड़ा झाड़ रहे थे अपनी सरकार की नाकामी छुपाने।

राम माधव की प्रेस वार्ता और कुछ नही बस BJP की जम्मू और कश्मीर में सरकार की तौर पर नाकामी और साम्प्रदायिक राजनीति का आखिरी फल था।

BJP ने फ्रिंज ग्रुप्स को जम्मू में शह दी, कश्मीर में आम लोगों के प्रति हिंसा और घाटी में बेरोज़गारी, कमज़ोर व्यवस्था और कश्मीरी युवा लड़के-लड़कियों में अलगाव की भावना (alienation) को खूब बढ़ाया, बॉर्डर के हालात दिन ब दिन बिगड़ते गए। अमन का ना कोई आसार है, ना BJP इस लायक राज कर सकी की दूसरी पार्टीज़ BJP पर भरोसा कर वार्ता कर सके। BJP किसी को भी टेबल पर लाने में कामयाब नहीं रही और देश प्रेम के नाम पर लोगों के जज़्बात से खेलती रही और सरकार में होने के कर्तव्यों से किनारा करती रही। अब गठबंधन तोड़ कर BJP ने बस अपनी नाक बचाने की कोशिश भर की है। 

BJP अब ये तो अच्छे से जान ही चुकी थी कि क्रॉस बॉर्डर ऑपेरशन की शान की आड़, विलेन पाकिस्तान के नाम पर और PDP को अकेले दोषी करार दे कर वो कश्मीर के हालात ज़्यादा दिन नहीं छुपा पाएगी, ना ही अपनी शासनिक नाकामियों और पाकिस्तान के साथ अपनी ठप पड़ी फॉरेन पॉलिसी को।

BJP को इस भरम में कतई नहीं रहना चाहिए की जम्मू और कश्मीर में वो अपनी इतनी बड़ी नाकामी साम्प्रदायिक राजनीति की आड़ में छुपा सकती है।

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