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मेरी छोटी की तरह ही परीक्षाओं का रिज़ल्ट स्टूडेंट्स पर बोझ ना बन जाए

गर्मी की छुट्टियों में गांव जाने का प्लान बहुत दिनों से दिमाग में चल रहा है लेकिन पांव अभी दिल्ली के गलियारों में ठहरे हैं ।

दिल्ली में रहते हुए, 2 साल पूरे होने को हैं। अपने कमरे के आस-पास एक मकड़जाल की तरह जकड़ा हुआ। आस-पास क्या हो रहा है या मेरे ऊपर वाले फ्लोर पर कौन-कौन रहता है मैं इसकी कोई मतलब नहीं रखता था। वार्तालाप ना के बराबर थी। लेकिन पिछले कुछ दिनों से एक अलग लगाव मुझको सभी से हो गया है।

दिल्ली यूनिवर्सिटी का पेपर समाप्त होने के बाद प्रतिदिन शाम के समय छत पर जाकर आस-पास के परिवेश को देखना, ऊपर के फ्लोर से बच्चों से मिलना अब दिनचर्या में शामिल है।

बस यहीं मैं मनीषा से ज़्यादा ही घुल-मिल गया। मेरे ऊपर वाले फ्लोर पर रहने वाली तीन बहनों में मध्यम। एक रिश्ता बन गया मेरा उससे, जो पृथ्वी पर सबसे प्यारा रिश्ता कहलाता है ‘भाई-बहन’ का रिश्ता। प्यार से सब उसे “छोटी” बुलाते हैं।

इससे मैंने वादा किया था अगर तुम 85% से ज्यादा अपने बोर्ड एग्ज़ाम में लाती हो तो मैं तुम्हें अपनी तरफ से एक बढ़िया गिफ्ट दूंगा। शायद यह बात कहकर मैंने दुनिया की सबसे बड़ी गलती कर दी। मुझे यहां पर यह नहीं कहना चाहिए था कि 85% से ज्यादा। मुझे केवल परिणाम पर फोकस करना चाहिए था। खैर…

रिज़ल्ट आने से पहले ही मैं दिल्ली से बाहर चला गया और कुछ दिनों बाद वापस आया। परिणाम घोषित हो चुके थे। फिर शाम को मैं वही हाथों में इश्क का प्याला पकड़े, अपनी चाय का ग्लास झुमाते हुए छत पर गया। मैंने छोटी को बुलाया और पूछा अरे! दीदी कितना लाई?

कुछ लफ्ज़ उसके ओंठों से चिपक गए थे,बोलना चाहती तो थी लेकिन उसके गले आवाज को दबा चुके थे, आंखों में अनायास ही कुछ अश्क बह रहे थे, एकटकी उसकी निगाहें मेरे सामने झुकी हुई थी। अपने क्लास में हमेशा 1st स्थान लाने वाली लड़की, हर कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाली लड़की, अपने स्कूल में प्रसिद्ध लड़की, जिसका कभी भी शिकायत नहीं आया, वो आज अंततः कुछ बोल नहीं पाई।

रात में छोटी के पापा आये तो उन्होंने बताया कि छोटी के CBSE के 10वीं में 62% बने हैं। इतना कहकर वो दुनिया के उदाहरण देने लगे अमुक की बेटी इतना लाई है,उनकी लड़की इतना लाई है, उनकी बेटी इतनी, मैंने कहा अरे अंकल जी! इतना बहुत है मिठाई खिलाइये मुझे मेरे इस वक्तव्य से अंकल जी झुंझला उठे बोले कैसा मिठाई? इतने कम नंबर पर मिठाई कौन खिलाता है?

‘छोटी’ वहीं खड़ी सब सुन और देख रही थी, वह शायद 62% लाकर दुनिया की सबसे बड़ी गलती कर दी थी, लोग उसे अब क्या कहेंगे, वो अपने दोस्तों को कैसे बताएगी की उसका इतना नंबर है? उसका परिवार उसके नम्बरों से खुश तो हैं ही नहीं, आगे क्या करेगी?

शायद! खड़े-खड़े वह यही सोच रही थी।

उस दिन के बाद वह चंचल लड़की खामोश रहने लगी, उसको मैंने इतना समझाया कि इतना बहुत नंबर है, अनेकों उदहारण दिए लेकिन उसके पापा की बातें शायद उसे चुभ गयी थी। पूरे 10 दिन चुप रहने के बाद आज शाम को उसने मुझसे बस यही सवाल किया..

“भैया ! क्या 90% या 90% से ऊपर नम्बर लाने वालों को ही जीने का अधिकार है?”

किसी वनवास में ज़िन्दगी की निर्वहन की हकीकत शायद वो अपनी ज़िंदगी में देख रही थी।

इसी तरह लाखों परीक्षार्थियों की मनोदशा “छोटी” की तरह हो जाती है और इनका सिर्फ मकसद बन जाता है मार्क्स, केवल मार्क्स लाना। इस ज़्यादा मार्क्स के चक्कर में ये विद्यार्थी समाज से दूरी बना ले जाते हैं और एकाकीपन को अपना लेते हैं और अंततः डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं।

यहां से मेरे दिमाग में कुछ प्रश्न उठने लगे। आखिर हमारा समाज चाहता क्या है,जो बच्चे कम नंबर लाते हैं वो कुछ कर नहीं पाते क्या?  आजकल के भागमभाग ज़िंदगी में पैरेंट्स भी यही चाहते हैं कि मेरा भी बेटा या बेटी इन नम्बरों की रेस में दौड़े। सबको बस नंबर की लगी पड़ी है..

हमने शिक्षा को संस्थानों और उसकी प्रक्रियाओं के औपचारिक बंधन में इस तरह बांधने का उपक्रम किया है कि बचपन से ही शिक्षा का अर्थ 90% से ऊपर मार्क्स वालों और इससे कम या फेल होने वालों में सिमट कर रह गया है।

हमने जिस ढंग से परीक्षा के परिणाम को समझने और आंकने की व्यवस्था कर रखी है उसमें यह अजूबा स्वाभाविक है कि अच्छी-खासी संख्या में छात्र 90-95% अंक लेकर पास हो रहे हैं।

परीक्षा का परिणाम कभी कभी जीवन का अंत बन जाता है।

भारत विश्व में सबसे ज़्यादा विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या किए जाने वाले देशों में से एक है और ये मई/जून का महीना तो इसी के लिए बदनाम है। अभी हाल ही में CBSE और STATE BOARD के साथ-साथ NEET, CLAT, UPSC आदि प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणाम आये, उसके साथ-साथ आत्महत्या की खबरें भी अखबारों की सुर्खियों में आई

आखिर आजकल के अभिभावक अपने बच्चों को क्यों नहीं कहते कि बहुत अच्छे मार्क्स हैं। चिंता मत करो बस कठिन परिश्रम करते रहो। परिणाम इससे भी अच्छे आयेंगे।

अभी से ही कलियों पर हम अपने शब्द रूपी हानिकारक कीटनाशक डालेंगे तो वो कलियां फूल बनकर समाज में खुश्बू फैलाने से पहले ही मुरझा या नष्ट हो जायेंगी।

यहां मैं अपने ऊपर के वक्तव्य को दोहराना चाहूंगा कि हमें यह नहीं कहना चहिये की इतने प्रतिशत से  नम्बर ज़्यादा लाओगे तभी मैं आपको गिफ्ट मिलेगा। हमें आज सख्त ज़रूरत है कि परीक्षा के परिणामों को एक तरफ ताख पर रखकर उन परीक्षार्थियों से खुल कर बात करें, उन्हें उनकी मनपसंद का तोहफा दें। उनके साथ कहीं घूमने जायें, जिससे वो कलियां/देश के भविष्य अकेले ही ना घुट-घुट कर जीयें। उनके साथ इस तरह से व्यवहार करने से वो खुद अपने अंदर एक नये चेतना का विकास कर लेंगें और आगे से अपनी पिछली गलतियों को सुधारने की कोशिश करेंगे।

अंततः मैं यही कहूंगा कि परीक्षा का प्राप्तांक चाहे कुछ भी हो हमें अपने भाई,बहनों, अपने बच्चे और सभी स्टूडेंट के प्रति सकारात्मक होना पड़ेगा। हमें ऐसा कुछ नहीं कहना/करना चाहिए कि उनकी पनपती इच्छायें गंगा की निर्मल पानी की तरह सूख जायें।

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