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टीबी से जुड़ी 8 गलतफहमियों की असलियत

ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) भारत की गंभीरतम स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक है। इसके बावजूद जनमानस में इससे जुड़ी कई सारी गलत धारणाएं और गलतफहमियां फैली हुई हैं। इस बीमारी द्वारा बड़ी संख्या में भारतीयों को अपना शिकार बनाए जाने के बावजूद समाज में इसके मरीज़ों के साथ बड़े पैमाने पर भेदभाव किया जाता है।

यहां उन गलतफहमियों की सूची दी जा रही है, जिनमें कई लोगों को विश्वास है। लेकिन असलियत में यह भरोसा इस बीमारी से जुड़ी गलत धारणाओं पर टिका है, यानि लोग गलत बातों को सच मानते हैं। यह लेख इन्हीं गलतफहमियों की सच्चाई उजागर करता है ताकि आम लोगों की सोच बदली जा सके और यह सुनिश्चित हो सके कि समाज में टीबी मरीज़ों के साथ भेदभाव ना हो। भारत में टीबी से हर मिनट एक व्यक्ति की जान जाती है और हम तब तक इस बीमारी से नहीं लड़ सकते जब तक जनता के बीच जागरूकता में सुधार नहीं करते और इस बीमारी को पूरी तरह से नहीं समझते। और अगर ऐसा नहीं हो पाया, तो फिर टीबी बिना किसी भेदभाव के हम सभी को अपना शिकार बनाएगा।

गलतफहमी 1: टीबी का इलाज नहीं है

सच्चाईः टीबी का इलाज बिल्कुल हो सकता है। दरअसल, टीबी का इलाज तो 1950 के दशक से ही मौजूद है। अगर सही इलाज कराया जाए और पूरा उपचार लिया जाए, तो अधिकतर मरीज़ पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं और एक सामान्य जीवन भी जी सकते हैं।

दीप्ति चव्हाण, एमडीआर टीबी विजेता और मरीज़ों की समर्थक

फोटोः शम्पा कबी

गलतफहमी 2: सभी टीबी मरीज़ संक्रामक होते हैं

सच्चाईः हर प्रकार का टीबी संक्रामक नहीं होता है। टीबी शरीर में फेफड़ों के अलावा कई अन्य हिस्सों में हो सकता है, जैसे हड्डियां, रीढ़, मस्तिष्क, मूत्राशय और प्रजनन प्रणाली। इन अंगों में होने वाला टीबी संक्रामक नहीं होता। सिर्फ फेफड़ों की टीबी से ग्रसित लोगों में से एक तिहाई मरीज़ ही संक्रामक होते हैं। हालांकि, एक से दो महीने तक सही तरीके से इलाज कराने पर कई सारे मरीज़ गैर-संक्रामक भी हो जाते हैं।

सौरभ राणे, एमडीआर टीबी विजेता, डेवलपमेंट प्रोफेशनल

फोटो: प्राची गुप्ता

गलतफहमी 3: टीबी एक अनुवांशिक बीमारी है

सच्चाईः हमारे किसी भी जीन से टीबी का कोई लेना-देना नहीं होता और ना ही इसका हमारे परिवारिक इतिहास से कोई संबंध होता है। टीबी की बीमारी हवा में पैदा होने वाले बैक्टीरिया के कारण होती है, जो प्रमुख तौर पर फेफड़ों पर हमला करते हैं और किसी को भी शिकार बना सकते हैं। वास्तव में, ऐसा अनुमान है कि दुनिया की लगभग एक तिहाई आबादी टीबी बैक्टीरिया से संक्रमित है, ना कि टीबी की बीमारी से। यह भी संभव है कि इसे पढ़ते वक्त आपके शरीर में भी टीबी के बैक्टीरिया मौजूद हो सकते हैं और यह भी संभव है कि कई लोगों को कभी भी इसका पता नहीं चलेगा। यह स्थिति आपके शरीर की प्रतिरक्षण क्षमता पर निर्भर करती है, जो शक्तिशाली हो सकता है और कमज़ोर भी।

रवि, टीवी विजेता, व्यवसायी

गलतफहमी 4: टीबी की बीमारी सिर्फ गरीबों को होती है

सच्चाईः टीबी गरीब और अमीर में भेद नहीं करती और दोनों को एक समान शिकार बनाता है। असलियत यही है कि टीबी के चंगुल में कोई भी फंस सकता है, चाहे वो कितना भी अमीर क्यों ना हो। टीबी बैक्टीरिया का प्रसार हवा के ज़रिये होता है और इसलिए कोई भी इस बीमारी से हमेशा सुरक्षित नहीं रह सकता। इसलिए टीबी को सिर्फ गरीब लोगों को होने वाली बीमारी कहना गलत है।

केयुरी भानुशाली, एमडीआर टीबी विजेता एवं कॉपीराइटर

फोटोः शम्पा कबी

गलतफहमी 5: टीबी से बांझपन होता है

सच्चाईः हर प्रकार की टीबी से बांझपन नहीं होता। जैसे कि फेफड़ों की टीबी यानि पल्मनरी टीबी से किसी भी तरह बांझपन नहीं होता। लेकिन अगर टीबी बैक्टीरिया ने गर्भाशय या महिला गुप्तांगों पर हमला कर दिया है, तो इससे बांझपन का खतरा हो जाता है। अक्सर महिलाओं के साथ भेदभाव इसलिए होता है क्योंकि वो टीबी से ठीक हो चुकी होती हैं। इस भेदभाव के पीछे कोई ठोस या तथ्य आधारित कारण नहीं होता।

डेज़ी, टीबी विजेता एवं गृहणी

गलतफहमी 6: टीबी केवल एचआईवी संक्रमित मरीज़ों में मौजूद होता है

ओवैस, एचआईवी/टीबी से संक्रमित, दर्ज़ी, फोटोः सौम्या पारिख

सच्चाईः लोग अक्सर टीबी को एचआईवी से जोड़ने की भूल करते हैं। वैसे तो यह सच है कि एचआईवी पॉज़िटिव लोगों को टीबी से संक्रमित होने पर इस बीमारी का खतरा अधिक गंभीर हो जाता है; लेकिन ऐसी कई अन्य परिस्थितियां भी हैं जो शरीर की कमज़ोर प्रतिरक्षण क्षमता के कारण टीबी की बीमारी पैदा होने का प्रमाण देती हैं। जिन लोगों को डायबटीज़, किडनी की बीमारी, अंग प्रत्यारोपण, सर एवं गले का कैंसर है, या कोर्टिकोस्टेरोइड जैसे उपचार करा रहे लोग, रूमाटॉइड आर्थराइटिस या क्रोहन रोग, सिलिसोसिस जैसे विशेष उपचार कराने वाले लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर हो सकती है।

गलतफहमी 7: टीबी की पहचान सिर्फ रक्त जांच से हो सकती है

सच्चाईः टीबी की जांच के लिए रक्त जांच एक विश्वसनीय तरीका नहीं हो सकता। वर्ष

डॉ. ज़रीर उदवादिया, छाती रोग विशेषज्ञ, पीडी हिंदुजा हॉस्पिटल, मुंबई, फोटोः शम्पा कबी

2012 की शुरुआत में भारत सरकार ने टीबी संक्रमण की पहचान के लिए रक्त जांच के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि टीबी की पहचान करने के लिए रक्त जांच के नतीजे पूरी तरह सटीक नहीं होते। इसलिए, अगली बार जब आप टीबी की जांच के लिए किसी डॉक्टर के पास जाएं तो यह ध्यान रहे कि आपसे रक्त जांच के लिए न कहा जाए।

 

गलतफहमी 8: टीबी संभोग के ज़रिये फैलता है!

सच्चाई: ऐसा बिल्कुल नहीं होता! टीबी और सेक्स यानि संभोग का दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। टीबी हवा में पैदा होने वाली बीमारी है और शारीरिक द्रव्यों के ज़रिये नहीं फैलता। संभोग करने से या अपने साथी को चूमने से आपको टीबी नहीं हो सकता। हालांकि अगर आपके साथी को लगातार खांसी आ रही है तो इसकी जांच करना बेहतर होगा। साथ ही, अगर आपके जीवन साथी का टीबी का इलाज चल भी रहा है तो आप उसके साथ बेहिचक शारीरिक संबंध बना सकते हैं। नियमित इलाज करा रहा एक टीबी का मरीज़ इस बीमारी को नहीं फैलाता, खासकर संभोग के ज़रिये तो बिल्कुल नहीं!

नंदिता वेंकटेशन, एक्स्ट्रा पल्मनरी टीबी विजेता, पत्रकार

फोटोः रोहित साहा

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