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इंदिरा गांधी का एक फैसला कैसे बन गया भारतीय इतिहास का “काला दिन”

जून महीना तपती गर्मी के अलावा भारत के राजनीतिक इतिहास का भी एक यादगार दिन है। इस महीने की 25 तारीख को काले दिन के रूप में जाना जाता है, क्योंकि सन 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में निरंकुश आपातकाल की घोषणा की थी। 25 जून 1975 की शाम रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण ने विशाल जनसभा की थी, जनसभा की भारी भीड़ देखकर इंदिरा को अपनी सरकार लड़खड़ाती दिख रही थी।

देश के महामहिम राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली खान ने देर रात आपातकाल के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किया। जिसके बाद 26 जून की सुबह इंदिरा ने सभी कैबिनेट मंत्रियों की बैठक की और आपातकाल के बारे में बताया। बैठक में मौजूद गृहसचिव खुराना ने सभी को घोषणा पत्र सुनाया उसके बाद गृह राज्यमंत्री ओम मेहता ने सभी मंत्रियों को आंतरिक आपातकाल के संदर्भ में समझाया।

मंत्रिमंडल के लगभग सभी मंत्रियों ने इंदिरा के इस फैसले का समर्थन किया, लेकिन स्वर्ण सिंह ने इसका विरोध किया, हालांकि इंदिरा ने उन्हें चुप करा दिया। जिसके बाद इंदिरा ने आपातकाल की घोषणा करते हुए आकाशवाणी पर कहा,

भाईयों और बहनों राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है। इससे आंतकित होने की कोई आवश्यकता नहीं हैं।

आपातकाल का विरोध करने वाले अनेक राजनेताओं को हिरासत मे बंद कर दिया गया था। जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मोरारजी देसाई, लालू प्रसाद यादव, चरण सिंह, नीतीश कुमार, मधु दंडवते आदि तमाम नेताओं ने विरोध आपातकाल का विरोध किया था। इंदिरा सरकार ने आरएसएस के तत्कालिन सरसंघचालक बालासाहब देवरस, वेकैंया नायडू, अरूण जेटली, रामविलास पासवान, प्रकाश जावड़ेकर, और वर्तमान पीएम मोदी को भी न्यायिक हिरासत में भेजा।

आपातकाल के दौरान इंदिरा सरकार ने सभी मीडिया व समाचार पत्रों के प्रकाशन पर रोक लगा दी थी। इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी ने पुरूषों की जबरन नसबंदी कराई। इस दौरान संविधान की धारा 21 तक निलंबित कर दी गई, जिसमें हर नागरिक को जीवन जीने का अधिकार था।

बड़ी हैरानी की बात है कि जिनके पिता जवाहर लाल नेहरू ने संविधान का दीपक जलाकर देश को रौशन किया था। उन्हीं की बेटी ने उस दीपक को अपनी तानाशाही के चलते बुझा दिया।

देश के लोकतंत्र को मानों कठपुतली की तरह नचाया जा रहा हो। आपातकाल के खलनायक संजय गांधी ने अपनी मां की सत्ता का दुरूप्रयोग कर देश के कानून पर घातक हमला किया। उस दौरान तो मानों देश की जनता को सांस लेने के लिए भी इंदिरा की अनुमति चाहिए थी। खत्म होती मानवता और न्यायिकता के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले हज़ारों राजनीतिज्ञों को मीसा एक्ट के तहत हिरासत में भेज दिया गया। लोकतंत्र इंदिरा और संजय गांधी का बंधक बन गया था। 19 महीने चली इंदिरा की तानाशाही के बाद 18 जनवरी 1977 को इंदिरा ने आपातकाल को खत्म करने का निर्णय लिया और सभी राजनेताओं को जेल से रिहा कर देश में चुनाव कराया।

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