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संतोष आनंद: मध्यमवर्गीय संवेदनाओं की बात करने वाले गीतकार

गीतकार संतोष आनंद ने अपना फिल्मी सफरनामा अभिनेता मनोज कुमार की सन 1970 में रिलीज़ हुई हिट फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ से शुरू की थी। फिल्म में युवा संतोष को कल्याण जी आनंद जी के संगीत निर्देशन में एक अच्छा मंच मिला। इससे उन्हें और भी जाने-माने संगीतकारों के साथ सुर-ताल मिलाने का अवसर मिला। इस कड़ी में सन 1974 में रिलीज़ और लक्ष्मीकांत प्यारे लाल के संगीत से सुसज्जित ‘रोटी कपड़ा और मकान’ के गीत संतोष जी ने लिखे। पूरब और पश्चिम के बाद मनोज कुमार ने एक बार फिर संतोष आनंद पर भरोसा किया।

‘रोटी कपड़ा और मकान’ के लिए गीत लिखकर संतोष ‘फिल्मफेयर’ पुरस्कार की स्वर्णिम परम्परा एवं परिवार का हिस्सा बने। फिल्म के गीत ‘मैं ना भूलूंगा इन रस्मों’ के लिए 1974 का बेस्ट गीत पुरस्कार मिला। मनोज कुमार ने इस प्रतिभावान गीतकार को अपने प्रोडक्शन की और भी फिल्मों जैसे क्रांति, शोर और प्यासा सावन में भी काम किया।

सन 1981 मे रिलीज़ हुई क्रांति से संतोष एक बार फिर रजत पटल पर सितारा बने। इसी समय निर्देशक राज कपूर की फिल्म ‘प्रेम रोग’ निर्मित हो रही थी। शैलेन्द्र को गुज़रे कई वर्ष हो गए थे। ऐसे में राज जी को गीतकार की ज़रूरत पड़ी जो उनके लिए गीत लिखे। राज कपूर संतोष आनंद के गानों से बहुत प्रभावित थे। राज जी ने संतोष को इस फिल्म के लिए गीत लिखने को कहा। लक्ष्मीकांत प्यारे लाल के साथ संतोष ने एक बार फिर कलम का जादू बिखेरा और ‘मुहब्बत है क्या चीज़, हम को बताओ’ के लिए 1982 का फिल्मफेयर पुरस्कार ले गए।

संतोष आनंद के शब्दों से सजे कुछ बेहतरीन गीत-

तेरा साथ है तो ( प्यासा सावन )

तेरा साथ है तो, मुझे क्या कमी है

अंधेरों से भी मिल रही रौशनी है

कुछ भी नहीं तो कोई गम नहीं

हर एक बेबसी बन गई चांदनी है

 

टूटी है कस्ती तेज़ है धारा

कभी ना कभी तो मिलेगा किनारा

बही जा रही यह समय की नदी है

इसे पार करने की आशा जगी है

 

हर इक मुश्किल सरल लग रही है

मुझे झोपड़ी भी महल लग रही है

इन आंखों में माना नमी ही नमी है

मगर इस नमी पर ही दुनिया थमी है

 

मेरे साथ तुम मुस्कुरा के तो देखो

उदासी का बादल हटा के तो देखो

कभी है यह आंसू कभी यह हंसी है

मेरे हमसफर बस यही ज़िन्दगी है।

संतोष आनंद ने जिस किस्म के गीत लिखा, उनमें तात्कालीन सिनेमा और समाज की एक खास समझ दिखाई देती है। प्यासा सावन के लोकप्रिय गीत ‘तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी’ में संतोष जी ने ज़िन्दगी को आशा, उल्लास, हिम्मत और सादगी के साथ जीने की प्रेरणा दी है। गीत में जीवन साथी के महत्त्व को भी बड़ी सादगी के साथ दर्शाया गया है, किसी का साथ आदमी को हर मुश्किल से लड़कर निकलने का हौसला देता है। आशावादी पंक्तियों में ‘हर एक मुश्किल सरल लग रही है, झोपड़ी भी महल लग रही है’ और कभी है यह आंसू कभी यह हंसी, मेरे हमसफर बस यही ज़िन्दगी है’ सर्वाधिक आकर्षित करती है।

इस गीत को सुनकर जीवन की व्यापकता का अनुभव होता है। मध्यम वर्गीय पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन को सुन्दर बनाने में यह गीत जादुई भुमिका अदा कर सकता है। गीत को ‘गरीबी, लाचारी, तकलीफ, मनमुटाव और जीवन परीक्षा  से लड़कर सहयोग, रचनात्मकता, निर्माण, आशा के साथ विजयी होने के लिए सुनना चाहिए।

संतोष आनंद इस गीत में ‘मध्यम’ वर्गीय आकांक्षाओं को ‘सरल जीवन उच्च विचार’ की शक्ति बता रहे हैं। गीत में इस बात को बड़े ही बेबाक ढंग से कहा जा रहा है कि जीवन को खुशी-खुशी जीने के लिए ‘सुविधाओं’ की नहीं अपितु प्रेम और विश्वास की ज़रूरत है। जीवन की हर परीक्षा को उत्साह, सहयोग एवं मनोबल की सहायता से पास किया जा सकता है। ‘अंधेरों से भी मिल रही रौशनी’ का जज़्बा लेकर हम हर बाधा को ‘मील का पत्थर’ बना सकते हैं। इस तरह से बाधाओं को भी ‘सकारात्मक’ होकर अपनाने से भविष्य की राहें सरल हो जाती हैं।

मैं ना भूलूंगा (रोटी कपड़ा और मकान)

मैं ना भूलूंगा

मैं ना भूलूंगी

इन रस्मों को इन कसमों को, इन रिश्ते-नातों को

 

चलो जग को भूले, ख्यालों मे झूले

बहारों में डोले, सितारों को छू ले

आ तेरी मैं मांग संवारू तू दूल्हन बन जाए

मांग से जो दूल्हन का रिश्ता मैं ना भूलूंगी।

 

समय की धारा में उमर बह जानी है

जो घड़ी जी लेंगे वही रह जानी है

मैं बन जाऊं सांस आखरी, तू जीवन बन जा

जीवन से सांसों का रिश्ता मैं ना भूलूंगी

 

बरसात सावन हो, महकता आंगन हो

कभी दिल दूल्हा हो, कभी दिल दूल्हन हो,

गगन बनकर झूमे, पवन बनकर घूमे

चलो राह मोड़े, कभी ना संग छोड़े

तरस चख जाना है, नज़र चख जाना है

 

कहीं पे छुप जाना है, नज़र नहीं आना है

कहीं पे बस जाएंगे, यह दिन कट जाएंगे

अरे क्या बात चली, वो देखो रात ढली

ये बातें चलती रहें, यह राते ढलती रहें।

 

मैं मन को मंदिर कर डालूं, तू पूजन बन जा

मंदिर से पूजा का रिश्ता मैं ना भूलूंगी।

मै ना भूलूंगा ,मै ना भूलूंगी।

मनोज कुमार की फिल्म ‘रोटी कपड़ा और मकान’ का गीत ‘मैं ना भूलूंगा’ हिन्दी सिने संगीत इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण गीत कहा जा सकता है। गीतकार संतोष आनंद के सिने करियर में भी यह गीत मील के पत्थर के रूप में देखा जाता है। इस गीत पर उन्हें ना केवल करियर का पहला ‘फिल्मफेयर’ पुरस्कार मिला अपितु इस गीत के साथ उनकी ख्याति एक ‘समर्थवान’ गीतकार के रूप में हुई। इस गीत को सुनकर राजकपूर जैसे फिल्मकार ने संतोष जी को आर के बैनर की फिल्मों के लिए गीत लिखने के लिए बुलाया। यदि श्रोता गीत का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि जीवन को ‘वर्त्तमान’ में जीने को कहा गया है। ‘समय’ सदैव गतिशील रहा है, मानव-जीवन समय की गति से बंधा हुआ है। जीवन को ‘उत्साह’ के साथ जीकर इसे सफल बनाया जा सकता है। जीवन के सफर में आदमी अनेक लोगों से मिलता है, मेल-मिलाप से ‘सम्बंध’ और एक ‘रिश्ता’ बनता है। रिश्ते को ‘नाम’ देकर उसके नाम की ना जाने कितनी ‘कसमें’ ली जाती हैं, वादा लिया जाता है कि ‘एक दूसरे को याद रखेंगे’।

गीत को उत्साह से बढ़ाते हुए गीतकार सफर की हर मुश्किल को अदम्य रचनात्मकता एवं उत्साह के साथ जीने की राह बता रहे हैं। वह कह रहें कि ‘गगन बनकर झूमे, पवन बनकर झूमे’ क्योंकि उत्साह, उमंग और रचनात्मकता में बीते दिन पलक झपकते बीत जाते हैं, उदासी और आलस्य में दिन काटना पहाड़ हो जाता है।

एक प्यार का नगमा है (शोर)

एक प्यार का नग़मा है, मौजों की रवानी है

ज़िंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है

 

कुछ पाकर खोना है, कुछ खोकर पाना है

जीवन का मतलब तो, आना और जाना है

दो पल के जीवन से, एक उम्र चुरानी है

ज़िंदगी और…

 

तू धार है नदिया की, मैं तेरा किनारा हूं

तू मेरा सहारा है, मैं तेरा सहारा हूं

आंखों में समंदर है, आशाओं का पानी है

ज़िंदगी और…

 

तूफान तो आना है, आकर चले जाना है

बादल है ये कुछ पल का, छाकर ढल जाना है

परछाइंयां रह जातीं, रह जाती निशानी है

ज़िंदगी और…

 

जो दिल को तसल्ली दे, वो साज़ उठा लाओ

दम घुटने से पहले ही, आवाज़ उठा लाओ

खुशियों की तमन्ना है, अश्कों की रवानी है

ज़िंदगी और…

मनोज कुमार की एक और यादगार पेशकश ‘शोर’ का गीत ‘ज़िन्दगी तेरी मेरी कहानी’ संतोष आनंद के गीत लेखन में रचनात्मकता की नवीन ऊंचाई का झरोखा है। हिन्दी सिने संगीत इतिहास में ‘ज़िन्दगी’ की समझ पर अनेक गीत लिखे गए, यह गीत उसी परम्परा का वाहक है। समकालीन गीतकार इन्दीवर के शब्दों से सजे ‘ज़िन्दगी का सफर, यह कैसा सफर’ में ‘ज़िन्दगी’ को ‘अनसुलझी पहेली’ कहा गया था। संतोष आनंद का गीत ‘ज़िन्दगी’ को बड़ी सरलता से सुलझाकर उसे ‘हर आदमी की कहानी’ कहता है।

मानव जीवन ‘नश्वर’ है, जो कल था वह आज नहीं और जो आज है, वह कल नहीं होगा। इस तरह ‘परिवर्तन’ ही संसार का नियम है, संसार की ‘क्षणिकता’ को स्वीकार करते गीतकार भी कह रहा है। ‘कुछ पाकर खोना है, कुछ खोकर पाना है, जीवन का मतलब तो आना और जाना है’।

इस छोटी सी ज़िन्दगी में किसी का साथ मिल जाने से जीना सफल हो जाता है, जो एकांत जीवन व्यतीत कर रहे हैं उन्हें उस साथी की प्रतीक्षा करनी चाहिए क्योंकि ‘आंखो में समन्दर है, आशाओं का पानी है’। मुश्किल की घड़ियों में किसी का पास होना भर जीवन को हौसला देता है। कभी-कभी तो यह भी कहा जाता है कि ‘पास ना हो दूर ही होता, लेकिन कोई हमारा अपना’।

संतोष जी भी इस संदर्भ में कह रहे हैं ‘तू मेरा सहारा है, मैं तेरा सहारा हूं’। गीत के अंतिम छ्न्दों में गीतकार ने अपने चिर-परिचित अंदाज़ को बरकरार रखते हुए तमाम गमों को तिलांजलि देने की बात कही है ‘जो दिल को तसल्ली दे वो साज़ उठा लाओ, दम घुटने से पहले ही आवाज़ उठा लाओ’। हर इंसान को खुशियों की तमन्ना होती है, खुश रहने के लिए ज़िन्दगी की ‘सार्थक’ समझ’ लाज़मी है।

कुछ और उल्लेखनीय गीत:

मुहब्बत है क्या चीज़, हम को बताओ ( प्रेमरोग )

यह दिन क्यों निकलता है, यह रात क्यों होती है

यह पीड़ कहां से उठती है, यह आंख क्यों रोती है ?

 

ओ मेघा रे, मेघा रे (प्यासा सावन)

ओ मेघा रे, मेघा रे मत परदेस जा रे

आज तू प्रेम का संदेश बरसा रे।

मेरे गम की तू दवा दे

आज तू प्रेम का संदेश बरसा रे।

 

चलो और दुनिया बसाएंगे हम-तुम

यह जन्मों का नाता निभाएंगे हम-तुम

ओ मेघा रे, मेघा रे हमको तू दुआ दे

आज तू प्रेम का संदेश बरसा रे

ओ मेघा रे मेघा रे

संतोष आनंद का करियर ‘पॉपुलर सिनेमा’ की परिभाषा में ‘हिंसक’ फिल्मों के दौर के साथ शुरू हुआ, लेकिन पूरब पश्चिम ने ‘देशभक्ति’ का विषय उठाया। इस तरह ‘आरंभ’ में ही उन्हें गीत लेखन के लिए एक अच्छा ‘प्रोजेक्ट’ मिला। मनोज कुमार की ‘फिल्म मेकिंग स्कूल’ से संतोष बेहद प्रभावित रहें। उनके कुछ बहुत ही खास गीतों का मनोज कुमार की फिल्मों में मिलना इस निकटता का प्रमाण है। संतोष आनंद का फिल्म चयन ‘ज़िन्दगी’ और ‘देश-समाज’ के करीब रहा, गीत लेखन में भी यह सामाजिक पक्ष स्पष्ट देखा जा सकता है। इसे महज संयोग तो नहीं माना जा सकता जब संतोष ने  प्रेमरोग, शोर, रोटी कपड़ा और मकान जैसी पारिवारिक-सामाजिक फिल्मों में गीत लिखें। यह फिल्में उनके सामाजिक संदर्भों की पहचान मानी जा सकती हैं। संतोष आनंद के गीत ज़िंदगी के बहुत से पक्षों को समझने में श्रोताओं के सहायक से हैं।

संतोष आनंद के गीतों में देशभक्ति, रिश्तों की झनक, प्यार का संसार, ज़िन्दगी की जीत पर अप्रतिम भरोसा, मानवीय प्रेम, सांसारिक मोह, नैतिकता की राह, मोह-भंग जैसे सामाजिक-सामयिक विषयों का प्रयोग मिलता है। मनोज कुमार और राज कपूर जैसे सफल फिल्म निर्माताओं के साथ काम कर संतोष ने एहसास के सभी पक्षों को छूकर अपनी विशेष पहचान बनाई। रोटी कपड़ा और मकान, शोर, क्रांति, प्रेम रोग, साजन बिन सुहागन, प्यासा सावन, संगीत जैसी फिल्मों के गीतों के बोल आज भी हमें मीडिया में रेडियों और टेलीविज़न पर नज़र आते हैं। ‘तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी, इक प्यार का नगमा है’ जैसे गानें आज भी सुने जाते हैं।

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