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“बढ़ती GDP का फायदा आम जनता की जगह सिर्फ पूंजीपतियों को क्यों?”

‘बढ़ती जीडीपी, प्रति व्यक्ति आय’ ये क्या सचमुच में मज़दूर वर्ग या किसानों की जेब में जाते हैं? नहीं, बल्कि ये बड़े पूंजीपतियों की जेब में जाते हैं, जिनकी संख्या 100 से भी कम है। साथ ही ये जाते हैं कुछ मंझोले पूंजीपतियों की जेब में।

कुछ हिस्सा पूंजीपति वर्ग के दलालों में भी बांटा जाता है, जो राजनीति, प्रशासन, पुलिस, न्यायालय, सीबीआई, चुनाव आयोग, शिक्षा, मीडिया, आदि में काम करते हैं। हां, मोदी सरकार ने आते ही जो लूट मचाई, अपने मालिकों की सेवा में, जिनकी मदद से वह सत्ता में आएं थे वह लूट बेमिसाल है। इसमें विदेशी पूंजी का हाथ भी था, जैसे-फोर्ड फाउंडेशन, अमेरिकी और इज़रायली गुप्तचर विभाग, आदि।

तभी तो भाजपा और आरएसएस ने एफडीआई, आधार कार्ड, जीएसटी, ज़मीन अधिग्रहण बिल, आदि का जो पहले पुरजोर विरोध करते थे को लागू किया। बिना इस शर्म के कि “थूक कर चाटने” का जुमला इन्हीं के सिर पर आएगा।

इसी बेहिसाब लूट, अंतहीन मुनाफे की हवस का नतीजा है कि आज हमारा पूंजीवादी अर्थतंत्र ध्वस्त हो रहा है। महंगाई अब दीर्घकालीक बीमारी बन चुकी है, जिसका इलाज उसके पास नहीं है। किसानों की आत्महत्या भी “आम” बात बन चुकी है। खासकर मीडिया और मध्यम वर्गीय मूढ़ “विद्वानों” के लिए।

मरते हुए सैनिक और उनकी मांग की कोई सुनवाई नहीं है, जो आज 1083 दिनों से जंतर मंतर पर धरना दे रहे हैं। महिलाओं पर अत्याचार बढ़ रहा है, बलात्कार को सही ठहराया जा रहा है धर्म के नाम पर, दलितों को मारा जा रहा है, हिंदुत्व को शुद्ध रखने के नाम पर।

अल्पसंख्यकों से देश और धर्म को खतरा है, का दुष्प्रचार कर समाज को बांटा जा रहा है। आदिवासियों को माओवादी बोलकर खत्म किया जा रहा है, ताकि उनकी ज़मीन हड़पी जा सके। और इन सबके एक ही मायने है, बेशुमार, अंतहीन मुनाफा, जो पूंजीपति वर्ग को भी मजबूर करता है, आपसी प्रतियोगिता में ऊपर रहने के लिए, क्योंकि हारने वाले को निगल लिया जाता है।

तो साथियों , हमारा मुकाबला बांग्लादेश या अमेरिका से नहीं है, बल्कि लड़ाई है सीधे-सीधे पूंजीपति वर्ग से, जो हमें अपने “कभी ना खत्म होने वाले मुनाफा की दौड़” में शोषित कर रहा है, प्रताड़ित कर रहा है, हमारे जीवन को बर्बाद कर रहा है।

पूंजी के बादशाहत को खत्म करना है, इसके बनाने वाले मेहनतकश जनता के सत्ता को कायम करना है, ताकि शोषण विहीन समाज बना सके। 100% रोज़गार की व्यवस्था कर सकें, शिक्षा और स्वास्थ्य को मूलभूत अधिकार में शामिल कर सकें। मानव द्वारा मानव के हर शोषण को खत्म कर सकें, जहां महिलाओं की बराबरी, सुरक्षा नैसर्गिक हो, जहां दलित, दलित बनकर नहीं बल्कि समाज के सदस्य बनकर रहें, समाज के उत्पादन में इनका हाथ रहे और वितरण, यानि उत्पादन के हिस्से में भी का उनका हक हो। यही बात आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं के साथ भी हो।

रास्ता एक ही है, सर्वहारा वर्ग की एकता और संघर्ष, पूंजीपति वर्ग और इसके दलालों की सत्ता को हमेशा-हमेशा के लिए दफन कर आम जनता की सत्ता कायम करे।

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