महिला-महिला होती है। अब फिर वो एक अच्छे परिवार की गृहणी हो या फिर कोई सेक्स वर्कर। धरती पर जन्मी प्रत्येक नारी का समान अधिकार है इज्ज़त और सम्मान पाने का। किसी के भी पेशे के आधार पर ये समाज निर्धारित नहीं कर सकता कि उसे वो सम्मान और ओहदा मिलेगा या नहीं।
कोलकाता की रहने वाली 52 वर्षीय भारती डे, जो एक समय सेक्स वर्कर हुआ करती थीं, उन्होंने अपने और अपने समाज की औरतों के हक के लिए दुर्बार महिला समन्वय समिति की शुरुआत की और वही उसका निर्देशन भी करती हैं। इसकी शुरुआत भारती और उनके साथ काम करने वाली कुछ महिलाओं ने 1995 में की थी, जिसके द्वारा सेक्स वर्कर्स और उनके बच्चों को रहने की जगह दी जाती है और उनके हक की लड़ाई भी लड़ी जाती है।
इनकी कहानी जानने के लिए देखें यह जोश Talk।
दुर्बार नाम की समिति का अर्थ बंगला में होता है “अजेय” यानी जिसे रोका ना जा सके। यह संस्था अब तक पश्चिम बंगाल की लगभग 75,000 सेक्स वर्कर को आश्रय दे चुकी हैं। जिनके हक की लड़ाई कोई नहीं लड़ता उनको यहां प्रबल बनाया जाता है और उन्हें खुद के लिए लड़ने के लिए सक्षम बनाया जाता है।
कोई भी महिला अपनी मर्ज़ी से सेक्स वर्कर नहीं बनती है बस उसके हालत उसे ये पेशा चुनने के लिए मज़बूर करते हैं। उनके पति उन्हें छोड़ जाते हैं और फिर अपना और बच्चों का पेट पालने के लिए उन महिलाओं को ये काम करना ही पड़ जाता है।
दुर्बार का मिशन सेक्स वर्कर महिलाओं के बच्चों को एक अच्छा भविष्य देने का था। दुर्बार की इस शुरुआत से उस जगह में बहुत से बदलाव आय हैं। आज लगभग 86 बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं और अपना भविष्य बना रहे हैं। साथ ही हॉस्टल में बच्चों को वोकेशनल और कंप्यूटर की ट्रेनिंग भी दी जाती है। खेल, योग, नृत्य हर चीज़ की ट्रेनिंग दिलाई जाती है। पिछले दस सालों से दुर्बार ने ना जाने कितने ही मोर्चे निकालकर, आंदोलन करके अपने हक की लड़ाई लड़ी है और आज वे सफल भी हैं। भारती इस संस्था के ज़रिए सेक्स वर्कर के काम को एक सम्मानित पेशे का हक दिलाना चाहती हैं क्योंकि प्रत्येक पेशे को समानता की इज्ज़त मिलनी ही चाहिए।