झारखंड के चतरा के जबरा गांव की रहने वाली 20 वर्षीय संजू के घर में सब बहुत ही खुश हुए जब उन्हें संजू के गर्भवती होने की जानकारी मिली। वो पहली बार मां बनने वाली थी। संजू देवी के पति, अमित यादव पेशे से एक पानीपुरी विक्रेता है। वो अपने गांव से लगभग 75 किमी दूर बिहार के गया ज़िले के शेरघाटी में अपनी दुकान लगाते हैं। गर्भावस्था के बारे में जानकर उनके पति उन्हें शेरघाटी के सब-डिविजन अस्पताल में चेकअप के लिए लेकर आए।
अस्पताल में प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व योजना के तहत उनके प्रसव पूर्व जांच के दौरान यह पाया गया कि संजू गंभीर रूप से एनीमिक हैं। संजू के रक्त में हिमोग्लोबिन का प्रतिशत 5 मिलीग्राम ही था जो सामान्य के आधे से भी कम था। संजू का केस उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था का था। हाई रिस्क प्रेग्नेंसी ट्रैकिंग सिस्टम की व्यवस्था के तहत उनका नियिमत फॉलोअप, ए.एन.म के द्वारा किया गया। गर्भावस्था, आहार, आईएफए / कैल्शियम डी 3 और जन्म की तैयारी और खतरे के संकेतों के बारे में बताया गया ताकि वो अपनी देखभाल कर सकें। गर्भावस्था के दौरान समुचित आहार और पोषण मां और बच्चे दोनों के विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।
नियमित चेकअप और फॉलोअप के परिणाम स्वरूप संजु देवी ने 1500 ग्राम वजन के बच्चे को नार्मल डिलीवरी द्वारा जन्म दिया। हालांकि बच्चे का वजन सामान्य से कम था पर कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं नहीं थी ऐसे में उसे एन.बी.एस.यू (दमू ) में रखा गया।आज संजू और उनका बच्चा दोनों स्वस्थ और सुरक्षित है। संजू देवी और उनके बच्चे को बचाया जा सका क्योंकि उन्हें समय से चिकित्सीय उपचार और सही देखभाल मिली पर बिहार में काफी ऐसी माताएं हैं जिन्हें बच्चों को जन्म देने के दौरान या उसके बाद अपनी जान गवानी पड़ जाती है।
एसआरएस के आंकड़ों के अनुसार बिहार में मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate) प्रति एक लाख जीवित जन्मों पर 208 है, जो राष्ट्रीय औसत 167 से काफी ज्यादा है। एसआरएस 2011 – 2013 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 46,000 माताओं की मृत्यु बच्चों को जन्म देने के दौरान या जन्म देने के 42 दिन के अंदर हो जाती हैं वहीं बिहार में 6,000 माताओं की मौत हो जाती है । यह भारत के मातृ मृत्यु का 13 प्रतिशत है।
अगर गर्भवती महिलाओं की गर्भावस्था के दौरान अच्छी देखभाल की जाए तो होने वाली इन मौतों को रोका जा सकता है। खतरनाक लक्षणों जैसे गंभीर रक्ताल्पता यानि खून की कमी(Anemia), गर्भावस्था के दौरान होने वाला उच्च रक्तचाप आदि का समय पर पता लगाया जाए और उसका सही समय पर इलाज किया जाएं तो हम हज़ारों माताओं को बचा सकते हैं। इसीको ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान की शुरूआत की गई है।
इसके बारे में बताते हुए यूनिसेफ के स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ सैयद हुबे अली कहते हैं “प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व योजना के तहत मातृत्व मृत्यु दर को कम करने के लिए उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था मामलों का हाई रिस्क प्रेग्नेंसी ट्रैकिंग सिस्टम की व्यवस्था की गई है ताकि ऐसी जोखिम वाले मामलों की नियमित निगरानी कर माताओं और बच्चों की जान बचाई जा सके। प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत हाई रिस्क प्रेग्नेंसी ट्रैकिंग प्रणाली का उद्देश्य उच्च जोखिम गर्भधारण वाली महिलाओं के स्वास्थ्य की निगरानी करना है और यह सुनिश्चित करना है कि उन्हें समय पर सहायता और देखभाल मिलती रहे।
इसके महत्व के बारे में बताते हुए हुए डॉ फुलेश्वर झा राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, मैटरनल हेल्थ, राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार कहते हैं “मातृ मृत्यु दर में कमी लाना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मुख्य उद्देश्यों में से एक है। राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत हर साल देश भर की लगभग 3 करोड़ गर्भवती महिलाओं को विशेष प्रसव-पूर्व देखभाल मुफ्त में मुहैया कराई जाएगी । इस अभियान से उच्च जोखिम वाले गर्भधारण का पता लगाकर उसकी रोकथाम करने में मदद मिलेगी। ”