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सऊदी अरब में बदलाव की बयार, क्या महिलाओं के हक में है?

कल सऊदी अरब से पहली महिला के ड्राइविग लाइसेंस प्राप्त करने की खबरे आ रही थी, हाल के दिनों में  सऊदी अरब से महिलाओं की स्वतंत्रता और समानता के दूरगामी फैसलों के बारे में कई सूचनाएं आ रही हैं जो एक मुस्लिम बहुल मुल्क को नए नज़रिये से देखने को विवश करती है।

मसलन, मार्च महीने में आने वाले सप्ताह 26 से 31 मार्च तक सऊदी अरब की राजधानी रियाध के इको फ्रेंडली एपेक्स सेंटर में मुल्क का पहला फैशन वीक आयोजित किया गया था, इसकी दूसरी कड़ी अक्टूबर महीने में भी आयोजित होगी। यही नहीं, सऊदी अरब पर लोगों का ध्यान तब गया जब वहां उदार इस्लाम के तहत लिंग समानता की पहल की गई। सऊदी अरब के इतिहास में पहली बार स्कूलों में लड़कियों को खेल में हिस्सा लेने, शारीरक शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति मिली है। महिलाओं को वाहन चलाने की अनुमति दी गई है, महिलाओं को पेशेवर फुटबाल मैच देखने और चुंनिदा खेल खेलने की इजाज़त भी दी गई है।

जिस मुल्क में चंद साल पहले महिलाओं को सार्वजनिक जगहों पर खुद को सिर से पैर तक ढककर रखना पड़ता था, वहां फैशन शो का आयोजन होना और महिलाओं के हक में कई फैसले लेना बहुत बड़े बदलाव का संकेत है। ज़ाहिर है कि सऊदी अरब ने अपने मुल्क में कला और मनोरंजन की कठोर नीतियों को उलट दिया है जिससे वहां भी वैश्वीकरण की धमक पहुंच रही है।

सऊदी अरब एक सुन्नी बहुल मुस्लिम देश है, जो अब से पहले बंद समाज के रूप में था। इस्लाम की जन्मभूमि और इसके सर्वाधिक पवित्र स्थलों(मक्का/मदीना) वाले इस देश की पहचान अभी तक एक रूढिवादी राजशाही के रूप में रही है। इसी मुल्क में बदलाव की आबोहवा की ज़मीन तैयार हो रही है, जो यह संकेत दे रहा है कि सऊदी अरब कट्टर रूढिवादिता की दीवारों को तोड़कर मुख्यधारा में कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहता है।

प्रिंस मोहम्हद बिन सलमान, जिन्होंने पिछले जून में क्राउन प्रिंस का पदभार संभाला है, उन्होंने “नेशनल ट्रांसफॉर्मेशन प्रोग्राम 2020” और “विजन 2030”  के तहत मुल्क में सामाजिक और राजनीतिक सुधार से सऊदी अरब का मानवतावादी चेहरा दिखाने की कोशिश की है। मोहम्हद बिन सलमान सऊदी अरब को उदार इस्लाम की तरफ ले जाना चाहते हैं, इसी कड़ी में वो देश में कट्टरपंथ इस्लाम के प्रभाव को कम करने की कोशिश कर रहे हैं।

सामाजिक परिवर्तन की दिशा में पवित्र शहर मदीना की नगरपालिका को महिलाएं संचालित करेगी। केवल महिलाओं द्दारा संचालित नगरपालिका वाणिज्यिक गतिविधियों के लाइसेंस जारी करने के साथ ही निर्माण, निरीक्षण अभियानों और निवेश की अनुमति सहित नगरपालिकाओं द्वारा प्रदान की जाने वाली सभी नियमित सेवाएं प्रदान करेगी। इसके पहले महिलाओं को मतदान और चुनाव लड़ने का अधिकार दो वर्ष पूर्व ही दिया गया, जिसमें अलग-अलग स्थानों पर 19 महीलाओं ने जीत दर्ज की थी।

इसके पहले सऊदी अरब में सार्वजनिक सुविधाओं पर लैंगिक विलगाव लागू था, जिसके अनुसार महिलाएं दैनिक जीवन में उन तमाम चीज़ों से महरूम थी जो पुरुषों के लिए सहज उपलब्ध थे। एक सुन्नी मुस्लिम बहुल कट्टरपंथी सोच के दायरे में सऊदी अरब ने अपने सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को खतरे में देखते हुए 35 साल से सिनेमाघरों को बंद कर रखा था। रूढिवादी राजसत्ता में बदलाव, लिबरल इस्लाम की पैरवी करते हुए सिनेमाघरों को खोलने का फैसला लिया है। सिनेमाघरों को खोलने से इकोनॉमिक ग्रोथ को बढ़ावा मिलेगा और इससे विविधता आयेगी, एक व्यापक सांस्कृतिक सेक्टर तैयार कर नये रोज़गार और ट्रेनिंग के अवसर पैदा होगें। साथ ही इससे सऊदी अरब में मनोरंजन के विकल्प भी समृद्ध होंगे।

संभवत: प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के राजशाही के चेहरे को मूलभूत रूप से बदल देने के इरादे को अपने सर्वश्रेष्ठ तरीके से पेश कर रहे है और उनकी कोशिश है कि कार्यस्थलों पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में तेज़ी लाई जाए और भ्रष्टाचार से मुकाबला किया जाए। प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान “विजन 2030” का लक्ष्य रखते हुए अर्थव्यवस्था में सुधार, विविधता और तेल पर देश की निर्भरता को बेहद कम करने की कोशिश कर रहे हैं।

इन सारे प्रयासों से सऊदी अरब समाज में महिलाओं के वास्तविक स्थिति में कितना सुधार हो सकेगा? यह एक यक्ष प्रश्न है क्योंकि जो समाज अब तक महिलाओं के सवालों पर तंगख़्याल रहा है, वो रातों-रात अपनी सोच नहीं बदल पाता है? वो अपने आस-पास हो रहे बदलावों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों में धीरे-धीरे स्वीकार लेता है, पर खंडित मानसिकता उसे हमेशा दोराहे पर रखती है।

अभय कुमार दुबे बताते हैं कि तमाम आर्थिक बदलाव, समाज में स्त्री-पुरुष विषमता के सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर कोई ध्यान नहीं देते हैं। महिलाओं की आकांक्षाओं और सस्ते श्रम का इस्तेमाल करते हुए नई किस्म की पितृसत्ता को रचते हैं, आर्थिक आधुनिकीकरण और वैकासिक आग्रह महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और सशक्त तो बनाते हैं, जिसे आजादी का सम्भावित जरिया भी माना जाता है। परंतु, परंपरा और धर्म के पूर्वाग्रही मानसिकता में कोई बदलाव नहीं होता है।”

ज़ाहिर है महिलाएं अपनी अकांक्षाओं के हित में सीधी भागीदारी करती हैं, बाज़ार उनको “पावर वुमेन” के रूप में स्थापित भी कर देता है। परंतु, निजी और सार्वजनिक जीवन में महिलाओं पर नियंत्रण जस का तस बना रहता है, जो समाज में सदियों से जड़ जमाए लैंगिक संबंधों और पूर्वाग्रही सोच के हिसाब से तय होती है।

प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान रूढिवादी राजसत्ता में बदलाव के साथ-साथ आधुनिक राज्य बनाने की कोशिश में हैं। लैंगिक समानता के प्रयास और अर्थव्यवस्था में सुधार से एक सीमा तक सऊदी अरब में महिला-स्वतंत्रता की दिशा में बदलाव हो रहे हैं जो स्पष्ट रूप से दिखता इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है। परंतु, महिलाओं को मिलने वाली स्वतंत्रता सऊदी अरब समाज में लैंगिक समानता भी साथ-साथ स्थापित कर सकेगी, यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी।

अर्थव्यवस्था की गतिशीलता सऊदी अरब समाज की चौधराहट को किस हद तक कम कर सकेगी, इसके लिए थोड़ा इंतज़ार करना पड़ेगा। सनद रहे अर्थव्यव्स्था अपनी गतिशीलता में महिलाओं को भी श्रेणियों में विभाजित कर देता है जिसका फायदा परंपरागत समाज और आधुनिक बाज़ार से जुड़ी तमाम संस्थाओं को होता है।

महिलाओं को इसका क्षणिक लाभ ही मिल पाता है, वह आर्थिक मोर्चे पर आत्मविश्वास तो पैदा करता है पंरतु सामाजिक और सांस्कृतिक मोर्चे पर लकीर का फकीर बना रहता है। दुनिया में मानवतावाद का अगुवा बनने के लिए सऊदी अरब को आर्थिक गतिशीलता के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिशीलता के चक्के को भी एक साथ घुमाने की ज़रूरत है, जिससे सऊदी अरब की महिलाओं को स्वतंत्रता और समानता का उन्मुक्त महौल मिल सके।

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