Site icon Youth Ki Awaaz

चरणजीत की हत्या से पाकिस्तान में किसका दीन सुरक्षित हो गया?

जैसे कोई होली के दिन शाम तक कीचड़ में हा-हुल्लड़ मचाने के बाद चकाचक कपडे पहनकर कहे कि यार क्या त्यौहार है! सारा दिन मिट्टी, गोबर, रंग और कीचड़, एकदम बेकार त्यौहार! या फिर कोई बकरीद के दिन मटन-चिकन पेलकर मुंह पर दो-चार चीनी के दाने चिपका कर बेज़ुबान जानवरों के प्रति संवेदना प्रकट करे, ठीक वैसे ही सोशल मीडिया पर कई दिन नफरत भरी पोस्ट डालकर जब कोई मानवीय संवेदनाओं भरी पोस्ट या शायरी लिखता है तो मुझे अजीब सा लगता है।

पिछले महीने ही तो अपने चाहने वालों के बीच पहुंचकर आतंकी संगठन जमात-उद-दावा के दूसरे कमांडर और आतंकी हाफिज सईद के साले अब्दुल रहमान मक्की ने कहा था कि इस्लाम को बदनाम करने का षड्यंत्र सदियों से जारी है और इस साज़िश में गुरू नानक भी शामिल थे। सिखों पर कई आरोप लगाते हुए मक्की ने कहा था कि पेशावर तक सिख धर्म फैलाने के लिए पंजाब में गुरू नानक को बढ़ावा दिया गया था। सिख पूरी तरह से गैर इस्लामिक हैं और उनके साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं।

अब सुना है पाकिस्तान के पेशावर शहर के इंकलाब पुलिस थाने के कोहाट रोड पर परसों जिस शख्स को गोली मारी गई, उनका नाम चरणजीत सिंह था। ज़रूर एक मक्की की बात किसी ने दिल से लगा ली होगी और मक्की के मुंह से निकली बयान की गोली, चरणजीत सिंह के सीने पर चल गयी।

जब मज़हबी सनक से बीमार लोगों को समाज अपना अभिभावक चुन ले तो चरणजीत सिंह का मारा जाना कोई नई बात नहीं है। जिसने चरणजीत को मारा, दरअसल उसने एक गोली मज़हब की ओर से भी चलाई है।

चरणजीत सिंह हर रोज़ की तरह अपनी दुकान पर बैठा था अचानक हमलावरों ने उन्हें गोली मार दी। हो सकता है, मक्की के बयान के बाद उसकी लम्बी सफेद मूछ और दाढ़ी, ऊंची पगड़ी देखकर किसी का दीन खतरें में आ गया होगा! उसने तमंचा निकालकर और फायर झोंक दिया होगा क्योंकि ये धर्म-मज़हब बिना हिंसा, हत्या और उपद्रव के खतरे से निकलते भी कहां है?

बताया जा रहा पिछले दिनों चरणजीत कह रहा था कि पाकिस्तान हमारा देश है, हमारे पूर्वज यहां रहते आए हैं। यह इलाका हमारा अपना घर है। यहां हम पले बढ़े हैं, ये हमारी अपनी मिट्टी है, लेकिन हमें अफसोस है कि यहां हमारे साथ बहुत बुरा बर्ताव हो रहा है।

चरणजीत के हत्यारे ज़रूर इसी तरह की धारणाओं से ग्रसित रहे होंगे कि पाकिस्तान में सिखों और हिन्दुओं का भला क्या काम? उनके लिए हिंदुस्तान है! जैसे हमारे यहां भी बहुत लोग यही कहते हैं कि भारत में मुसलमानों का क्या काम इनका देश तो पाकिस्तान है।

अब दुखी लोग कह रहे हैं कि चरणजीत सिंह एक नेक इन्सान और एक सामाजिक कार्यकर्ता थे और खैबर पख्तूनख्वाह में अल्पसंख्यकों के लिए काम करते थे। इसी कारण कल दिन भर भारत-पाकिस्तान के सोशल मीडिया पर संवेदना प्रकट होती दिखाई दी।

हर बार की तरह कुछ लोग पकड़े जायेंगे, बात खत्म हो जाएगी। लेकिन समाज तो वहीं रहेगा, धार्मिक नफरत वहीं रहेगी, लोग भी वहीं रहेंगे। फिर किसी दूसरी जगह खंजर या गोली चलेगी। पाकिस्तान में कोई चरणजीत और भारत में अफ्राजुल बनता रहेगा। क्योंकि लोग हर दिन परिस्थितियां पैदा करते रहेंगे जिनमें अधिक से अधिक छुरे भोंके जा सके, गोली चलाई जा सके। अब लोग मरने-मारने के तरीके खोजते रहते हैं, दलीले देते रहते हैं कुछ दिन बाद खुलकर कहने लगेंगे धर्म-मज़हब के लिए कत्ल कर रहा हूं मेरी क्या गलती?

शायद ही कोई ठीक से समझता हो कि जो कुछ भी चारों तरफ हो रहा है हम सब उसमें कितने सहभागी है। ये कोई नहीं सोचता जब नफरत के कारण किसी के सीने में खंजर भोंका जाता है तो मेरी सफेद चादर पर भी खून के दाग होते हैं। क्योंकि हम भी इसी समाज का हिस्सा हैं। चरणजीत के कत्ल ने साबित कर दिया है कि पख्तून दिखने वाले और पश्तो बोलने वाले सिख भी अपने पूर्वजों के मुल्क में अब सुरक्षित नहीं रहे।

चरणजीत सिंह की हत्या का विरोध किसी ने नहीं किया, बस इस हत्या के बारे में लिखा, सनसनीखेज हत्या। किसी ने इसे दिल दहलाने वाली घटना बताया, किसी का दिल पसीज गया तो किसी का गला रुंध गया। लगता है अब सबने ऐसी हत्याओं, कत्लों और हिंसाओं के ट्वीट संभालकर सेव कर रखे हैं, बस नाम बदलो, क्या पता कब किसकी हत्या की सूचना आ जाये। 


फोटो- Youtube ग्रैब, दुनिया टीवी

Exit mobile version