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“मोदीजी का कोई जवाब नहीं, लेकिन भक्तों की मूर्खता का कोई हिसाब नहीं।”

कई बार अखबारों में खबरें आती हैं कि सूखा प्रभावित किसानों को 12 रुपए, 15 रुपए या बहुत ही कम राशि के चेक दे दिए जाते हैं। ऐसा होते ही हंगामा मच जाता है और लोगों का गुस्सा फूट पड़ता है। ऐसी हरकतों से सरकार की बहुत किरकिरी होती है और उसपर असंवेदनशील होने का ठप्पा अलग से लग जाता है। ऐसी खबरों पर सरकार तु्रंत रक्षात्मक मुद्रा में आ जाती है और आनन-फानन में सफाई देनी पड़ जाती है। कभी-कभी लगता है कि यदि किसानों को चेक दिए ही नहीं जाते, तब भी इतना हंगामा नहीं होता, जितना यह कम रुपए के चेक देने पर हो जाता है। सच भी है घर आए मेहमान को पानी का भले ही ना पूछो, लेकिन चम्मच में पानी दोगे तो बुरा तो लगेगा ही।

ऐसी ही एक गलती फिर दोहराई गई। लगातार 16 दिन तक पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ाने के बाद पेट्रोल के भाव में 1 पैसे की कमी कर दी गई। ऐसा करने से सरकार का बैठे-बैठाए मज़ाक बन गया। यदि लगातार सत्रहवें दिन भी पेट्रोल-डीज़ल के भाव बढ़ा दिए जाते, तब भी कोई बड़ी बात नहीं होती, लेकिन 1 पैसे की कमी करके वाकई सरकार ने जनता के साथ एक भद्दा मज़ाक किया है।

इससे भी ज़्यादा भद्दी बातें सोशल मीडिया पर भाजपा के मुफ्त के भक्त करते दिखाई दे रहे हैं, जो पेट्रोल-डीज़ल के बढ़ते भाव से दुखी आम आदमी को देशद्रोही, गुलाम और ना जाने कैसी-कैसी गालियां दे रहे हैं। कई भक्त 2013 के पेट्रोल बिल दिखाकर दावा कर रहे हैं कि कॉंग्रेस के ज़माने में भी पेट्रोल 80 पार चला गया था, लेकिन भक्तों ने बिल को अच्छे से एडिट नहीं किया और उसमें जीएसटी नंबर लिखा दिखाई दे रहा है, मतलब साफ है कि यह बिल फर्ज़ी है, लेकिन भक्तों को बस गाली देने का बहाना चाहिए।

गाली देने के उत्साह में वे यह साधारण तथ्य भी नहीं समझ पाते हैं कि पेट्रोल के भाव अंतरराष्ट्रीय मार्केट में क्रूड के भाव पर निर्भर रहता है। क्रूड की कीमतों में पिछले कुछ सालों में आधी से भी ज़्यादा गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन भारत में उसका फायदा जनता तक नहीं पहुंचा है। कोई भी समझदार इंसान यह बात समझ सकता है, लेकिन भक्तगणों को समझाने की कोशिश करना मतलब राख में घी डालना है। “बहुत हुई पेट्रोल-डीजल की मार, अबकी बार मोदी सरकार” का नारा देने वालों से यदि 84 रुपए के पेट्रोल पर सवाल कर लिया तो आप तुरंत देशद्रोही करार दे दिए जाएंगे।

माना कि दालें सस्ती हैं, प्याज़ भी सस्ता है, सब्जियां भी सस्ती हैं, लेकिन पेट्रोल महंगा है, यह बोलना क्या कोई अपराध है? साधारण इंसान क्या पेट्रोल का नाम भी नहीं ले सकता है? ये कम पढ़े-लिखे, अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने वाले भक्त रोज़ ही किसी चर्चा में गालियां देकर मोदीजी के कुछ वोट कम कर देते हैं और फिर सोचते हैं कि राष्ट्र की सेवा कर रहे हैं। भक्तों को इतनी भी समझ नहीं है कि गालियां देने से वे ना राष्ट्र और ना ही मोदीजी का भला कर रहे हैं। गालियां देने से भक्त सिर्फ यह सिद्ध करते हैं कि सामने वाले के तथ्यात्मक सवालों का उनके पास कोई जवाब नहीं है। भक्तों के कॉमन सेंस का अंदाज़ा इससे लगा लीजिए कि वे यह भी भूल चुके हैं कि वाजपेयी जी की विकासवादी सरकार भी प्याज़ की बढ़ती कीमतों पर शहीद हो चुकी है।

मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह से दुखी लोग नारा लगाते हैं, “मोदीजी से बैर नहीं, लेकिन मामा तेरी खैर नहीं” वैसे ही सोशल मीडिया में भक्तों से दुखी लोग भी कहने लगे हैं, “मोदीजी का कोई जवाब नहीं, लेकिन भक्तों की मूर्खता का कोई हिसाब नहीं।”

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नोट- फीचर्ड इमेज प्रतीकात्मक है।

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