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हमें गुलज़ार खान जैसे ऑटो चालकों से बिना पूर्वाग्रह मिलने की ज़रूरत है

आठ जून की घटना है। नर्मदापारा, रायपुर जिले के पास शाम को तीन महिला आरपीएफ पुलिस कर्मी एक मोपेट से फिसल कर गिर गई. सामने एक ऑटो वाला दौड़कर मदद करने के लिए आया। गुस्साई एक पुलिस कर्मचारी ने ऑटो चालक को थप्पड़ जड़ दिए। उन्हें लगा था कि ऑटोवाले ने उन्हें कट मारा। प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो नर्मदापारा राधा कृष्ण मंदिर के सामने काफी भीड़ थी। एक मोपेड पर आरपीएफ की तीन महिला कर्मचारी जा रही थी। उन्होंने हेलमेट न लगाते हुए चेहरे पर कपड़ा बांध रखा था। अचानक उनकी मोपेड स्लिप हो गई, जिससे तीनों सड़क पर गिर गईं। मोपेड के पीछे एक ऑटो चल रही थी। चालक ने ऑटो रोका और उन्हें उठाने गया। इसी बीच एक पुलिसकर्मी ने उसे थप्पड़ जड़ दिए।

दरअसल यह एक सामान्य नज़रिया है जो हम ऑटो वालों के प्रति रखते हैं। बात यहां पुलिस कर्मचारियों की नहीं है आप किसी भी शहर में देखिए गलती हमेशा ऑटो वालों पर ही थोप दी जाती है। ऐसा थोड़ी है कि कट हमेशा हम्हीं मारते हैं।

ऑटो की तलाश में मै भी सड़क पर था। पचपन साल के गुलज़ार खान मिल गए जाना बहुत दूर था इसलिए बातें तो होनी ही थी वैसे भी इस शहर में बात करता कौन है सब ऑफिस-ऑफिस में लगे पड़े हैं और जो घर में हैं वो धन धना धन में फंस चुके हैं। मैं इन सब से अभी आज़ाद हूं, ज़्यादातर लोग इस आज़ादी को आम भाषा में बेरोज़गारी भी कहते हैं। लेकिन अब कौन यह नारा लगाए कि हमें चाहिए बेरोज़गारी सब तो आज़ादी ही कहते हैं ना, यही अच्छा भी लगता है। क्रांति टाईप की फीलिंग आती है सो अलग।

गुलजार खान पश्चिम यूपी के रहने वाले हैं अब नोएडा में अपना घर है और दिल्ली में ऑटो चलाते हैं। दो बेटी है एक बेटा सब पढ़ रहे हैं। आठ जून की घटना इन्होंने ही बताया, न्यूज पेपर पढ़ते रहते हैं। गुलज़ार खान कहते हैं, ” देखो बाबू ऑटो वाला भी तो आदमी ही होता है ना वो क्यों चाहेगा किसी को जान से मार दे या बेहिसाब पैसा वसूल ले अपना शांति से दो पैसा कमाता है” मैंने कहा पर ऑटो वाले मीटर से नहीं चलते हैं इसमें तो सच्चाई है ना? उनका जवाब था, बिल्कुल यह सच है कि अधिकांश ऑटो वाले मीटर से नहीं चलते हैं। आपको पता है एक मीटर पंद्रह हज़ार से चौबीस हज़ार तक का आता है। एक तो सबके पास मीटर है नहीं, पुलिस से बचने के लिए बहुत आदमी तो खराब मीटर ही लगाए हुए है। कौन चेक करता है? ऊपर से लोगों की भी गलती है, कभी मीटर से चलेंगे कभी यूं ही बोलेंगे चलो। अब आप खुद को ही देखिए मैंने 200 बोला और आपने 180, ऐसे ही चलता है। अगर मीटर से चलते हैं तो लोगों को लगता है ये घूमा के ले जाएगा और पैसा बनाएगा।

मैंने गुलज़ार चाचा से राहुल गांधी के मुंबई में हज़ार ऑटो चालकों द्वारा स्वागत करने के बारे में पूछा तो वो कहते हैं, ऐसा है बेटा कि ये सब तो चलता ही रहता है। सबको पता है कि ऑटो वाले आम आदमी से हर दिन रूबरू होते हैं और इन नेताओं को अपनी बात आम आदमी तक पहुंचानी है, यही तो असली वोट बैंक है। पिज्ज़ा, बर्गर खाने वाला कितना वोट करता है ये इनको भी पता है(हंसते हुए)।

बकौल गुलज़ार खान, अब आपने बात छेड़ी है तो आपको एक घटना बताता हूं। 2014 में जब केजरीवाल चुनाव प्रचार कर रहे थे तो एक ऑटो वाले ने उनको थप्पड़ मारा था, उसका नाम लाली था। बाद में वोटिंग से एक दिन पहले केजरीवाल और उनके साथ जो एक गोल चेहरा वाला रहता है( गुलज़ार खान यहां मनीष सिसोदिया की बात कर रहे हैं) दोनों उस ऑटो वाले के घर पहुंचे और बात की। बाद में उस ऑटो वाले ने माफी मांगी और बताया हम केजरीवाल से मिलने गए लेकिन नहीं मिलने दिया गया। उसके बाद सरकार चली गई मुझे लगा अब तो बीजेपी आ जाएगी और कुछ नहीं हो पाएगा इसलिए थप्पड़ मार दिए, केजरीवाल तो हमारे लिए भगवान हैं। अब इसको आप क्या कहिएगा?

पिछले दिनों राहुल गांधी वड़ोदरा गए और वहां एक फिरोज़ नाम का ऑटो वाला तीन दिन के लिए यात्रियों को भाड़े में 18 फीसदी छूट दिया था। उसका कहना था हम डीजल और पेट्रोल के दाम लगातार बढ़ने से दुखी हैं और खुद नुकसान सह कर कांग्रेस अध्यक्ष का ध्यान इस ओर खींच रहे थे। और क्या बताएं आपको, हम ऑटो वालों मे भी एक से बढ़कर एक क्रांतिकारी हैं।

चाचा आगे कहते हैं, ये सब राजनीति है। राज तो इन्हीं को करना है आज राहुल मिल रहे हैं, कल मोदी मिलेंगे। आजकल तो फिल्म स्टार भी ऑटो में बैठ के खूब घूमता है पता नहीं उसको क्या मिल रहा है, कोई कमी है उसको? कभी ऑटो वाले, कभी टिफिन वाले तो कभी सफाई कर्मचारी। राजनीति का यह रूप बहुत पहले से मैं देख रहा हूं अब तो यह और बढ़ता ही जा रहा है।

गुलजार खान कहते हैं, समस्या यह नहीं है कि राजनेता हमारा इस्तेमाल करता है, दिक्कत यह है कि लोगों ने हमारे बारे में गलत धारणा बना ली है। मैं मानता हूं कि हमारी तरफ से भी कुछ गलतियां होती हैं लेकिन इसके लिए सभी ऑटो वालों को आप हिकारत से तो नहीं देख सकते न।

हमारी बेटी की उम्र का लड़का आता है और कहता है हां भाई चल, बोल कितना पैसा लेगा? हालाकिं मैं बुरा नहीं मानता वो मेरे कौन लगते हैं? ये चीज़ें तो बचपन में सीखीं जाती है कि किससे कैसे बात करनी है। बहुत दिनों बाद किसी सवारी को मैंने अपना नाम बताया है, अच्छा लगता है अपना नाम सुनकर।

हमने पूछा आप किसको जिताएंगे दिल्ली में, उनका कहना था दिल्ली में तो हम वोट ही नहीं कर सकते वैसे केजरीवाल के बारे में सुने हैं अच्छा काम कर रहा है बहुत दिनों से बिजली पानी का बिल नहीं बढ़ाया है। अब ये तो पूरे दिल्ली को तय करना है। दिल्ली में सिर्फ ऑटो वाला ही थोड़ी ही रहता है और भी लोग हैं।

हमारी मंज़िल आ गई, हमने पूछा अब आप यहां से कहां जाएंगे उन्होंने कहा, पता है मेरी छोटी वाली बेटी शेरो-शायरी बहुत पढ़ती है, लिखती भी है और बड़ी वाली कंप्यूटर कर रही है, बेटा दसवीं में है। हमारा क्या है ..सबको सेट कर दिया है। छोटी की शायरी की किताबें मैं भी पढ़ता हूं मुझे न्यूज़ पढ़ना और ये सब खासकर राहत इन्दौरी साब को पढ़ना अच्छा लगता है, वहीं से एक शायरी याद आ रहा है पता नहीं शेर है शायरी।

“किस की तलाश है हमें, किस के असर में हैं
जब से चले हैं घर से, मुसलसल सफर में हैं”

अब ये किसने लिखा है मालूम नहीं एक पतली किताब थी उसी में लिखा था कभी कभी तो मैं किताब लेके भी चला आता हूँ, पेपर तो आपको हमेशा मिल जाएगा हमारे ऑटो में।

हमने अपने आस-पास इतने आडंबर बना लिए हैं कि गुलज़ार खान जैसे लोग मिलते ही नहीं। उसने अच्छा कपड़ा पहना है, अंग्रेजी बोलता ही होगा, ये ऑटो वाला है पढ़ा-लिखा खाक होगा, गिटार तो हम ही बजाते हैं बस, तुम गांव के हो ना तबला बजाओ, अच्छा बजाओगे। ऐसी ही सोच है हमारी। भला एक ऑटो वाला राहत इंदौरी को कैसे जान सकता है चलो जान भी लिया किसी तरह पर पढ़ के सुना कैसे दिया? हम यही बरदाश्त नहीं कर पाते।

दरअसल ये तो डॉक्टर, इंजीनियर, पत्रकार, प्रोफेसर, कलाकार, स्टूडेंट्स इन लोगों के बस की बात है ना। गुलजार खान जैसा ऑटो वाला ये सब कैसे कर लेता है। काश.. ! हम सब तथाकथित बुद्धि वाले लोग ( हालांकि बुद्धि ज़्यादा है नहीं, यूं ही मान लेते हैं) इन चीज़ो को समझ पाते। गुलज़ार खान ने जो शायरी पढ़ी और राजनीति के जो किस्से वो मैंने कहीं नहीं सुने थे और ना ही पढ़ा था। मालूम नहीं और कितने किस्से रह गए सुनने को। पर एक उम्मीद ज़रूर है कि ऐसे और भी गुलज़ार खान मिल जाएंगे किसी सफर में।

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