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शादी जैसे गंभीर मुद्दे पर एक गहरी बहस है वीरे दी वेडिंग

जब आप मान लेते हैं कि हिंदी सिनेमा में कोई ऐसी फिल्म भी बनाई जा सकती है, जिसके नाम के सब अक्षर पंजाबी और अंग्रेज़ी से शुरू होने चाहिए, तो मुझ जैसे किसी नॉन-रेज़िडेंट बिहारी को ये फिल्म देखने से पहले ‘वीरे’ का मतलब समझकर जाना पड़ता है। फिर जब आप समझ जाते हैं कि ये किसी ‘दोस्त’ की शादी में होने वाली कॉमेडी घटनाओं पर एक फिल्म है, तो आपको आश्चर्य और खुशी होती है कि ये दोस्त लड़के नहीं, चार लड़कियां हैं।

ये फिल्म ऐसे ही कई सरप्राइज़ पैकेज के साथ धीरे-धीरे खुलती है। मेरी उम्मीद से कहीं अच्छी और कम फूहड़ तरीके से आगे बढ़ती है जो हम मस्ती के नाम पर हाल की कुछ फिल्मों में देखते आए हैं।

फिल्म में दिल्ली की आत्मा घुसी हुई है। मॉडर्न होने के नाम पर लड़कों की तरह ‘बदमाशियां’ करने वाली, मर्दों की तरह ‘गालियां’ देने वाली लड़कियां हैं, जो सिर्फ यही सब नहीं करतीं। आपस में बहुत प्यार करती हैं और इस हद तक ओरिजिनल हैं कि राजमा-चावल या छोले-भटूरे भी नहीं खातीं। इस फिल्म की सबसे अच्छी बात ये है कि फिल्म सिर्फ इन्हीं गालियों, आलीशान बैंक्वेंट हॉल, दो हज़ार के नकली नोट उड़ाती दिल्ली की पंजाबी बारात या सिर दुखाने वाले लाउड गानों पर सवार होकर ख़त्म नहीं होती। इस फिल्म में एक कहानी भी है जो अंत तक आते-आते हैपी एंडिंग होने की महान भारतीय परंपरा का निर्वाह करती है। मगर, इस बीच में इन चारों दोस्तों की केमिस्ट्री दर्शकों को बांधे रखती है।

इंटरवल के बाद की फिल्म थोड़ी बोरिंग ज़रूर है, मगर जिस तरह के नाम और तड़क-भड़क के साथ आप फिल्म के बारे में अंदाज़ा लगाकर जाते हैं, फिल्म आपको सिर्फ वही नहीं दिखाती। शादी जैसे गंभीर मुद्दे पर इतने हल्के-फुल्के अंदाज़ में जिस गहराई से बहस करती है, वो कमाल है। शादियों के साथ जुड़े नकली दिखावे, तामझाम, पड़ोसियों की गॉसिप और ख़ास तौर पर जुगाड़ विवाह (अरेंज मैरेज) की सच्चाइयों को जिस तरह से फिल्म देखती है, वो इस ‘वीरे दी वेडिंग’ को अटेंड करने लायक बनाता है।

अफसोस ये कि आख़िर तक आते-आते ‘झगड़े की फाउंडेशन है शादी’ मानकर इसकी तमाम खामियों से डरने वाली कालिंदी (करीना कपूर) घुटनों पर बैठकर अपने प्रेमी से शादी ही करती है। इंडियन सिनेमा यू नो!

फिल्म में इतने साफ मकान हैं, इतनी क्लीन चादरे हैं, सोफे हैं, तकिया हैं, इतनी महंगी गाड़ियां है, इतना ज़्यादा अंग प्रदर्शन है कि पुरानी सब्ज़ी मंडी के दर्शक इस नई दिल्ली के दर्शन कर भौचक्के रह जाते हैं। ‘भगवान जब भी लेता है, छप्पर फाड़ कर लेता है’, ‘निरमा ऐड का रिमिक्स’ कुछ इस तरह से इन किरदारों के डॉयलॉग्स में घुला है कि आप फिल्म से कुछ न कुछ स्वाद लेकर लौटते हैं। फिल्म में करीना को देखने जाइए, स्वरा भास्कर आपके साथ वापस आएगी।

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