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अमेठी-रायबरेली का विकास क्यों नहीं कर पाई है काँग्रेस

राहुल गांधी अमेठी के दो दिवसीय दौरे पर होंगे। यह जुलाई सन 2018 है, माने चुनाव से कुछ महीने पहले का समय- इस तरह के दौरे चुनाव के समय और महत्वपूर्ण हो जाते हैं। दो-चार अपवाद वाले कार्यकाल को छोड़ दें तो रायबरेली, सुल्तानपुर (और अब अमेठी) कांग्रेस का पर्याय बने रहे हैं। यदि आपातकाल ना लागू होता तो यह संभव है कि काँग्रेस जीतने का एक रिकॉर्ड बना चुकी होती।

पिछले तीन बार से नेहरू-गांधी परिवार के वंशज राहुल, अमेठी से चुनाव जीतते आ रहे हैं और आगे भी शायद जीतते रहें। यहां दो-तीन बेहद ज़रूरी वर्ड्स हैं जिनपर खास ध्यान देने की ज़रूरत है- चुनाव, वंश, विकास और वायदे। सैद्धांतिक रूप से लोकतंत्र में वंशवाद की राजनीति का कोई स्थान नहीं है, लेकिन भारतीय राजनीति में लोकतंत्र की परिकल्पना वंशवाद के बिना कर पाना मुश्किल है।

लालू, मुलायम, शरद पवार, करुणानिधि, प्रकाश सिंह बादल जैसे उदाहरण हमारे सामने हैं। काँग्रेस का हिसाब थोड़ा अलग है- देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी होने के साथ देश पर सबसे लम्बे समय तक शासन करने का मौका भी काँग्रेस को ही मिला है। अमेठी नया ज़िला है, छोटा है और दो पुराने ज़िलों से काटकर बनाया गया है। अमेठी को गाज़ियाबाद तर्ज पर विकसित करने का प्रयास और वायदे हुए हैं। सड़क किनारे नए शिक्षण संस्थान खुले हैं और कुछ नई फैक्ट्रियां भी। यह भी तय है कि इस बार की चुनावी वायदों में कुछ ऐसे ही उपक्रम पनपा दिए जाएं।

यह विकास के ट्रिकल डाउन मॉडल पर आधारित प्रयोग है, लोकल स्तर पर चतुर्थ श्रेणी की नौकरी और थोड़े ठेके मिल जाते हैं, रायबरेली-अमेठी की जनता का ना तो इससे शैक्षणिक स्तर सुधरता है और ना ही भविष्य बहुत उज्जवल दिखता है।

वंशवाद की राजनीति पर वापस जाते हैं, उत्तर प्रदेश में यादव परिवार वंशवाद के उदाहरणों में काफी ऊपर आता है। परिवार के सदस्य पंचायत से लेकर संसद तक में हैं। चुनाव के अपने गणित हैं, जो लोकतंत्र में इस तरह की राजनीति का स्पेस बनाते हैं और मेंटेन करते हैं। इन सबके बीच सैफई का विकास अनदेखा नहीं किया जा सकता है।

रायबरेली-अमेठी में ना सभी गांवों में ठीक-ठाक सड़कें हैं और ना ही बिजली-पानी की समुचित व्यवस्था। निजी और सरकारी ज़मीनों पर जमकर अवैध कब्ज़े हुए हैं। नहर-तालाब, गैस सिलेंडर, अस्पताल (एम्स गायब है), कोटे का राशन जैसे जाने कितने ही मुद्दे हैं जो काँग्रेंस अपने वायदों के बावजूद पूरा कर पाने में असमर्थ रही है। प्रदेश में काँग्रेस की सरकार न होने का तर्क पुराना और सड़ा हुआ है। रायबरेली और अब अमेठी में जो भी अच्छा-बुरा हुआ है उसमे मुख्यतः काँग्रेस का ही योगदान है। यदि दो लोकसभा क्षेत्रों का विकास कर पाने में काँग्रेस अक्षम है और असमर्थता जताती है तो उसे देश की राजनीति तय करने का अब कोई बहुत अधिकार नहीं है।

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