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भारत में बलात्कारी आखिर क्यों बेखौफ घूमते हैं?

बलात्कारियों और अपराधियों का कोई मज़हब नहीं होता। साहब, मज़हब की राजनीति हमें नहीं चाहिए। समाज में खुलेमाम घूम रहे क्रूर हैवानों से हम भारत की जनता को न्याय और सुरक्षा चाहिए। इस देश में हिन्दू, मुस्लिम, दलित और आदिवासी बच्चियों और महिलाओं के साथ क्रूरतापूर्वक बलात्कार होता है और फिर उसकी हत्या कर दी जाती है और हैवान खुलेआम बाहर घूम रहा होता है क्योंकि ऐसे हैवान किसी राजनीतिक दल से जुड़े होते हैं या फिर अपने इलाके का कोई रसूखदार या फिर दबंग होता है।

मंदसौर मध्यप्रदेश की आठ साल की मुस्लिम बच्ची के साथ बलात्कार होता है। लखनऊ उत्तर प्रदेश के 17 साल की संस्कृति राय का बलात्कार करके उसकी हत्या कर दी जाती है। झारखण्ड के चतरा ज़िला में एक महिला के साथ बलात्कार करने के बाद निर्मम हत्या कर दी जाती है। छतीसगढ़ में ना जाने कितनी आदिवासी बच्चियों का बलात्कार हुआ और उनकी हत्या कर दी गई। बिहार में दलित समाज पर अत्याचार हत्या और दलित महिलाओं के साथ बर्बरता पूर्वक दबंगों द्वारा बलात्कार की लंबी लिस्ट और इतिहास है। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में आदिवासी एवं दलित महिलाओं के साथ बलात्कार होता है।

जिस भारतीय समाज में हम रह रहे हैं वो पहले से ही बीमार और रोगी है, हिंसा का सरोकार सिर्फ सरकारों से नहीं है, ये वीभत्स विचारधारा है यह तो अब दुनिया के सामने पूरी तरह नंगे और निर्लज्ज खड़े हैं।

एक अंतरराष्ट्रीय एजेंसी ‘थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन‘ का अपने सर्वे में कहना बिलकुल गलत नहीं है कि भारत अब महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है।

भारत उन देशों की लिस्ट में शुमार है जो महिलाओं के लिए असुरक्षित जगहे हैं। भारत में रेप, एसिड अटैक, अपहरण जैसी कई घटनाओं के कारण भारत को सुरक्षित नहीं माना गया है। यहां स्थानीय महिलाओं के साथ हुई घटनाओं के अलावा कोई विदेशी महिलाओं के साथ भी दुर्व्यवहार की घटनाएं सामने आती रहती हैं, जिस कारण कई देशों ने भारत के लिए ट्रैवल वॉर्निंग जारी की हुई है।

तमाम तरह की चर्चाओं के बीच हम ये भूल जाते हैं कि इक्कीसवीं सदी के इस भारत में महिलाओं पर अत्याचार में कोई कमी नहीं आई है। आज देश में महिला उत्पीड़न की दिल दहला देने वाले मामलों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। बीच में निर्भया काण्ड के समय ऐसा महसूस हुआ था, जैसे देश अब महिला अत्याचारों के विरूद्ध मुखर हो रहा है। पर सरकारों की नाकाफी कदमों की वजह से बलात्कार और छेडछाड़ जैसी घटनाओं में देरी से होने वाली सुनवाई के कारण अभी भी स्थिति जस की तस है। कभी बलात्कार के आरोपी जुवेनाइल एक्ट की वजह से बच निकलते हैं, तो कभी बदनामी के डर से बलात्कार और अन्य घरेलू हिंसाओं से जूझने वाली महिलाएं आगे नहीं आतीं।

बलात्कार के अधिकतर मामलों में अपराधी सज़ा से बच जा रहे हैं। यानी महिलाओं पर होने वाले समग्र अत्याचारों में सज़ा केवल 30 फीसदी गुनाहगारों को ही मिल रही है। ऐसे में अगर बलात्कारियों और यौन उत्पीड़न करने वालों का हौसला बुलंद होता है तो यह अस्वाभाविक नहीं है।

भारत में हर एक घंटे में 22 बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं। ये वे आंकड़े हैं जो पुलिस द्वारा दर्ज किए जाते हैं। अधिकांश मामले में तो पुलिस रिपोर्ट दर्ज करती ही नहीं है। दूसरे लोकलाज के कारण ऐसे मामलों को पीड़िता के परिजनों द्वारा दबा दिया जाता है। ऐसा कोई दिन नहीं बीतता जब देश के तकरीबन हर कोने से महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की खबरें ना आती हों।

सामंती तथा विकृत रूढ़िवादी ताकतें भी महिलाओं के अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं पर पाबंदी लगाने में पीछे नहीं हैं। कोई आधी आबादी, महिलाओं को मोबाइल फोन के इस्तेमाल करने से रोकना चाहता है, किसी को उसके जीन्स पहनने पर आपत्ति है तो कोई महिलाओं को रात को घर से अकेले ना निकलने का दिशनिर्देश देता है। हर रोज़ महिलाओं को थप्पड़ों, लातों, पिटाई, अपमान, धमकियों, यौन शोषण और अनेक अन्य हिंसात्मक घटनाओं का सामना करना पड़ता है।

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