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एक अपराध जिसे इज्जत के साथ जोड़ दिया

“हुआ है बलात्कार उसका और वही मुँह दिखाने के लायक नही रही”,कैसी है ये इज्जत की परिभाषा?

ये बात सभी पुरुष वर्ग ध्यान से सुनो और समझलो मेरी ना का मतलब ना ही है उसे हाँ से मत जोड़ो|ये आवाज हैं हर लड़की की जो कह रही है की जब भी वो ना कह रही वह उसकी ना ही है वह हाँ नहीं होती उसकी| एक किशोरी हूँ, एक युवती हूँ, हाँ मै एक नारी हूँ| एक नारी है तो इसी समाज का हिस्सा पर फिर भी भेदभाव क्यों इतना| जननी होती है एक नारी फिर भी ये कारुणिक स्थिति क्यों है इसकी? बात अगर समाज की करे तो, सभी अपनी जीवनशैली को बेहतर बनाने में लगा हुआ है| हर किसी की भाग दौड़ भरी जिंदगी है| हर तरफ भागमभाग है,कोई रुकना नही चाहता हैं| पर क्या इस भागमभाग ने इन्सान की सोचने समझने की क्षमता को भी घटा दिया है| क्या इतना शोर है चारो ओर जो किसी मासूम की पीड़ा नही दिखाई देती? दिन-प्रतिदिन हमारे समाज में अपराधो की संख्या बढती ही जा रही है| जिसमे मुख्यतः बलात्कार जैसे घृणास्पद अपराध की घटनाएँ अत्यधिक हैं|

एक स्त्री की इच्छा के विरुद्ध और जोर-जबरदस्ती से बनाये जाने वाले शारीरिक संबंध को बलात्कार कहते है|एक से अधिक पुरुष जब किसी स्त्री के साथ ये जघन्य  अपराध करते है तो उसे सामूहिक बलात्कार कहते है|अब सवाल ये है की ये दुष्कृत्य होते ही क्यों है ?

समाज में सैकड़ो धारणाएँ है इस अपराध से सम्बंधित जैसे जो लड़कियां छोटे और बदकाऊ कपडे पहनती है उनके साथ बलात्कार ही होगा| शराब आदि नशीले पदार्थो का सेवन करने वाली लडकियां चरित्रहीन होती है,ऐसी लडकियो का तो कोई चरित्र ही नही होता ऐसे में उनके साथ कुछ भी घटित होता है तो उसकी दोषी वही होती है| लडकियो का देर रात तक घर से बहार रहना बलात्कार जैसी घटना को न्योता देने जैसा है, अब आधी रात सडको पर चलेगी तो बलात्कार तो होगा ही| जो लडकियां लडको से दोस्ती भाव रखती है या जिनका कोई बॉयफ्रेंड होता है, जो बहुत बोलचक होती है या जो झगडालू होती है वैसी लडकियो के साथ तो बलात्कार ही होगा| बलात्कारी की मानसिक दशा को भी कभी-कभी मुख्य माना जाता है, उसके द्वारा अपने सेक्स डिज़ायर कंट्रोल न कर पाने के कारण बलात्कार कर बैठते हैं|

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पर दरसल तो ये सब बाते मिथ्या है मानसिकता या लडकियो का छोटे कपडे पहनना कोई बलात्कार का कारण कैसे हो सकता है इसका कारण है लडकियो और महिलाओ को एक उपभोग वस्तु समझना| ये कहना गलत नही होगा की समाज में पितृसत्ता को पोषित करने वाली कुछ सामाजिक धारणाये भी इस अक्षम्य अपराध को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है| लड़की और लड़के में बीच भेदभाव की भावना रखना| लडकियो को कमतर समझना और लडको को सभी सुख-सुविधा प्रदान करना और लडकियो को उनसे वंचित रखना| लडको के दिमाग में बचपन से ही ये बात डाल दी जाती है की लड़कियां लडको के आधीन होती हैं|अपने स्वामित्व को स्थापित रखने की इच्छा और खुद को बड़ा और परमेश्वर वाला भाव समाज में इस घोर अपराध की जड़ हैं| इस  स्वामित्व के भाव के कारण ही स्त्री को वस्तु तुल्य समझा जाता है| बलात्कार जैसे घिनोने कृत्य का मूल कारण स्त्री समाज को वस्तु के समान और एक उपभोक तुल्य समझने की विचार-धारा, जिसने पुरुषे के मष्तिस्क को ग्रसित कर रखा है| पति अगर पत्नी के साथ जबरन सेक्स करे तो वो बलात्कार नही है, उसका तो ये हक़ है| किसी के साथ जबरदस्ती करना हक़ कैसे हो सकता है,पति द्वारा किया गया जबरन सेक्स भी बलात्कार ही होता है| कहा जाता है, कि तीर्व कामेच्छा व सेक्स डिज़ायर कंट्रोल न कर पाना भी एक कारण होता है बलात्कार | पर क्या ये सोच पूर्णत: सही है? किसी भी कारणवश जागृत हुई कामेच्छा की इच्छा को शांत करने का विकल्प किसी के साथ जबरन सेक्स करना तो बिल्कुल भी सही नही है|

हमारे समाज में नजरियो की बात करे तो, जब भी किसी स्त्री के या किसी किशोरी के साथ ऐसी वारदाते होती है तो समाज से जुड़े हर तबके की अपनी अपनी व्याख्या होती है| सबसे पहले तो यही की उसकी इज्जत चली गई, वो किसी को अपना मुँह दिखाने के काबिल नही रही| यानि कृत्य किसी का या यूँ कहो की अपनी झूठी मर्दानगी और स्त्री को वस्तु समझने की मानसिकता रखने वाले अभद्र पुरुष का एक स्त्री के साथ आपतिजनक व्यवहार और फिर भी मुँह दिखाने लायक स्त्री ही नही|

पीड़ित महिला के साथ सहानुभूति का भाव प्रकट करते हुए भी यही कहा जाता है, अरे! कितना बुरा हुआ उसकी तो इज्जत चली गई| उसका मान-सम्मान ही खंडित हो गया| किन्तु क्या एक अपराध को इज्जत के साथ जोड़ना निर्णायक हैं| समाजिक कटु बातो के कारण ही बहुत सी लडकियां अपने साथ हुए दुष्कृत्य को बताती ही नही है, और मोन रहकर सहती रहती है या फिर अपने जीवन को ही ख़त्म कर लेती है| लड़की की शारीरिक संरचना को समाज ने अपने ही ठग से परिभाषित किया हुआ है, उसी के आधार पर उसके साथ हुए अपराध को भी उसकी इज्जत के साथ जोड़ दिया गया है| शर्मिंदगी की बात तो ये की इस तरह के कृत्य जब अपने ही सगे-सम्बंधियो द्वारा किया जाता है| बलात्कार एक घातक डंक है जो पीड़िता को हमेशा चुभता रहता है जिसके कारण वह मानसिक रूप से पूरी तरह टूट जाती है| वह खुद को अपवित्र मानाने लगती है और कितनी बार खुद को मौत की नींद सुला लेती है| शादी के मामले में भी उन लडकियो को एक अलग ही नजर से देखा जाता है, जिस कारण बहुत से वाद-विवाद होते है| यह हमारे समाज का एक बहुत ही गन्दा चेहरा है| जहाँ एक तरफ तो पुरुष शादी से पहले भी और शादी के बात भी किसी के साथ भी यौन संबंध बना सकता है| अचरज तो इसमे है की ये समाज उस पुरुष या लड़के को कुछ नही कहता, वह चाहे किसी के साथ भी यौन संबंध बना रहा है, चाहे वो शादी से पहले है या बाद में, सहसाथी वही है या कोई ओर | ये बाते कभी मसलन ही नही बनी| उस पुरुष को कभी आपराधिक दृष्टि से नही देखा जाता| उसके साथ कभी कोई पवित्रता और अपवित्रता की दृष्टि नही राखी जाती पर अगर बात स्त्री की है तो पति के अलावा अगर किसी अन्य पुरुष के कभी उसके साथ कोई संबंध बने है तो वह अपवित्र है|

बात अगर पुरुष वर्ग की करे तो वह खुद चाहे कितने भी संबंध बनाये पर शादी उस लड़की के साथ करेगे जिसने कभी किसी के साथ कोई संबंध न बनाया हो यानि पूर्ण रूप से कुवारी| ऐसे में किसी ऐसी महिला जिसके साथ बलात्कार हुआ है उससे विवाह की तो कोई पुरुष कल्पना भी नही करना चाहेगा| पुरुष ही नही अपितु उसके परिवार वाले भी ऐसी लड़की को अपने घर की बहु बनाने की मंजूरी देते|

एक लड़की जिसके साथ कुछ गलत हुआ है उसके कारण वो अपवित्र कैसे हो गई? कैसे नकारात्मक भावना रख सकता है ये समाज उस युवती के साथ? आखिर क्यों नही रही उसकी इज्जत? इस तरह की विचारधारा भी किसी अपराध से कम नही है|

 

Article Written and Edited By : Radha Suryavanshi

Co-Founder : Jagdisha Foundation

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