एक अपराधी को सिस्टम के संरक्षण में जेल में गोली मारी दी जाती है, एक भीड़ खुश हो जाती है। स्वामी अग्निवेश को भीड़ मारती है, वो बात करने का प्रस्ताव करते हैं मगर, भीड़ सिर्फ मारती है। शशि थरूर के ऑफिस में एक भीड़ घुसती है, तोड़फोड़ करती है। नरेंद्र मोदी बंगाल में रैली करते हैं, भीड़ एक पुलिस अधिकारी को मारती है। एक भीड़ सुषमा स्वराज को ना जाने क्या-क्या अपशब्द कहती है।
एक भीड़ रोज़ किसी विपक्ष के नेता या नेत्री को पकड़कर अभद्रता और तुच्छता की हदें पार करती है। एक भीड़ प्रियंका चतुर्वेदी की बेटी का बलात्कार करने की धमकी देती है। एक भीड़ गौरी लंकेश की हत्या की खुशी मनाती है। उस भीड़ के सदस्य एक महिला को गाली देते हैं।
एक मुस्लिम युवक को सरेआम मारकर, जलाकर फेसबुक लाइव किया जाता है, भीड़ ताली बजाती है। उत्तर प्रदेश में 26 जनवरी को एक भीड़ एक खास इलाके में पहले से गणतंत्र दिवस माना रहे लोगों पर सुनियोजित हमला करती है। बंगाल और उससे सटे राज्यों में एक भीड़ तलवार, भाला, असलहा इत्यादि लेकर खास चिन्हित इलाकों में घुसती है।
जब ऐसी घटनाएं होती हैं तब कहीं दबे मन से उसकी निंदा की जाती है। कहा जाता है कि लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं। फिर समय बीतता है, ऐसे कृत्य करने वाली भीड़ को सम्मानित किया जाता है, कभी जेल में जाकर सम्मानित किया जाता है तो कभी घर बुलाकर और कभी-कभी तो नौकरी की सिफारिश लगाकर। फोटो खिंचाई जाती है, सम्मान महसूस किया जाता है।
यह भीड़ हर बार “भीड़ शब्द” से ही सम्बोधित की जाती है, इसी “भीड़ शब्द” की आड़ में वो बच जाते हैं। पर गौर कीजियेगा तो पाएंगे कि हर बार जिस भीड़ की बात होती है वो भीड़ सिर्फ भीड़ नहीं है, उसका चेहरा भी है। वो तिरंगा लेकर आती है, वो किसी खास रंग में रंगी होती है, वो जय श्री राम और भारत माता की जय जैसे नारे लगाती है।
उसकी पहचान दूर से देखकर की जा सकती है, वो बातचीत में विश्वास नहीं रखती पर उसे सभ्यता नाम की चीज़ पर नाज़ बहुत है। सबसे खास बात, अधिकांशतः देश के प्रधान सेवक उस भीड़ को फॉलो करते हैं, भीड़ उन्हें अपनी प्रेरणा स्रोत मानती है। अधिकतर मामलो में खानापूर्ति भर की प्रशासनिक कार्रवाई होती है, या होती ही नहीं है और कार्रवाई के बदले मिलने वाला सम्मान इतना ज़्यादा होता है कि पुरानी भीड़ नई भीड़ के लिए प्रेरणा स्रोत बनती है।
कहने को यह भीड़ हो सकती है, पर हर राज्य या इलाके में इसका एक ही चेहरा है, एक ही व्यक्ति इस भीड़ की प्रेरणा स्रोत है, सब इस भीड़ का सच भी जानते हैं पर बोलने से डरते हैं, क्योंकि भीड़ तैयार बैठी है किसी नई जगह किसी राम की जय श्री करने को, किसी भारत की माता की जय करने को और भीड़ बनकर निकल जाने को।
आज वो मारे जा रहे हैं जो उनसे मेल नहीं खाते, जो उनसे डरते नहीं हैं। पर जब कल को कुनबा बड़ा होगा तो आपस में अंतर्विरोध बढ़ेगा, बड़ी भीड़ आपस में ज़्यादा वर्चस्व के लिए लड़ेंगी, आप जो आज भीड़ के साथ हैं, हो सकता है कल कोई भीड़ किसी सड़क पर आपका इंतज़ार कर रही हो। आखिर भीड़ ही तो है।