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IIT मंडी में भ्रष्टाचार पर सरकार चुप, कर्मचारी ने विरोध में मुंडवाया बाल

हमारे देश में भ्रष्टाचार का दीमक सदियों से चला आ रहा है। कई सरकारों ने इसके खिलाफ कड़ा रुख ज़ाहिर कर सत्ता हथियाई, लेकिन सत्ता में आने के बाद हर बार आम जनता को धोखा दिया गया।

ऐसी ही कुछ कहानी है मंडी, हिमाचल प्रदेश में स्थित राष्ट्रीय स्तर की नामी संस्थान आईआईटी मंडी की। जहां अभी बरसात के मौसम में भूचाल आया हुआ है। अक्सर शांत रहने वाले हिमाचल में इन दिनों आरोपों का दौर चला जा रहा है। आईआईटी के ही कर्मचारी सुजीत स्वामी एवं एक अधिकारी कर्नल देवांग नाइक ने आईआईटी मंडी में हो रहे कुकर्मों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। गत महीने सुजीत स्वामी ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि किस तरह से भाई भतीजावाद आईआईटी में हावी हो रहा है।

उसके बाद चहेतों को नौकरी, कर दाता के पैसे की बर्बादी, कर्मचारियों में भेदभाव के साथ-साथ ढेरों अनियमतता आदि पर सुजीत स्वामी एवं कर्नल देवांग नाइक ने सबूतों के साथ आईआईटी में हो रहे घोटालों का पर्दाफाश किया। साथ ही सरकार से अपील भी की कि इन सबकी निष्पक्ष उच्च स्तरीय जांच करवाई जाए, जिसके लिए चालीस दिन की समय सीमा सरकार को दी गयी।

सुजीत स्वामी एवं कर्नल देवांग नाइक के अनुसार सरकार ने अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है, बल्कि आईआईटी मंडी ने दोनों कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस थमा दिया है।

सरकार के इस ढीले रवैये से क्षुब्ध होकर सुजीत स्वामी ने मंडी ज़िले के सार्वजनिक मंच पर अपना मुंडन कराकर सरकार के खिलाफ अपना विरोध जताया। सुजीत ने बताया कि सरकार क्यों घोटालों पर चुप है, क्यों जांच नहीं करवा रही, उल्टा आईआईटी के प्रबंधन उन्हें परेशान कर रहे हैं। क्या देश में सच्चाई का साथ देने के लिए कोई नहीं? सरकार ने जो भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना युवाओं को दिखाया था वो झूठा दिखावा था? क्या सरकार इसी तरह देश की नामी संस्थान को बर्बाद होते रहने देना चाहती है? आदि सवालों के साथ सुजीत स्वामी ने सिस्टम की पोल खोलते हुए, अपना मुंडन करवाया।

सुजीत स्वामी ने प्रेस नोट में बताया,

मैं नवंबर 2016 से संस्थान में अपनी सेवाएं नियमति रूप से दे रहा हूं। सरकार एवं मानव संसाधन मंत्रालय की अनदेखी से आहत होकर अपना मुंडन करवाकर सरकार से पुनः उम्मीद कर रहा हूं कि वो इसे गंभीरता से लेगी। लेकिन सरकार इसपर भी नहीं जागती है तो मैं माननीय उच्च न्यायलय की शरण लूंगा।

उन्होंने अपने मुंडन के निम्न कारण बताएं-

1. भाई भतीजावाद, भ्रष्टाचार से युक्त एक राष्ट्रीय संस्थान में जिस तरह सरकार कोई नियंत्रण नहीं कर पा रही है वहां अपनी सेवाएं देना मैं वाज़िब नहीं समझता हूं। चूंकि मेरे सुधार के तमाम प्रयास यहां सरकार की उदासीनता से शून्य साबित हुए हैं।

2. वर्ष 2016 में मेरा चयन हुआ था, उसमें भर्ती के लिए गठित कमिटी में भी नियमों को ताक पर रखकर रजिस्ट्रार एवं स्टाफ के अन्य व्यक्ति को चेयरपर्सन ना बनाकर एक सेवा निवृत को चेयरपर्सन का ज़िम्मा सौंपा गया था। इसके बाबत मैंने आईआईटी और संबधित मंत्रालय को भी सूचित किया था, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। अत: मेरा चयन भी गलत माना जाये।

सुजित ने आगे बताते हुए कहा कि मैंने संस्थान ज्वाइन करने के बाद से ही इस तरह के डरावने माहौल में जहां सत्य के लिए आवाज़ उठाने वालों के लिए तमाम मुश्किलें, ज़िल्लते, उत्पन्न की जाती हैं, एडजस्टमेंट करने का प्रयास किया लेकिन मैं असफल रहा। मैं असफल रहा चुप-चाप तमाशा देखने में, मैं असफल रहा चुप रहने में, जब आउट सोर्स स्टाफ के साथ भेदभाव किया जाता रहा, मैं असफल रहा संस्थान में हो रहे देश के पैसों का दुरुपयोग चुपचाप देखने में, मैं असफल रहा भाई भतीजावाद के सामने आंख मूंदने में, आदि बहुत सी जगहों में असफल रहा।

सुजित ने बाताया कि संस्थान में आंतरिक लोकतंत्र की किस तरह से हत्या की जा रही है उसका एक उदहारण मैं आपको देता हूं। यदि आपको ज्ञात ना हो तो,  कुछ समय पहले मैंने MHRD को पत्र लिखकर कैंपस में पोस्ट ऑफिस खोलने के लिए अपील की थी, जिस पर MHRD ने रजिस्ट्रार से कार्यवाही को कहा गया था, लेकिन रजिस्ट्रार साहब को जब MHRD का पत्र मिला तो उन्होंने मुझे बुलाया और एक अटेंडेंट के सामने इतना ज़्यादा अपमानित किया कि मेरी आंखे भर आईं। क्या यही लोकतंत्र इस उच्च श्रेणी के संस्थान में है कि एक कर्मचारी मंत्रालय को पोस्ट ऑफिस खोलने के लिए पत्र भी नहीं लिख सकता?

संस्थान में देश की सेवा के लिए नहीं बल्कि मुझे लगता है अथॉरिटी की सेवा के लिए कर्मचारियों को नियुक्त किया जा रहा है, जो उनकी हां में हां मिलाते रहे, यह मेरे जैसे लोगों के लिए संभव नहीं है।

संस्थान ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि मैं कुछ असंतुष्ट लोगों के द्वारा संस्थान की इमेज को खराब कर रहा हूं। मैं आपको बताना चाहता हूं, मुझे सेल्फ अप्रेज़ल रिपोर्ट में एक बार वेरी गुड और एक बार आउट स्टैंडिंग दिया गया है। मेरी सैलरी समय पर आ जाती है, मैंने संस्थान में आयोजित निबंध प्रतियोगिता एवं पहेली में प्रथम स्थान प्राप्त किया था, जिसमें इनाम स्वरूप मुझे 2500 रुपये नकद प्राप्त हुए थे वो भी मैंने पीएमओ को भेज दिए थे। मैं अपने कार्य, वेतन और हिमाचल के लोगों से मिले प्यार से पूरी तरह संतुष्ट हूं। पर यह ज़रूर है कि आईआईटी में चल रहे भाई भतीजावाद भ्रष्टाचार, कर दाता के पैसों की बर्बादी से असंतुष्ट हूं और देश के हर नागरिक को असंतुष्ट होना चाहिए यदि वो देश का भला चाहते हैं तो। आईआईटी मंडी में चल रही अनियमितता किसी कैंसर से कम नहीं है जो धीरे-धीरे राष्ट्रीय स्तर के संस्थान को निगल जाएगी। यदि सरकार जल्द सुनवाई नहीं करती है तो अब यह न्याय की लड़ाई माननीय उच्च न्यायलय में पंहुच जाएगी।

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