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कपड़ो से नहीं होता चरित्र का निर्माण।


आज हम एक ऐसे समाज में जीते हैं जहाँ हमारे चरित्र अच्छा है या बुरा इसका निर्णय लोग हमारे कपड़ो से लगते हैं।अगर ऐसा होता था तो क्यों सबसे ज्यादा रेप गांव में होते हैं जहाँ लड़किया ज्यादा सलवार कुर्ते में होती हैं।असल में कचरा हमारे दिमाग में भरा पड़ा है।लोगों की निगाहों में लड़की सिर्फ एक भोग-विलास की वस्तु है।आज रेप की घटनाएं बढ़ती ही जा रही है।बेटी -बचाओ बेटी-पढ़ाओ बस एक स्लोगन ही बन कर रह गया है।रोज न जाने कितनी ही बेटोयों कि आबरू उतारी जा रही है।सारी चीज़ों की जिम्मेदारी सरकार और सिर्फ पुलिस प्रशासन पर नहीं थोप सकते।हमें मिलकर एक सुरक्षित माहौल तैयार करना होगा अपनी बेटियों के लिए ताकि वो बिना किसी डर के घर से बाहर निकल सके और खुल कर सांस ले सके।बेटियां जब जीन्स पैंट पहनती है तो समाज उसे कहता है कि इसने ऐसे कसे हुए कपड़ो पहने थे ना तभी इसके साथ ऐसा हुआ।पर आज उस समाज से मेरा सवाल है कि लोकतंत्र वाले देश भारत में हम सभी रहते हैं जहाँ हमें संविधान ने अपने हिसाब से जीने का अधिकार दिया है और कपड़े जीन्स पहनने से लड़की के चरित्र का निर्माण नही करती है।इस रूढ़िवादी मानसिकता को हमें बदलना होगा तब आएगी बदलाव की क्रांति और होगा महा-परिवर्तन जहाँ हर बेटी फूल की तरह खिल कर जियेगी और वो इन बेड़ियों से आज़ाद होगी जो समाज के बनाये हुए हैं जो खोखले हैं।
बेटियाँ एक घर नहीं बल्कि इस पूरे संसार को रोशन कर देती हैं और सभी का जहाँ खुशियों से भर देती हैं।
आइए हम सभी मिलकर संकल्प ले की हम बेटियों के चरित्र को कपड़ों से नहीं आंकेंगे और एक समृद्ध और विकासशील देश का निर्माण कर पाएंगे।

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