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अगर प्रेम कभी गलत नहीं होता तो होमोसेक्शुअल लोगों का प्रेम स्वीकार्य क्यों नहीं

धर्म की बात तो सब करते हैं लेकिन बड़ी बात होती है जब कोई राजधर्म की बात करता है। यहां राजधर्म से संबंध किसी भी देश या राज्य में रहने वाले नागरिकों से है, उनके अधिकारों से है। लोकतांत्रिक देश में हर एक को अपने अधिकारों को इस्तेमाल करने का पूर्ण रूप से अधिकार है। “बस मैं एक अपराध हर बार करता हूं, आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं”। इसी तर्ज़ पर समलैंगिकता अपराध है या नहीं कि बहुत बड़ी लड़ाई लड़ी जा रही है।

हक की लड़ाई

आज इस कॉम्पिटिशन के ज़माने में हम इतने व्यस्त हैं कि हमारे आस-पास क्या हो रहा है, इससे रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ता लेकिन पड़ना चाहिए क्योंकि आज बहुत बड़ी कौम अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ रही है। डेमोक्रेटिक कंट्री में हर एक को अपनी बात कहने का हक है। हर मुद्दे पर अपनी राय देने वालों के जैसे ही इस मद्दे पर भी राय देने वाले दो खेमों में बट गए हैं। ये कहना भी बिल्कुल गलत नहीं होगा कि समाज के अत्याधिक लोग इसे दूसरी ही नज़रों से देखते हैं जैसे कि ये बहुत बड़ा गुनाह हो।

महाभारत के शिखंडी का उदाहरण

कई लोगों द्वारा इसे धर्म से भी जोड़कर देखा जा रहा है। वेदों-पुराणों से भी जोड़कर देखा जा रहा है। कई धर्मगुरुओं के अनुसार ये धर्म के विरुद्ध है। वहीं मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में दी गई दलील के दौरान महाभारत के शिखंडी का ज़िक्र भी किया गया था, जिसमें भीष्म पितामह से बदला लेने के लिए घोर तपस्या कर वह स्त्री का रूप धारण कर लेता है। कहा गया कि जो बात उस समय भी नैतिक दायरे में आती थी वो आज नहीं आती।

धारा 377

जी हां मैं बात कर रही हूं उसी संवेदनशील मुद्दे की जिसकी सुनवाई माननीय उच्च अदालत कर रहा है। धारा 377 जिसके तहत किसी भी तरह के अप्राकृतिक यौन संबंध को गैरकानूनी ठहराया जाता है। इसके उल्लंघन पर दस साल की सज़ा का प्रावधान है।

क्या है लड़ाई?

फ्रीडम ऑफ प्राइवेसी के अधिकार के बाद LGBTQ ने 377 की धारा को समाप्त करने की अपनी मांगों को काफी तेज कर दिया है। LGBTQ के तहत लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर व क्वीअर आते हैं। उनकी मांग है कि 377 को वैध किया जाए और उन्हें उनका हक दिया जाए।

150 साल की लड़ाई

ये लड़ाई लगभग 150 साल पुरानी है। ब्रिटिशों द्वारा 1861 में इंडियन पीनल कोड के तहत इस कानून को बनाया गया था।

केंद्र सरकार ने छोड़ा सुप्रीम कोर्ट पर फैसला

केंद्र सरकार ने दो समलैंगिकों के यौन संबंध के मसले के फैसले को उच्चतम न्यायालय पर छोड़ दिया है।

कुछ महत्त्वपूर्ण बातें

अब एक बार फिर मुख्य विषय पर लौटते हैं कि क्या ये अपराध है या नहीं? तो सबसे बड़ा सच है कि दो इंसान कभी भी, कहीं भी किसी की तरफ आकर्षित हो सकते हैं वह उसका निजी मसला है। आकर्षण धीरे-धीरे शारीरिक संबंध का रूप ले लेता है। हमारे साहित्यों में भी प्रेम रस को बहुत उच्च स्थान दिया गया है। ऐसे में प्रेम तो गलत नहीं हो सकता है। विश्व के कई देशों में इसे वैध करार दिया गया है।

कई लोगों का मानना है कि समलैंगिकता या होमोसेक्शुअलिटी एक बीमारी है जिसका इलाज कराना चाहिए, मेडिकल को इस पर रिसर्च करनी चाहिए। मेडिकल कहता है कि समलैंकिगता बीमारी नहीं है।

लोकतंत्र की बात करें तो, अगर दो लोग बिना किसी को नुकसान पहुंचाए सही ढंग से जीते हैं तो इसे गलत नहीं ठहराया जाता।

हर एक की भावना की कद्र करना ज़रूरी है क्योंकि “जिंदगी जीने का हक हर एक को है”

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