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गांवों में लोग अजनबी को भी राम राम कहते है

इस देश में पुरानी प्रथा हैः किसी को, अजनबी को भी तुम गांव में से गुजरते हो तो अजनबी कहता हैः ‘जय राम जी!’ मतलब समझे? पश्चिम में लोग कहते हैं, गुड मार्निंग! लेकिन यह उतना मधुर नहीं है। ठीक है, सुंदर सुबह है! बात मौसम की है, कुछ ज्यादा गहरी नहीं। प्रकृति के पार नहीं जाती।
इस देश में हम कहते हैं: जय राम जी! हम कहते हैं: राम की जय हो! अजनबी को देख कर भी…। शहरों में तो अजनबी को कोई अब जय राम जी नहीं करता है। अब तो हम जय राम जी में भी हिसाब रखते हैं– किससे करनी और किससे नहीं करनी! जिससे मतलब हो, उससे करनी; जिससे मतलब न हो, उससे न करनी। जिससे कुछ लेना-देना हो उससे खूब करनी, दिन में दस-पांच बार करनी। जिससे कुछ न लेना-देना हो, या जिससे डर हो कि कहीं तुमसे कुछ न ले-ले, उससे तो बचना, जय राम जी भूल कर न करनी।

‘जय राम जी’ जैसा सरल मंत्र भी व्यावसायिक हो गया है। लेकिन देहात में, गांव में अब भी अजनबी भी गुजरे तो सारा गांव, जिसके पास से गुजरेगा कहेगाः ‘जय राम जी! जय हो राम की!’ वह तुमसे यह कह रहा है कि तुम अजनबी भला हो लेकिन तुम्हारा राम तो हमसे अजनबी नहीं। तुम ऊपर-ऊपर कितने ही भिन्न हो, हम राम को देखते हैं। वह जो कहने वाला है चाहे समझता भी न हो, लेकिन इस परंपरा के भीतर कुछ राज तो है।

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