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चाहत

उसे चाह भी थी तो उस चिड़िया की तरह उड़ने की,
जो खुद मछली की तरह तैरना चाहती थी,
 जो तेरा है, उसमे तू भी खुश नही,
जो उसका है, उसमे वो भी खुश नही,
यह ज़िंदगी है ,
राजा ने भी काटी थी, रंक ने भी काटी थी…
 
किसी की दौलत की भूक कभी नही मिटी,
किसी की भूक ही कभी नही मिटी,
किसी का एक गाड़ी से मन भर गया है,
किसी को कभी साइकल भी नही मिली,
ख्वाब को हम सब बहुत से देख रहे है,
पर ये ज़रूरते किसने बाटी थी?
 
कभी मिले तो पुछलेना उसे,
जो उसको कभी मिली ही नही,
वो खुशी उस के पास काफ़ी थी,
यह कैसा वितरण किया है?
वो उड़ भी रहा है, तैर भी रहा है,
ओर वो तो चल भी नही पाती थी…
 
जिसने ताक़त से जीत लिया है जग को,
उसके पापो को भी माफी थी,
एसी ही यह दुनिया रची है,
एसा ही यह संसार है,
बस इस आस के साथ प्राण छोरना,
की हिम्मत को अभी बाकी थी…
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