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कैसे ये युवा बदल रहे हैं स्कूलों को क्रिएटिव और फ्री स्पेस में

भारत 2020 तक दुनिया का सबसे युवा देश होने का गौरव प्राप्त कर लेगा। ऐसे में ज़रूरी है कि हमारे देश के युवा हर क्षेत्र में काबिलियत हासिल करें। इसके लिए हमें अपनी शिक्षा के मूल आधार को मज़बूत बनाना होगा। इसके लिए ज़रूरी है कि हम सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करें।

सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हासिल हो सके, इसी मकसद से मुंबई में टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान में कार्यरत अयेश्ना और बलजीत ने देश के सुदूर गावों में शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने की ठानी। इस काम में उन दोनों का देश के विभिन सामाजिक संस्थानों के साथ काम करने का अनुभव काम आया और उन्होंने वारित्रा फाउंडेशन नामक संस्था बनाई।

“वारित्रा” एक संस्कृत शब्द है और इसका मतलब होता है “छाता”। अयेश्ना और बलजीत दोनों ही एक मकसद में बड़े पक्के थे कि उन्हें कोई भी काम का डुप्लीकेशन नहीं करना है। अयेश्ना के शब्दों में अगर कहें तो,

हमारे देश में लाखों सामाजिक संस्थाएं काम कर रही हैं और उनमें काफी संस्थाएं बहुत अच्छा काम कर रही हैं। हमें ज़रूरत है इन सभी संस्थानों को एक साथ लाने की। ताकि इनकी कार्यशैली को और अच्छा बनाकर समाज पर एक अच्छा और लम्बे समय तक कायम रहने वाला बदलाव लाया जा सके।

और इस तरह उन्होंने एक ऐसा प्लैटफॉर्म बनाया जो विभिन्न संस्थाओं के साथ मिलकर सामाजिक क्षेत्र में उन्नत तथा टिकाऊ काम कर सके।

उनके इस काम में साथ देने के लिए पश्चिम बंगाल के नरेन्द्र ओर गुजरात के अखलाक भी शामिल हो गए। इस तरह इन चार साथियों ने अपनी-अपनी आरामदायक नौकरियां छोड़कर गांव में काम करने की ठानी। चूंकि बलजीत ओर अयेश्ना दोनों ही हरियाणा से थे तो दोनों ने पहला प्रोजेक्ट हरियाणा में करने का सोचा और चारों अपनी-अपनी नौकरियों से इस्तीफा देकर हरियाणा के करनाल ज़िले में बस गए।

वारित्रा संस्थान ने पहले साल में करनाल के सुदूर गावों के 15 स्कूलों को बदलने की योजना बनाई। इसके लिए उन्होंने 23 स्कूलों का दौरा किया जिसमें से उन्होंने 6 स्कूलों को अपने पहले चरण में लिया। सभी अधिकारीयों ने वारित्रा फाउंडेशन के प्रोजेक्ट का भरपूर साथ दिया। इससे उनके सपनों को पंख लग गए। फिलहाल 16 जुलाई तक वारित्रा 6 स्कूलों में अपना प्रोजेक्ट चला चुकी है। इन सभी गांवों में स्कूल के बाद 4 से 7 बजे तक लर्निंग सेंटर चलाया जाता है। गांव के बच्चे, चाहे वो प्राइवेट स्कूल के हों या सरकारी स्कूल के, वो वहां आ सकते हैं ओर पढ़ाई कर सकते हैं। यहां पर बच्चों को खेल और गतिविधियों के माध्यम से सिखाया जाता है। वारित्रा का सपना है कि लर्निंग सेंटर एक ऐसा केंद्र बने जहां बच्चों का सर्वांगीण विकास हो।

लर्निंग सेंटर खोलने के पीछे सरकारी स्कूलों के टीचर्स का सुझाव था। जब वारित्रा टीम ने विभिन्न स्कूलों का दौरा किया तो उन्हें बताया गया कि बच्चे घर पर जाने के बाद होमवर्क या किसी भी तरह की पढ़ाई नहीं करते हैं और इससे उनका लर्निंग लेवल कम होता है। जैसे 7वीं के बच्चे तीसरी कक्षा की चीज़ें भी अच्छे से पढ़ नहीं सकते हैं। इससे स्कूलों में टीचर्स को पढ़ाने में दिक्कत होती है।

स्कूलों में टीचर्स पर सिलेबस को पूरा करने का प्रेशर होता है जिससे कमज़ोर बच्चों पर ध्यान नहीं दिया जाता और वे दिनों दिन और कमज़ोर हो जाते हैं। ऐसे में आवश्यक है कि उन्हें उनके लेवल के हिसाब से पढ़ाया जाए। एक बार इन बच्चों का लेवल बढ़ गया तो शिक्षा में इनकी रूचि अपने आप बढ़ जाएगी। इससे स्कूलों में टीचर्स को पढ़ाने में भी आसानी होगी।

लर्निंग सेंटर शुरू होने के बाद वारित्रा टीम टीचर्स के साथ संक्षेप में बात करती हैं और एक-एक बच्चे के लिए प्लानिंग तैयार की जाती है। इसके बाद वारित्रा टीम, प्रिंसिपल और टीचर्स के साथ मिलकर स्कूल के विकास के लिए प्लानिंग करती है, इसमें स्कूल में एक साल में क्या-क्या बदलाव लाए जा सकते हैं, दो साल में क्या बदलाव लाए जा सकते हैं और तीन साल में क्या बदलाव लाए जा सकते हैं, इसकी डिटेल में प्लानिंग होती है।

बलजीत एक लम्बी मुस्कराहट के साथ कहते हैं,

हम दान देने में विश्वास नहीं करते कि कहीं गए और दान दे दिया। हम लोगों के साथ मिलकर काम करते हैं और जब लोगों को लगे कि उनके प्रयासों से बदलाव आया है तो वो हमारी असली जीत है।

वारित्रा की कोशिश है कि स्कूलों को एक फ्री स्पेस बनाया जाए, जहां बच्चे बिना किसी डर, झिझक के गुणात्मक शिक्षा हासिल कर सकें। इसके लिए हम स्कूल की इमारत को एक लर्निंग स्पेस में तब्दील कर देते हैं। जो ना केवल बच्चों को अच्छी लगती है पर उन्हें सिखाती भी है।

इसी तरह हर स्कूलों में लाइब्रेरी तैयार की जा रही है, जिसमें किताबों के साथ-साथ खिलौने भी रखे जाते हैं, ताकि बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके। इसी तरह कोशिश की जाती है कि स्कूल की ज़रूरत के हिसाब से और लाए जाएं। संस्थाओं, सरकारी अधिकारियों, स्कीम इत्यादी की मदद से स्कूल में क्या-क्या बदलाव लाए जा सकते हैं इस पर भी विचार किए जाएं।

वारित्रा अगस्त महीने के अंत तक 12 स्कूलों को कम्पलीट करना चाहती है और बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए लगातार प्रयासरत है।

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