Site icon Youth Ki Awaaz

बाढ़ जब आता है तो सरकार की सद्बुद्धि भी बहा ले जाता है क्या?

द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा जापान के दो बड़े शहर हीरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराने के बाद जापान की अर्थव्यवस्था बहुत ज्यादा लड़खड़ा गयी थी। अचानक से आने वाले भूकंप और बारिस से निपटने के लिए उनके पास कोई व्यवस्था और साधन नहीं थे। इस बारिस और भूकंप से अर्थव्यवस्था और जान माल का काफी नुकसान होता था। आप अंदाजा लगा सकते हैं जिस देश के दो बड़े शहर को परमाणु बम से ध्वस्त कर दिए जाएं जिसके निशान आज भी मौजूद हैं, की स्थिति कितनी दयनीय रही होगी, भारत पाकिस्तान के विभाजन से भी अधिक विध्वंसकारी और दयनीय। इस स्थिति में प्राकृतिक आपदाओं से बचाव को ध्यान में रखते हुए देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए योजना तैयार कर उसका क्रियान्वयन करना कितनी टेढ़ी खीर रही होगी।

1950-1960 के दशक में जापान के शहर अचानक होने वाली बारिस से झील बन जाते थे, जापान की राजधानी टोक्यो के बुजुर्ग नागरिक बताते हैं कि 50-60 के दशक में वे बारिस होने पर तैरते हुए आते जाते थे या नावों का सहारा लिया जाता था। गांवों की स्थिति भी ऐसी ही थी, कुछ गांवों की स्थिति आज भी ऐसी ही है लेकिन काफी हद तक बाढ़ विपदा पर विजय पाने में वे सफल रहे हैं। जापान में निर्मित, भूकंप विरोधी मकान आकर्षित तो करते ही हैं इससे भी अधिक मुझे जापान का Flood Solution System प्रभावित किया। टोक्यो में सिविल इंजीनियरिंग का बेजोड़ कामयाबी Under Ground Discharge Channel विश्व को, बाढ़ विपदा का प्रबंधन कैसे किया जाता है यह सिखाता है। इंजीनियरिंग का यह नमूना विश्व के लिए आश्चर्य है। अंडर ग्राउंड वाटर डिस्चार्ज सिस्टम मुख्य रूप से 30 मीटर विड्थ और 70 मीटर हाई वर्टिकल शॉफ्ट्स, 6.3 किलोमीटर लंबे चैनल, 177 मीटर लंबा और 78 मीटर चौड़ा प्रेशर कंट्रोल्ड टैंक, और डिस्चार्ज पम्प स्टेशन से बना हुवा है। नदी और नालों का पानी विभिन्न वर्टिकल शॉफ्ट्स से टनल में से होते हुए प्रेशर कंट्रोल्ड टैंक में जमा होता है यह टैंक बहुत सारे पिलर को खड़ा करके 22 मीटर जमीन से नीचे बनाया गया है जो पानी के प्रेशर और बहाव एडजस्ट करता है, फिर डिस्चार्ज पम्प स्टेशन से 200 घन मीटर/सेकंड से पानी छोड़ दिया जाता है। इस तरह जापान द्वारा बाढ़ आपदा और जल निकासी समस्या को हल किया गया, चीन साउथ कोरिया आदि देश इस तकनीक का अध्ययन कर वाटर ड्रेनेज सिस्टम को डेवलोप कर रहे हैं।

जापान जैसा छोटा सा देश जहां की पॉपुलेशन डेंसिटी अधिक है, अंडर ग्राउंड वाटर डिस्चार्ज चैनल डेवेलोप कर इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना पेश कर विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर सकता है तो भारत क्यों नहीं?

भारत में यूनाइटेड नेशन ऑफिस फ़ॉर डिज़ास्टर रिडक्शन की रिपोर्ट कहती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रतिवर्ष बाढ़ और जल भराव से 35 हजार करोड़ का नुकसान होता है। योजना आयोग के बाढ़ पर बने समूह की रिपोर्ट के आधार पर भारत भूभाग का 4.56 हेक्टेयर क्षेत्र,जो की आठवां हिस्सा है बाढ़ प्रभावित है। इसके अलावा जनता के जान माल का भारी नुकसान होता है। हर साल सैकड़ों लोग बाढ़ और बाढ़जन्य बीमारियों से मरते हैं। यह आँकड़े क्या सिर्फ जनरल नॉलेज के लिए है?

प्रत्येक वर्ष बाढ़ से अर्थव्यवस्था को जितना नुकसान होता है उतने में तो एक एक शहर कस्बे और गांवों को बाढ़ विपदा से राहत के लिए युक्तियां लगाई जा सकती हैं।लोगों को प्राकृतिक आपदाओं और उन आपदाओं के कारणों को समझा कर उन्हें पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जा सकता है। पर जिस देश की संस्कृति ही भ्रष्टाचार है उस देश में यह कैसे संभव है?यहाँ तो अनावृष्टि और अतिवृष्टि का पैसा ही डकार लिया जाता है।

दुनिया में सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान भारत मौसिनराम और चेरापूंजी है, अधिकांस प्राकृतिक धरोहर भी भारत में ही बचा है। पर यहां की सरकारें इन्हें संजोने की बजाय मंदिर मस्जिद और विशाल मूर्तियों में ही उलझा रहा है।

मध्यप्रदेश का ये आलम है कि बारिस करवाने सत्ता में आसीन नेता मेंढक मेंढकी का ब्याह रचा रहे हैं, अरे कौनसा युग चल रहा है ये। बेजा कंस्ट्रक्शन से पहाड़ी वादियों, घाटियों, दर्रों के अस्तित्व को ही खत्म करने में लगा हुवा है। केदारनाथ, गंगोत्री, वैष्णोदेवी, अमरनाथ जैसे प्राकृतिक जगह धर्म आस्था श्रद्धा के नाम पर प्रकृति को तहस नहस करने और पैसे कमाने के हथकंडे मात्र हैं, वरना वहां इतनी विशाल मात्रा में अपशिष्ट पदार्थों का जखीरा ना होता। पिछले कुछ सालों से इन स्थानों में प्रकृति के परिवर्तन का विकराल नजारा देखने को मिल रहा है। सत्ता लोलुप सरकार और मूर्ख जनता को प्रकृति का यह संकेत समझ क्यों नहीं आ रहा है?

बिहार का शोक कोसी नदी के तांडव से हर साल बिहार वासी दो दो हाथ करते हैं, साथ ही सूखे दिनों में पीने के पानी का हाहाकार गूंजता है। आखिर यह पानी जाता कहाँ है? सरकारें क्यों इस ओर ध्यान नहीं देती है और हर साल बाढ़ से होने वाले नुकसानों की वसूली लस्त पस्त जनता से करती है। देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई हर साल बारिस के पानी में तैरती रहती है, हाल ही मुम्बई में भारी बारिश हो रही है और भाजपा के प्रवक्ता संदीप पात्रा को छाता लेकर सड़क में भरे जांघ भर में तैरते हुए देख सकते हैं, देखिएगा टीवी के किसी डिबेट में उनसे पूछा जाएगा तो पात्रा जी इसका दोष भी कांग्रेस की सरकार पर मढ़ देंगे।

क्या देश की आर्थिक राजधानी और अन्य शहरों को फ्लड प्रूफ नहीं बनाया जा सकता? देश के विभिन्न राज्यों में ऐसे हालात उत्पन्न हुए हैं और आगे भी उत्पन्न होने के आसार दिख रहे हैं क्योंकि यहां की जनता अंधाधुंध विकास के बलबूते पर प्रकृति का विनाश को उतारू है और इन्हीं जनता की चुनी हुई सरकारें अपनी योजनाओं से प्रकृति का बेजा दोहन करने को लालायित हैं।

जब मैं 8-10 साल का था तब गांवों गांवों में कई छोटे छोटे तालाब बनवाये जाते थे ताकि बारिस के जल को रोका जा सके, ग्रामीणों को इससे रोजगार भी मुहैय्या हो जाता था। अब जब मैं 26 साल का हो गया हूँ तो बड़े बड़े मशीनों के द्वारा बड़े बड़े डेम बनता हुवा देख रहा हूँ, और साथ ही देख रहा हूँ स्थानीय विशेष और डूब प्रभावितों का दारुण विस्थापन तथा पीने के पानी का हाहाकार। दुनिया भर में पीने का स्वच्छ पानी सिर्फ 3% बचा है जिसमें से 2.4% ग्लेशियरों और 0.6% पानी नदी झील और तालाबों में है। जमीन के नीचे सिर्फ 1.6% पानी है और यह सब मीठे पानी के स्रोत सिकुड़ते जा रहे हैं।

यह समय जनता और सरकारों के होश में आने का है वरना हवा और पानी का बाजारवाद आम जनता पर हावी हो जाएगा। मानवों के करतूतों ने प्रकृति को परास्त कर दिया है, एक समय आएगा जब प्रकृति के पास देने के लिए सिर्फ विनाश ही विनाश होगा अगले सौ सालों के भीतर उस विनाश का इंतजार करिये।।

Exit mobile version