प्रिय बंधुओं
एक मशहूर अभिनेत्री ने अपने सप्ताहांत की बारे में एक मासूम सी तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट की. उस पर आये हुए शर्मनाक और गलीज़ कमेंट ये दर्शाते हैं कि आदमी को इन्सान बनने में अभी ख़ासा वक़्त लगने वाला है. अगर कोई अच्छी तरह से तैयार होकर एक खूबसूरत तस्वीर सोशल मीडिया पर डालता है तो क्या इसलिए कि उसे ‘आंटी जी’ जैसे विशेषण से नवाज़ा जाए. कौन हैं ये लोग जो हमें उम्र के तकाज़े समझाते नहीं थकते? ये होते कौन हैं ये तय करने वाले कि किस उम्र के लोग कैसी तस्वीरें पोस्ट कर सकते हैं या किस तरह की ज़िन्दगी जी सकते हैं?
मुद्दा अब एक तस्वीर का नहीं है. मुद्दा ये है कि उन औरतों को जो आर्थिक और सामाजिक तौर पर स्वतंत्र एवं आज़ाद ख्याल हैं, कब छुटकारा मिलेगा इस तरह की सोच से? क्या हमें अपने व्यक्तित्व को सिर्फ इसलिए समेट लेना चाहिए कि किसी अनजान शख्स को हमारा आचरण उनके द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं लगा. उस व्यक्ति को अपनी बात कहना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा लगता है पर साथ ही वो किसी की निजता का हनन भी तो है.
कब समझेगा हमारा समाज कि लोगों को अंकल आंटी बनाना या उनका वर्गीकरण करना एक संकुचित सोच का परिचायक है. गरिमामय की परिभाषा क्या एक बेरंग ज़िन्दगी है?