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राजनीति की मूल कला

राजनीति कोई कला थोड़े ही है–लूट-खसोट है। इसमें कला वगैरह क्या है? कोई डकैती की कला होती है? राजनीति डकैती है। दिन-दहाड़े! जिनको लूटो, वे भी समझते हैं कि उनकी सेवा की जा रही है! यह बड़ी अदभुत डकैती है। डाकू भी इससे मात खा गए। डाकू भी पिछड़ गए। सब तिथि-बाह्य हो गए–आउट ऑफ डेट। इसलिए तो बेचारे डाकू समर्पण करने लगे कि क्या सार है! चुनाव लड़ेंगे, उसमें ज्यादा सार है।
तो राजनीतिज्ञों के सामने डाकू समर्पण कर रहे हैं, क्योंकि देख लिया डाकुओं ने, इतनी समझ तो उनमें भी है, कि मारे-मारे फिरो जंगल-जंगल और हाथ क्या खाक लगता है कुछ! और हमेशा जीवन खतरे में। इससे तो राजनीति बेहतर।
यह डकैती की आधुनिक व्यवस्था है, प्रक्रिया है।
एक मिनिस्टर–
जनसंपर्क दौरे पर बाहर निकले।
मंजिल पर पहुंचने से पहले
डाकुओं द्वारा पकड़े गए
रस्सियों से जकड़े गए
कार से उतार कर पेश किए गए
सामने सरकार के
बुरी तरह हांफ रहे थे
मारे डर के कांप रहे थे
तभी बोल उठा सरदार–
डरो मत यार
हम तुम एक हैं
दोनों के इरादे नेक हैं
मुझे नोट देकर,
तुम्हें वोट देकर।
तुम्हारे हाथ सत्ता
हमारे हाथ बंदूक
दोनों के निशाने अचूक।

हम बच रहे हैं अड्डे बदल
और तुम दल बदल कर
दोनों ही एक-दूसरे के प्रचंड फ्रेंड
जनता को लूटने में दोनों ट्रेंड।
या यों कह लो सगे भैया,
रास्ते अलग-अलग
लक्ष्य दोनों को रुपैया।
दोनों के साथ पुलिस
हमारे पीछे, तुम्हारे आगे।
यहां आए हो तो एक काम कर जाओ
अपनों के बीच आराम कर जाओ।
बैंक लूटने के उपलक्ष में, हमारे पक्ष में
आज की रात ठीक आठ बजे
तुम्हारा भाषण है
और तुम्हारे ही हाथों
नए अड्डे का
कल उदघाटन है।
राजनीति की कला क्या है? कोई कला नहीं है। सीधी-साफ डकैती है। शुद्ध डकैती है। डाकुओं के दल हैं। और उन्होंने बड़ा जाल रच लिया है। एक डाकुओं का दल हार जाता है, दूसरों का जीत जाता है; दूसरों का हार जाता है, पहलों का जीत जाता है। और जनता एक डाकुओं के दल से दूसरे डाकुओं के दल के हाथ में डोलती रहती है। यहां भी लुटोगे, वहां भी लुटोगे। यहां भी पिटोगे, वहां भी पिटोगे। होश पता नहीं तुम्हें कब आए!
जिस दिन तुम्हें होश आएगा, उस दिन राजनीति दुनिया से उठ जाएगी; उस दिन राजनीति पर कफन ओढ़ा दिया जाएगा; राजनीति की कब्र बन जाएगी। राजनीति की कोई भी आवश्यकता नहीं है।
क्या सुंदर शब्द गढ़ा है लोगों ने–राजनीति! जिसमें नीति बिलकुल भी नहीं है, उसको कहते हैं राजनीति। सिर्फ चालबाजी है, धोखा धड़ी है, बेईमानी है।
रावण द्वारा सीता अपहरण के बाद
राम ने अपने भक्त हनुमान को बुलाया
और भरे हृदय से यह बताया
दुनिया कुछ भी कहे,
तू मेरा दास है
पर मुझे अपने से भी ज्यादा
तुझ पर विश्वास है
जाओ जल्दी से जाओ,
सीता को खोज कर लाओ
यह मेरी निशानी देकर
उसे तसल्ली दे जाओ।

हनुमान ने रामचंद्रजी के पैर छुए
सीता की खोज में रवाना हुए
रावण के दरबार में पहुंचे
उसे देखकर
गुस्से में जबड़े भींचे।
कहा–दुष्ट, सीता को लौटा दे
क्यों मरने को तैयार हो रहा है?

पर कलियुग का रावण होशियार था
उसने बड़े प्यार से हनुमान जी को गले लगाया
और समझाया–
देख यार,
तू जंगल में पड़ा-पड़ा
क्यों अपनी जवानी बरबाद कर रहा है?
भूख से तेरा पेट कितना सिकुड़ रहा है!
मैं चाहूं तुझे लखपति बना दूं
मेरे मंत्री मंडल में एक जगह खाली है
तू कहे तो तुझे मंत्री बना दूं।
सुनते ही
पत्थर से भी ठोस हनुमान जी
ढीले पड़ गए
वे राम के तो पैर छूत थे,
पर रावण के पैरों में पड़ गए
बोले–
माई-बाप!
सीता का तो केवल बहाना था,
मुझे तो वैसे ही आप के पास आना था
अरे! मैं आप के इस अहसान की कीमत
कैसे चुकाऊं?
आप मेरी पूंछ में आग लगवा दें
तो उस राम की अयोध्या फूंक आऊं
मैं उसकी किस्मत कभी भी फोड़ सकता हूं
आप के मंत्री मंडल में
एक जगह और भी खाली हो
तो लक्ष्मण को भी तोड़ सकता हूं
इस गद्दी के लिए एक सीता तो क्या
हजार सीताएं आप के पास
छोड़ सकता हूं
आप भी बेवकूफ हैं,
कहीं कलियुग में
सीता चुराते हैं
अरे
पद के लिए तो आज के राम
अपने आप
आपके पास चले आओगे
और अपनी सीता
खुद आप के पास छोड़ जाएंगे।
राजनीति कोई कला नहीं है। कला तो उसे कहते हैं, जिससे सृजन हो। राजनीति तो विध्वंस है, शोषण है, हिंसा है; हालांकि नकाब ओढ़ने पड़ते हैं, मुखौटे ओढ़ने पड़ते हैं, अपने को छिपा-छिपा कर चलना पड़ता है। राजनीतिक नेता के पास जितने चेहरे होते हैं उतने किसी के पास नहीं होते। उसको खुद ही पता नहीं होता कि उसका असली चेहरा कौन सा है। मुखौटे ही बदलता रहता है। और दुनिया तब तक धोखे में आती रहेगी, जब तक प्रत्येक व्यक्ति थोड़ा सा जागरूक नहीं होता; थोड़ा होशपूर्वक देखता नहीं कि यह सब क्या जाल है!
देशों की जरूरत है? लेकिन देशों की बात छोड़ो, राजनेता चाहता है, प्रदेश होने चाहिए। प्रदेश ही नहीं होना चाहिए, राजनेता की कोशिश होती है कि हर जिला प्रदेश बन जाना चाहिए। तोड़े जाओ, दुनिया को जितना तोड़ो, उतने प्रधानमंत्री होंगे, उतने राष्ट्रपति होंगे। दुनिया को जोड़ो तो प्रधानमंत्री कहां होंगे, राष्ट्रपति कहां होंगे? राजनीति जुड़ने नहीं देना चाहती आदमी को और तुम्हारे तथाकथित धर्म भी नहीं जुड़ने देना चाहते; दोनों राजनीति के ही दो पहलू हैं।
जो चीज तोड़ती है, वह पाप है। जो चीज जोड़ती है, वह पुण्य है। और पुण्य की कला होती है, पाप की कोई कला होती है? किसी को मारना हो इसमें कुछ बड़ी कला की जरूरत है? किसी को जिलाना हो तो कला की जरूरत होती है। धर्म कला है–असली धर्म; राजनीति नहीं।

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