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रेलमंत्री जी, गरीब बेरोज़गार युवक धन उगाही का साधन नहीं हैं

एक लंबे अरसे के बाद रेलवे में बहाली आती है। देश के हर बड़े-बड़े अखबारों में बड़े-बड़े इश्तेहार दिए गए कि ये दुनिया की सबसे बड़ी बहाली प्रक्रिया है। 1 लाख पद भरे जा रहे हैं। पूरे ताम-झाम के साथ बहाली प्रक्रिया प्रारंभ हुई किन्तु, जैसे-जैसे फॉर्म भरने शुरू हुए ये सबसे बड़ी बहाली प्रक्रिया कम, डिजिटल बेरोज़गारी जनगणना रजिस्ट्रेशन साबित होने लगी।

देखते-देखते 2.5 करोड़ अभ्यर्थियों ने रजिस्ट्रेशन कराया। शायद हिन्दू-मुस्लिम, भारत-पाकिस्तान, मंदिर-मस्जिद और गाय जैसे मुद्दों में व्यस्त समाज को ये अंदाज़ा ही नहीं था कि उनके पास एक पेट भी है, जिसे भरने के लिए कमाना होगा और कमाने के लिए रोज़गार की ज़रूरत पड़ेगी।

अभ्यर्थियों की इस भारी भरकम संख्या को देखकर, रेलवे बोर्ड भी अपने हाथ खड़े कर दिए और अप्रैल में तय परीक्षा टाल दी गई। फिर छात्रों के इंतज़ार का समय शुरू हुआ और फिर एक दिन अचानक सूचना आई कि कुछ दिनों में एडमिट कार्ड आने वाला है। जब अभ्यर्थियों ने एडमिट कार्ड में अपना-अपना एग्ज़ाम सेंटर देखा तो दिल ही बैठ गया, कई बच्चों पर चिंता का पहाड़ टूट पड़ा। उन्होंने सोचा नहीं था कि जिस सरकार ने उनसे उसके परीक्षा शुल्क के 400 रूपए लौटाने का वादा किया है, वो पहले उनसे 5000 रूपए वसूल करेगी।

आरा में रह रहे बच्चों का सेंटर हैदराबाद दे दिया गया, तो हैदराबाद के बच्चों का सेंटर कोलकाता, किन्हीं का सेंटर 1500 किमी दूर तो किन्हीं का 1800 किमी दिया गया। वक्त इतना भी नहीं दिया गया कि अभियार्थी रिज़र्वेशन करा सकें।

वैसे रेलवे की इस भर्ती प्रक्रिया में शामिल होने वाले अधिकतर अभ्यर्थी ऐसे हैं जो रिज़र्वेशन कराकर एग्ज़ाम देने जाने की क्षमता रखते ही नहीं हैं। वे निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से आते हैं और हैदराबाद जैसे शहरों में जाना और वहां रुकना स्वप्न के सामान ही है।

हालांकि कॉंग्रेस सांसद रंजीत रंजन द्वारा संसद में इस मुद्दे को उठाए जाने के बाद इंडियन रेलवे ने इस दिशा में सुधार किया है। रेलवे ने अपने बयान में कहा है कि 71 फीसदी से ज़्यादा अभ्यर्थियों के परीक्षा केंद्र उनके शहर के 200 किलोमीटर के दायरे में रखे जाएंगे।

रेलवे की इस सुधार से अभ्यर्थियों को राहत मिलेगी लेकिन, रेलवे ने पहले इस बात को ध्यान में क्यों नहीं रखा? क्या रेलवे को इन अभ्यर्थियों की आर्थिक स्थिति का अंदाज़ा नहीं है। इनमें से किसी के पिता एटीएम गार्ड हैं, महीने के 3500 रूपए कमाते हैं। ऐसे में उनके बच्चे 5000 रूपए लगाकर एग्ज़ाम देने किस प्रकार जाते? अगर किसी भी तरह जनरल डब्बे में खड़े होकर, लटकते हुए चले भी जाए तो क्या वो इस हालत में रहेंगे कि वो सही से अपनी परीक्षा दे सकें?

क्या यही ‘सबका साथ, सबका विकास’ मॉडल है? जहां पहले ही विकास के दौर से निम्न मध्यमवर्गीय बच्चों को निकाल फेंकने की साजिश की जा रही है। यूपीएससी जैसी परीक्षाओं में मात्र 100 रूपए एग्ज़ाम फीस ली जाती है और सफल रूप से समय पर एग्ज़ाम भी होता है लेकिन, रेलवे के निम्न पदों के लिए 500 रूपए परीक्षा शुल्क ली गई।

जब एक निजी चैनल के पत्रकार ने इसपर सवाल उठाए तो रेल मंत्री ने दवाब में आकर 400 रूपए वापस करने का भरोसा दिया लेकिन, वो 400 कब मिलेंगे उसका कोई अता-पता नहीं। यानि भर्ती प्रक्रिया के प्रारंभ से ही रेल मंत्रालय द्वारा गरीब अभ्यर्थियों से धन उगाही की कोशिश की जा रही है।

रेल मंत्रालय और रेल मंत्री को ये समझना चाहिए कि रेलवे ने जिस पोस्ट के लिए बहाली निकाली है उसमें किसी अमिर घर के बच्चे नहीं बल्कि गरीब और निम्न मध्यवर्गीय परिवार के बच्चे जाते हैं। ये अभियार्थी उन्हीं की संस्था के कल के भविष्य बनेंगे और रेलवे को आगे ले जाएंगे, उन्हें धन उगाही का साधन ना बनाए।

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