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“धर्म के नाम पर मारने वाली भीड़ का बहिष्कार ज़रूरी है”

आज के परिदृश्य में राहत इंदौरी जी की ये पंक्तियां बिलकुल सटीक बैठती हैं-

अगर खिलाफ हैं होने दो जान थोड़ी है

ये सब धुआं है कोई आसमान थोड़ी है

 

लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में

यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है

 

मैं जानता हूं के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन

हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है

 

हमारे मुंह से जो निकले वही सदाकत है

हमारे मुंह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है

 

जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे

किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है

 

सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में

किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

आखिर हम कब तक इतिहास के पन्नों में खोए रहेंगे, कब तक इतिहास को कोसते रहेंगे और कब तक इतिहास की आड़ में आने वाले भविष्य को धूमिल करते रहेंगे। राजस्थान के अलवर में एक बार फिर गोरक्षा के लिए भीड़ एक व्यक्ति की जान की दुश्मन बन गई। पहले पहलू खान और अब अकबर खान। लोकतंंत्र पर भीड़तंत्र भारी पड़ती नज़र आ रही है।

सिर्फ शक के आधार पर भीड़ इकट्ठा हो जाती है और फिर शुरू होता है गोरक्षा के नाम पर इंसाफ का सिलसिला। ये इंसाफ वो लोग करते हैं जिन्होंने शायद ही उस गाय को कभी एक निवाला खिलाया हो। ये कभी पहलू खान को मारते हैं, तो कभी अकबर खान को मौत के घाट उतारते हैं।

अब इस भीड़ को क्या नाम दें, समझ से परे है लेकिन, सवाल ये है कि सरकार इस भीड़तंत्र को क्या नाम देती है? क्योंकि सरकार खुलकर भीड़तंत्र के खिलाफ कुछ बोलती नहीं है और अब भीड़ के खिलाफ कानून बनाने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया है।

गोरक्षा के नाम पर लोगों की भीड़ और प्रशासन-कानून की धज्जियां उड़ाने वाले लोग दिनदहाड़े मौत का तमाशा लगा देते हैं। इस भीड़ की ज़द में आने वाले की जात पर भी निर्भर करता है कि वो कितना दोषी है। फिर उसके बाद उसकी पिटाई की जाती है। उसकी मौत हो जाने के बाद पुलिस जांच करती है कि वो दोषी था भी या नहीं।

हद तो तब हो जाती है जब उस मामले में गिरफ्तार अभियुक्तों के छूटने पर उनको सम्मानित किया जाता है। जयंत सिन्हा ने कुछ ऐसा ही किया। उनका सम्मान करके ये साबित किया जाता है कि हमारे समाज में मानवता के लिए कोई जगह नहीं है, क्योंकि हम तो कट्टरपंथ को बढ़ावा दे रहे हैं, तो कैसे कोई मानवता की बात कर सकता है और ये सब बिना सत्ता की शह के संभव नहीं है।

मोदी सरकार बनने के बाद गोरक्षा के नाम पर अब तक 61 घटनाएं हो चुकी हैं और आंकड़े लगातार बढ़ते जा रहे हैं। 2017 के पहले 6 महीने में 20 हमले हो चुके हैं और गो हिंसा के मामले में 2017 सबसे बुरा साल रहा। आंकड़े बताते हैं कि सबसे ज़्यादा घटनाएं बीजेपी शासित राज्यों में हुई हैं। 

2014 में मोदी सरकार बनने के बाद गो हिंसा के मामलों में 97% की बढ़ोतरी हुई है। फर्ज़ी गोरक्षा के नाम पर असली गुंडों की भीड़ जुट जाती है। जिन्हें ना तो कानून की परवाह होती है और ना ही प्रशासन का डर। बस अपने झूठे वर्चस्व को कायम रखना होता है। कभी-कभी तो पुलिस भी मूक दर्शक बन जाती है और शायद इनको इस बात का इल्म नहीं कि गोरक्षा से पहले गो सेवा ज़रूरी है, जो इनको आता ही नहीं है।

गोरक्षा ज़रूरी है लेकिन, भीड़तंत्र का सहारा लेकर नहीं लोकतंत्र को चलाने वाले कानून का सहारा लेकर हम गोरक्षा कर सकते हैं। बिना कुछ जाने सिर्फ शक से आधार पर किसी दलित और बेबस मजबूर इन्सान को मिलकर मारना मानवता नहीं है। ऐसे लोगों का बहिष्कार करना होगा, जो धर्म के नाम पर हम सब को भड़काने का काम करते हैं। धर्म की राजनीति करने वालों को सिर्फ अपने वोट से मतलब होता है। आज उस भीड़ का शिकार कोई और हुआ है कल को हम भी हो सकते हैं या हमारे बच्चे, रिश्तेदार भी हो सकते हैं। तो ऐसे में ज़रूरी है कि हम अपनी समझ से काम करें किसी के बहकावे में ना आये।

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