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BJP सांसद का विवादित बयान: “रेप, आतंकवाद के लिए मुस्लिमों की बढ़ती आबादी ज़िम्मेदार”

विवादित बयानों का सिलसिला देश को खोखला करता जा रहा है। कल यानी 27 जुलाई को अमर उजाला अखबार की वेबसाइट पर भाजपा के एक और नेता के विवादित बयान की खबर छपी है। उनके अनुसार देश में रेप, आतंकवाद और भीड़ हिंसा की घटनाओं के लिए मुसलमानों की बढ़ती आबादी ज़िम्मेदार है। ये बयान है उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर से भाजपा सांसद हरिओम पांडेय का है।

उन्होंने मुसलमानों पर खुले तौर पर उंगली उठाते हुए कहा कि अगर मुस्लिमों की बढ़ती आबादी पर नियंत्रण नहीं किया गया तो एक दिन ऐसा आएगा जब भारत के अंदर ही एक और पाकिस्तान देखने को मिलेगा। 

ऐसे ब्यान देना कितना जायज़ है? आपको किसी भी समुदाय के बारे में गलत बयानबाज़ी का अधिकार किसने दिया? या आपको ऊपर के मंत्रियों से ये सब कहने के लिए कोई आदेश आया है? अगर आपके ऊपर ऐसी बात जनता के सामने कहने का कोई भी दवाब है तो कृपया करके उस दवाब को भी सामने लाइये, जिससे देश की जनता को भी तो समझ में आना चाहिए कि उनके द्वारा चुने हुए सांसद पर किस तरह का दवाब बनाया जा रहा है।

खैर, ऐसी विवादित बयानबाज़ी का चलन देश की राजनीति में अब आम बात हो गयी है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि कुछ नेताओं के दिल में ये बात बैठी हुई है कि एक दो विवादित बयान देने से कुछ नहीं होगा बल्कि कई विवादित बयान देने से उनकी राजनीति में चमक आएगी। मीडिया पीछे-पीछे घूमेगी, टीवी पर चेहरा दिखेगा, जिससे आगामी चुनावों में वोट मिल जाएंगे।

एक लाइन जो देश के व्यक्ति ने कहीं ना कहीं ज़रूर पढ़ी होगी, “हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, आपस में हैं भाई-भाई”। क्या उपरोक्त बयान से इस लाइन का कोई ताल्लुक समझ में आता है? ज़ाहिर सी बात है, इस लाइन से उपरोक्त बात का कोई ताल्लुक नहीं है। ये लाइन सिर्फ लिखावट में अच्छी लगती है। इन जैसे विवादित बयानों ने इस लाइन की बेइज्ज़ती के अलावा कुछ नहीं किया है।

किसी एक समुदाय के ऊपर गलत बयानबाज़ी नहीं करनी चाहिए। आज आप किसी समुदाय पर उंगली उठा रहे हैं, कल भविष्य में वो समुदाय आपके समुदाय पर उंगली उठाएगा। क्या तब आपको वो सहन हो पायेगा, शायद नहीं।

किसी समुदाय पर विवादित बयानबाज़ी और विवादित टिप्पणियों से सिर्फ देश में लड़ाई झगड़ें के आसार हो सकते हैं। कभी ज़मीनी हकीकत में जाकर देखना चाहिए कि हिन्दू और मुस्लिम आपस में भाईचारे की भावना के साथ रहते हैं। एक-दूसरे का पूरा सहयोग करते हैं, ऑफिस में काम एक साथ करते हैं। इन चीज़ों के बीच में एक व्हाट्सएप्प मैसेज मुझे याद आ रहा है, मैं उसे शेयर करना चाहूंगा-

एक आम आदमी सुबह जागने के बाद सबसे पहले टॉयलेट जाता है, बाहर आकर साबुन से हाथ धोता है, दांत ब्रश करता है, नहाता है, कपड़े पहनकर तैयार होता है, अखबार पढ़ता है, नाश्ता करता है, घर से काम के लिए निकल जाता है, बाहर निकलकर रिक्शा करता है, फिर लोकल बस या ट्रेन में या अपनी सवारी से ऑफिस पहुंचता है। वहां पूरा दिन काम करता है, साथियों के साथ चाय पीता है, शाम को वापस घर के लिए निकलता है, घर के रास्ते में बच्चों के लिए टॉफी, बीवी के लिए मिठाई वगैरह लेता है, मोबाइल में रिचार्ज करवाता है, और अनेक छोटे मोटे काम निपटाते हुए घर पहुंचता है।

अब आप बताइये कि उसे दिन भर में कहीं कोई “हिन्दू” या “मुसलमान” मिला? क्या उसने दिन भर में किसी “हिन्दू” या “मुसलमान” पर कोई अत्याचार किया?

उसको जो दिन भर में मिले वो थे, अखबार वाले भैया, दूध वाले भैया, रिक्शा वाले भैया, बस कंडक्टर, ऑफिस के मित्र, आगंतुक, पान वाले भैया, चाय वाले भैया, टॉफी की दुकान वाले भैया, मिठाई की दुकान वाले भैया।

जब ये सब लोग भैया और मित्र हैं तो इनमें “हिन्दू” या “मुसलमान” कहां है? क्या दिन भर में उसने किसी से पूछा कि भाई, तू “हिन्दू” है या “मुसलमान”? अगर तू “हिन्दू” या “मुसलमान” है तो मैं तेरी बस में सफर नहीं करूंगा, तेरे हाथ की चाय नहीं पियूंगा, तेरी दुकान से टॉफी नहीं खरीदूंगा।

क्या उसने साबुन, दूध, आटा, नमक, कपड़े, जूते, अखबार, टॉफी, मिठाई खरीदते समय किसी से ये सवाल किया था कि ये सब बनाने और उगाने वाले “हिन्दू” हैं या “मुसलमान”? जब हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में मिलने वाले लोग “हिन्दू” या “मुसलमान” नहीं होते तो फिर क्या वजह है कि “चुनाव” आते ही हम “हिन्दू” या “मुसलमान” हो जाते हैं?

समाज के तीन ज़हर हैं-

1) टीवी की बेमतलब की बहस।

2) राजनेताओं के ज़हरीले बोल।

3) कुछ लोगों के सोशल मीडिया के भड़काऊ मैसेज।

इनसे दूर रहें तो शायद बहुत हद तक समस्या तो हल हो ही जायेगी। विवादित बयानों से दूरी बना लेना ही समझदारी है। जनता समझदार है, जनता सब समझती है। विवादित बयानों से दूर रहें, आपस में मित्रता, प्रेमभाव का व्यवहार रखें, देश की प्रगति में मिलकर सहयोग प्रदान करें।

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