शादी होते ही लड़की की योग्यता और प्रतिभा न जाने कहाँ गुम हो जाती है। समाज व ससुराल घरेलू काम के अलावा और किसी बात की आशा नहीं रखते।
पति के लिए वह पत्नी के सिवाय कुछ भी न रही। लड़कियों के अच्छे- खासे कॅरियर की ओर बढ़ते कदम, किचन और बेडरूम तक सीमित होकर रह जाते है।
हमारे समाज मे विवाह तय करते समय लड़की की शिक्षा, प्रतिभा, गुणों को विशेष रूप से देखा परखा जाता है। गुणों की नाप तोल की जाती है। लेकिन शादी के बाद घरेलू कामकाज के अतिरिक्त और कोई आशा ही नहीं की जाती। पूरी तरह गृहस्ती की गाड़ी में पिसती, जूझती, परिवार की सेवा में जुटी बहु को अपनी योग्यता, प्रतिभा, पढ़ाई-लिखाई होम देनी पड़ती है।
आखिर ऐसा क्यों होता है कि विवाह के पश्चात लग- भाग लड़कियाँ अपनी प्रतिभा को किसी अंधेरी काल- कोठरी में कैद कर उनका गला मोस देती है।
बहु और पत्नी बनकर उसे वर्तमान से समझौता कर अपना सम्पूर्ण व्यक्तित्व, आस्तित्व होम क्यों कर देना पड़ता है?