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हम भारत के लोग

“हम भारत के लोग” जी हाँ, भारतीय संविधान की प्रस्तावना की शुरुआत इसी वाक्यांश से होती है और भारत के लोगों को समाज, अर्थ, राजनीति, विचार, अभिव्यक्ति, धर्म, विश्वास और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्रदान करते हुए उन सबमें व्यक्ति की गरिमा, राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढाने के उद्देश्य से संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करने की घोषणा करते हुए समाप्त होती है.

प्रस्तावना से ही स्पष्ट होता है कि कितनी स्वच्छ, पुनीत, निर्मल, शुद्ध, पावन, पवित्र और महत्वाकांक्षी भावना रही होगी संविधान निर्माताओं की. भारत और भारतीयों को लेकर कितने स्वर्णिम स्वप्न संजोए होंगे स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान निर्माताओं ने. क्या क्या नहीं सोचा होगा भारत को एक बार फिर से श्रेष्ठ बनाने के लिये.

लेकिन अफ़सोस होता है कि राजनीति नाम का ब्लैक होल सब कुछ निगल रहा है. समाज भी, अर्थ भी, विचार भी, अभिव्यक्ति भी, धर्म भी, विश्वास भी, उपासना भी, प्रतिष्ठा भी, समता भी, व्यक्ति की गरिमा भी, राष्ट्र की एकता भी, अखंडता भी और बंधुता भी.
संविधान की दुहाई देते हुए राजनीति सबकुछ गटक कर ऐसी डकार लगा रही है कि उस डकार की आंधी में भारतीय समाज क्षत-विक्षत हो रहा है.
राजनीति संविधान निर्माताओं और स्वतंत्रता सेनानियों के साथ विश्वासघात और भारत के लोगों के साथ प्राणघात कर रही है. राजनीति ने हम “भारत के लोग” इस वाक्यांश के धर्म, जाति, वर्ग, विचारधारा, वर्ण, लिंग, क्षेत्र और भाषा के आधार पर टुकड़े कर दिए है.

“हम भारत के लोग”, भारत के लोग नहीं रहे.
भारत के लोग राजनीति के चलते हिन्दू-मुसलमान बन गए है, सवर्ण-दलित बन गए है, वामपंथी-दक्षिणपंथी बन गए है, देशी-विदेशी बन गए है, अपने-अपने स्वार्थों के बन गए है लेकिन सही मायनों में हम भारत के नहीं बने. हम भारत के लोग एक भारतीय बनने के अलावा वो सबकुछ बन गए जो एक श्रेष्ठ भारत बनाने के लिये नहीं बनना चाहिए था.

सच कहूँ तो, भारत और भारतीय राजनीति में कुछ ऐसे विषैले सर्प विद्यमान हैं जो चाहते हैं कि भारत हिन्दू राष्ट्र बन जाये, कुछ ऐसे है जो चाहते है कि येन केन प्रकारेण भारत इस्लामिक राष्ट्र बन जाये तो कुछ ऐसे भी है जो चाहते है कि सवर्ण उनके पैरों की धूल बन जाये.
यही वो लोग है जो मलिन राजनीति का सहारा लेकर देश की दिशा मोड़ने में लगे हुए है.
इन्हीं मुट्ठीभर लोगों के कारण भारतीय समाज दूषित, विकृत और पथभ्रष्ट हो रहा है.
यही लोग भारत के भोले भाले लोगों को अपनी ज़हरीली मानसिकता की चपेट में लाकर भारत और भारतीय समाज की एकता, अखंडता, बंधुता और गरिमा को मिट्टी में मिला देना चाहते है और उसी मिट्टी में अपने स्वार्थों के कल्पवृक्ष उगाना चाहते है.

इस तमाम की जड़ सदियों पुरानी वो धार्मिक दकियानूसी सोच और मान्यताएं है जो कुछ स्वार्थ और कुछ अंधविश्वासों से उपजी है. सदियों पुरानी वह सोच आज भी समय के साथ परिवर्तित नहीं होना चाहती.
सदियों पहले स्वार्थ सिद्धि के लिए जन्मी वो मान्यताएं जो आज भी नहीं बदली है उन्हीं को हथियार बनाकर राजनीति संविधान और भारत के लोगों के साथ घात कर रही है.

जरुरत है तो भारत के हर धर्म को परिष्कृत करने की, हर धर्म में आधुनिकता लाने की, हर धर्म को 21 वीं सदी का बनाने की, सर्वधर्म आधुनिकीकरण की मुहिम चलाने की.

सर्वधर्म आधुनिकीकरण में जो व्यक्ति अवरोध बनता है समझ लीजिए वह अपने आप को “हम भारत के लोग” से जुड़ा नहीं समझता और इस देश की दिशा को अपनी ज़हरीली विचारधारा के समंदर की ओर मोड़ने की मंशा रखता है.

हम भारत के लोग अगर व्यक्तिगत तौर पर ही अपनी धार्मिक मान्यताओं को आधुनिक बनाते है तो संविधान की आत्मा यानी संविधान की प्रस्तावना का पहला वाक्यांश “हम भारत के लोग” सही मायनों में चरितार्थ हो जायेगा और भारतीयता की दिव्य ज्योति से राजनीति नामक ब्लैक होल प्रदीप्त हो जायेगा.

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