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मां का दूध अमृत है तो स्तनपान करवाना समाज के लिए असहज क्यों?

17 अक्टूबर 2017 को स्तन कैंसर जागरूकता के लिए ‘नो ब्रा डे’ नाम से एक अभियान चलाया गया था। इस दिन महिलाओं से ब्रा ना पहने की अपील की गई थी। हालांकि भारत में शायद ही किसी ने इसमें हिस्सा लिया होगा। लेकिन मुझे याद है उस दिन मेरी बात अमेरिका में पढ़ाई कर रही मेरी एक सहेली से हुई थी। उसने मुझे बताया कि आज उसके आॅफिस में किसी भी लड़की ने ब्रा नहीं पहनी है तो उसने भी नहीं पहनी लेकिन उसे बहुत अजीब लग रहा। अमेरिका में पढ़ने वाली मेरी उस सहेली के लिए बिना ब्रा का वो एक दिन अजीब था। लेकिन कहते हैं ना कि आप कहीं भी चले जाएं आप की जड़ें आपको नहीं छोड़ती। उसकी जड़ें तो आखिर वहीं की थीं जहां यौवन अवस्था में आते ही लड़की को खुद को कई परतों में ढक कर रखना सीखाया जाता है।

जो लड़कियां घर से दूर अकेले पढ़ने या काम करने के लिए अलग रह रही होंगी वो मेरी इस बात से ज़रूर इत्तफाक रखेंगी। जब भी वो आॅफिस, काॅलेज या कहीं भी बाहर से घूमकर घर वापस आती होंगी तो सबसे पहले खुद को इन परतों से आज़ाद करती होंगी। समाज की नज़रों से बचाने के लिए अपने स्तन को ब्रा के बंधनों में बांधने पर मजबूर ये लड़कियां जब घर में अकेले उस चार दीवारी में ब्रा के उस आखिरी हुक को खोलती हैं तब उन्हें उसी आज़ादी का एहसास होता है जो पिंजरे में बंद एक पक्षी को खुले आसमान में पहुंचने पर होता है। इससे आप समझ सकते होंगे कि ब्रा पहनना हम महिलाओं की ज़रूरत नहीं मजबूरी है। हम ब्रा अपने शौक से नहीं बल्कि समाज के उन कुछ तत्वों की गंदी नज़र का शिकार होने से बचने के लिए पहनती हैं।

महिलाओं के स्तन को वासना का रुप देने वाले इस समाज से खुद को बचाने के लिए सबसे ज़्यादा मजबूर वो मां हैं जो अपने बच्चे को खुलकर दूध भी नहीं पिला सकती। आपने बस, ट्रेन या किसी भी सार्वजनिक स्थान पर कभी किसी महिला को बच्चे को दूध पिलाते देखा होगा तो ये जरुर ध्यान दिया होगा की वो एक हाथ से अपने बच्चे को संभाल रही होती है और दूसरे हाथ से अपने आंचल या दुपट्टे से स्तन को ढकने की कोशिश कर रही होती है। बच्चे को दूध पिलाते हुए भी उसका ध्यान खुद को समाज की निर्णायक नज़रों से बचाने पर बना रहता है। और जहां ये आंचल हटा मानों उस मां से कोई पाप हो गया हो और लोगों के नज़र में वो बेशर्म और अभद्र हो जाती है।

मां को समाज की इस सोच से आज़ाद करने के लिए हाल ही में एक मुहिम शुरू हुई जिनमें महिलाएं खुद को बिना ढके बच्चे को स्तनपान कराते हुए सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरें साझा कर रहीं हैं। मलयालम की एक पत्रिका गृहलक्ष्मी ने भी इस मुहिम में अपना योगदान देते हुए अपने एक प्रकाशन के कवर पेज पर महिला की बच्चे को दूध पिलाते तस्वीर निकाली। समाज के एक तबके को पत्रिका का ये कदम नागवारा लगा और उसने केरल उच्च न्यायालय में इसके खिलाफ याचिका डाल दी।

लेकिन अदालत ने समाज की इस सोच पर चोट कर महिलाओं खास तौर पर एक मां की आज़ादी के हक में फैसला दिया। सुंदरता तो देखने वालों की आंखों में होती है इस पूरानी कहावत को नया अर्थ देते हुए केरल उच्च न्यायालय के दो जजों की पीठ ने कहा कि अश्लीलता भी देखने वालें की आंखों में ही होती है। जिसमें एक को अभद्रता नज़र आती है वो दूसरे के लिए रजनात्मक हो सकता है, इस टिप्पणी के साथ अदालत ने याचिका को खारीज कर दिया।

स्तनपान जैसी समान्य क्रिया समाज को असहज क्यों कर देता है? दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होगा जो बिना स्तनपान के बड़ा हुआ हो। नवजात बच्चे के लिए मां का दूध अमृत है तो उसकी क्रिया गलत कैसे हुई? स्तनपान महिला के शरीर की एक समान क्रिया है। हमारे शरीर में हर अंग का अपना अपना काम है। आंख देखने के लिए है, दिमाग सोचने समझने के लिए, पैर चलने के लिए वैसे ही स्तन दूध पैदा करना है। लेकिन समाज ने स्तन के इस मूल काम को नज़रअंदाज़ कर दिया है और उसे यौन अंग मान बैठे हैं जिसे लोगों की आंखों से बचा कर रखने की ज़रूरत है। अगर महिला अपने बच्चे को स्तनपान कराते समय खुद को नहीं ढकती है तो उसे देखकर किसी में भी उत्तेजना पैदा हो सकती है।

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि अजंता एलोरा की गुफाओं में नग्न औरतों की मूर्तियां बनाने वाला हमारा समाज औरतों को परदों में ढकने वाला समाज कैसे बन गया?

इसमें बहुत हद तक हाथ हमारी फिल्मों और विज्ञापनों का है जो औरतों के स्तन और क्लीवेज को अपने प्रॉडक्ट्स को बेचने के लिए इस्तेमाल करते आए हैं। फिल्मों में हीरोइनों की भूमिका केवल हीरो की प्रेमिका बनने तक ही सीमित रही। हीरोइन फिल्मों में केवल आकर्षण बनाए रखने के लिए होती हैं। उसकी भूमिका तो नहीं बदली लेकिन समय के साथ फिल्मों में उनके आकर्षण को पेश करने का तरीका बदलता रहा। हीरोइन का एंट्री फिल्मों में उसके अंगों को सेक्सी अंदाज़ में पेश करते हुए ही कराई जाती है।

ये फिल्मों और विज्ञापनों की ही देन है कि औरतों को एक सेक्स सिम्बल बना दिया गया है जिसमें सबसे ज़्यादा फोकस उसके स्तन और क्लीवेज को दिया जाता है। आपको याद होगा टाइम्स आॅफ इंडिया ने तो दीपिका पादुकोण के क्लीवेज पर पूरी स्टोरी ही कर दी थी।

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