मोदी जी ने 2014 में प्रधानमंत्री बनने से पूर्व चुनाव प्रचार करते हुए युवाओं से वादा किया था कि अगर बीजेपी की सरकार बनी तो हर वर्ष 2 करोड़ युवाओं को नौकरी दी जाएगी। वादा तो अच्छा था, सबने मान भी लिया और युवाओं ने भरपूर वोट देकर पूर्ण बहुमत की सरकार भी बना दी। अब देखते हैं कि मोदी जी ने नौकरियों का अपना वादा निभाया या नहीं?
अभी हाल ही में इंटरव्यू में माननीय मोदी जी से नौकरी से सम्बंधित सवाल पूछा गया। माननीय प्रधानमंत्री ने जवाब देते हुए कहा कि पिछले 4 वर्षों में नौकरियों का सृजन तो भरपूर हुआ है, लेकिन उनका डाटा उपलब्ध नहीं है। बात भी सही है बिना डाटा के कैसे बता सकते हैं कि नौकरियों का सृजन नहीं हुआ।
परंतु जब डाटा उपलब्ध ही नहीं है तो माननीय प्रधानमंत्री को कैसे पता कि नौकरियों का पर्याप्त सृजन हुआ है। खैर, मोदी जी का तो पता नहीं लेकिन हमारे पास विभिन्न सरकारी विभागों से सम्बंधित नौकरियों का डाटा उपलब्ध है। तो देखते हैं कि दावे के मुताबिक नौकरियों में बढ़ोत्तरी हुई है अथवा कमी आई है।
2017 में राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने संसद में बताया कि केंद्रीय मंत्रालयों एवं डिपार्टमेंट्स में सीधी भर्ती में 2013 के मुकाबले 2015 में 89%की कमी आई है। 2013 में जहां 1,51,841 भर्तियां की गयी थीं, वहीं 2015 में मात्र 15,877 लोगों की भर्ती हुई। जबकि रिज़र्व कैटेगरी की भर्तियों में भी 2013 से 2015 के दौरान 90% की कमी आई है।
UPSC सिविल सर्विस की परीक्षा को देखें तो-
2014 में UPSC सिविल सर्विस की 1,291 रिक्तियां निकली
2015 में 1129
2016 में 1079
2017 में 980 एवं
वर्तमान वर्ष 2018 में मात्र 782 नौकरियां निकली।
वहीं IBPS PO को देखें तो-
2015 में 12,434
2016 में 8822
2017 में मात्र 3562
IBPS क्लर्क-
2015 में लगभग 25,000
2016 में 19243
2017 में घटकर मात्र 7880
उक्त डाटा को देखने पर तो स्पष्ट होता है कि विभिन्न सरकारी विभागों में नौकरियों की संख्या में लगातार कमी देखने को मिली है। 2014 में चुनाव में जब 2 करोड़ नौकरियों का वादा किया था, तब सबको यही लगा था कि अगर प्रधानमंत्री नौकरियों में वृद्धि की बात कर रहे हैं, तो यह बम्पर वृद्धि सरकारी नौकरियों में भी देखने को मिलेगी। परंतु सरकारी नौकरियों में तो लगातार कमी देखने को मिली है। वही प्राइवेट क्षेत्र की नौकरियों का डाटा ही उपलब्ध नहीं है।
2017 में SSC में गड़बड़ी से सम्बंधित आंदोलन भी हुआ और चयनित स्टूडेंट्स को लंबे वक्त तक ज्वाइनिंग लेटर नहीं मिलने जैसी समस्याएं तो अब आम हो गयी हैं।
लगभग सभी राज्यों में बेरोज़गारों, ठेके पर रखे गए कर्मचारियों, गेस्ट शिक्षक एवं बेरोज़गारों के अन्य समूहों द्वारा आंदोलन किये जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के शिक्षा मित्रों को देख लें या मध्य प्रदेश के अतिथि शिक्षकों को, पूरे भारत में यही स्थिति है। या तो सरकारी नौकरी है नहीं या पिर ठेके की है या कोई अन्य समस्या है। वहीं प्राइवेट नौकरी से सम्बंधित डाटा ही नहीं है। परंतु सरकार की नज़र में सब ठीक है।
बम्पर नौकरियों का सृजन हुआ है, बस डाटा नहीं है। सरकार की मानें तो सरकारी कर्मचारी खुश हैं, किसी को कोई समस्या नहीं है। परंतु असल में सरकार युवाओं को अच्छी नौकरी देने के अपने वादे से मुकर गयी है अथवा वादे को निभाने में असफल रही है। अगर ऐसा नहीं होता तो सरकारी नौकरियों में तो बढ़ोत्तरी देखने को अवश्य मिलती।_____________________________________________________________________________
[नोट- यह लेख पहले शब्द नगरी पर प्रकाशित हो चुका है।]