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HECI उच्च शिक्षा के निजीकरण की ओर एक और कदम

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने यूजीसी यानी कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को खत्म करके भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) बनाने की योजना बनाई है। HECI Act 2018 का ड्राफ्ट मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर डाला हुआ है।

सरकार ने UGC को खत्म करने के चार तर्क दिए हैं-

1.शिक्षा की गुणवत्ता, शोध व रेगुलेशन को बेहतर करना।
2. शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता देना।
3. इंस्पेक्टर राज को खत्म करना।
4. खराब संस्थानों पर कार्रवाई करना (क्योंकि UGC  सिर्फ उन संस्थानो के नाम अपनी वेबसाइट पर डाल सकती थी कार्रवाई नहीं कर सकती थी)।

बहुत बड़े-बड़े फर्ज़ीवाड़े शिक्षा के क्षेत्र में हुए हैं। जिस कारण बहुत सारे बुद्धिजीवी UGC को खत्म करना एक प्रगतिशील कदम बता रहे हैं। लेकिन नए उच्च शिक्षा आयोग अधिनियम 2018 के ड्राफ्ट को पढ़कर निम्न सवाल खड़े होते हैं-

1. नया आयोग केंद्र सरकार के अधीन रहेगा। हर मामले में केंद्र सरकार दखल कर सकती है। यदि आयोग और केंद्र सरकार में किसी मुद्दे पर तनाव बनता है, तो अंतिम फैसला केंद्र सरकार का होगा। चाहे किसी संस्थान को मान्यता देने का सवाल हो या कुछ और, एक ऐसा आयोग जो खुद ही स्वायत्त नहीं है वह कैसे संस्थानों को स्वायत्तता देगा।

2. यह आयोग पैसे का लेन-देन नहीं करेगा सिर्फ शिक्षा, मान्यता, शोध व गुणवत्ता को देखेगा। इसके बावजूद आयोग में एक उद्योगपति को लिया जाएगा। अब सवाल यह है कि उद्योगपति का आयोग में क्या काम। किसलिये ऐसा किया जा रहा है ?

3. इस आयोग से शोध व गुणवत्ता कैसे बेहतर होगी इसकी कोई प्रक्रिया ड्राफ्ट में नहीं दी हुई है।

4. सिर्फ आयोग बदलने से इंस्पेक्टर राज कैसे खत्म होगा इस पर भी ड्राफ्ट में कुछ नहीं है। क्या नया आयोग बनाने से इंस्पेक्शन करने वाले एक दम से ईमानदार हो जायेंगे।

5. इस आयोग को खराब संस्थानों पर कार्रवाई करने का अधिकार होगा। सवाल यह है कि यह अधिकार यूजीसी के पास क्यों नहीं था?

सरकार का यह कहना कि फंड का लेनदेन सरकार खुद करेगी यह बहुत बड़ा झूठ है। राज्यों के विश्वविद्यालयों को फंड देने के लिए RUSA (राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान) बनाया गया है। केंद्रीय संस्थानों को बजट देने के लिए HEFA (Higher education financing agency) बनाई गई है। जिसके तहत केंद्रीय संस्थानों को लोन दिया जाएगा जो उन्हें बाद में चुकाना होगा और उसका ब्याज मंत्रालय वहन करेगी।

यह चीज़ें सरकार ने आयोग का ड्राफ्ट पेश करते हुए छुपाई हैं। कुल मिलाकर यह आयोग शिक्षा के व्यापारीकरण की ओर एक और कदम है। स्वायत्ता के नाम पर संस्थानों को अपना खर्च खुद चलाने को मजबूर किया जा रहा है।

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