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हिमा की कामयाबी में AFI का अंग्रेज़ी की कमी ढूंढना शर्मनाक है

बातें बहुत सारी हैं लेकिन अभी हिमा दास से शुरू करते हैं। 18 साल की हिमा दास ने अंडर-20 वर्ल्ड एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में गोल्ड जीता है। ऐसा करने वाली वह देश में पहली व्यक्ति हैं। देश में करोड़ों लोग हैं जो दिन रात अंग्रेज़ी बोलते हैं लेकिन, उनमें से कोई हिमा दास नहीं बन पाया।

मैंने उनका इंटरव्यू वाला वीडियो देखा वो काफी आत्मविश्वास से जवाब दे रही थीं। मुझे उनका टोन अच्छा लगा, उनका टोन एक आयरिश डब्ल्यूडब्ल्यूई खिलाड़ी बेकी लिंच जैसा था। मुझे अलग-अलग टोन, या भाषाएं सुनना पसंद है, मुझे इतालियन और नॉर्वेजियन टोन भी बहुत पसंद है। एक जर्मन या फ्रेंच भाषी भी शुरू में ऐसी ही बोल-समझ सकने लायक अंग्रेज़ी अपने लहज़े में बोलता और सबको यह सामान्य भी लगता। फिर एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एएफआई) को हिमा की अंग्रेज़ी में ऐसी क्या शर्मनाक बात दिख गई, जिसका ज़िक्र उसे अपने ट्वीट में जीत की खबर के बराबर में करना पड़ गया?

मुझे तो लगता है कि हिमा शायद हिंदी भी नहीं जानती होंगी और जानें भी क्यों? हम हिंदी भाषी लोगों को असमिया, कन्नड़, तमिल, तेलुगू, उड़िया, बांग्ला, मलयालम आती है क्या? अगर हिमा की अंग्रेज़ी धाराप्रवाह नहीं थी तो एएफआई में बैठे लोग क्या ‘नोम चोम्स्की’ हैं?

भारी छीछालेदर के बाद एएफआई ने देश से माफी मांग ली है। लेकिन, सोच तो मौके पर उजागर हो ही गई।

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