2019 लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों के बीच बयानबाज़ी शुरू हो चुकी है। चुनावी लाभ पाने के लिए राजनीतिक पार्टियां कोई मौका नहीं छोड़ना चाह रही हैं। वर्तमान समय में देश में कई ऐसे मुद्दे हैं जो सरकार के लिए चुनौती बन सकती है।
उन्हीं मुद्दों में “गन्ना” एक ऐसा मुद्दा है, जिसका हल सरकार को हर हाल में निकालना ही होगा। देश में सबसे ज़्यादा गन्ना उत्पादन उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तराखंड राज्य में होता है। इन राज्यों में बीजेपी की सरकार है। सरकार द्वारा गन्ना किसानों के मुद्दों को नहीं सुलझाया गया तो सरकार को इसकी राजनीतिक कीमत भी चुकानी पड़ सकती है।
देश में पांच करोड़ गन्ना किसान हैं जो राजनीतिक रूप से जागरूक हैं। राष्ट्रीय सहकारी शक्कर कारखाना संघ के मुताबिक गन्ना वर्ष 2018 -19 में रकबा 54.35 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जो पिछले वर्षों के मुकाबले कहीं ज़्यादा है। मौनसून की अच्छी बारिश के चलते खेतों में खड़ी गन्ने की फसल बहुत अच्छी हैं। इस बार पेराई सीज़न में चीनी का उत्पादन लगभग चार करोड़ टन होने का अनुमान है।
निर्धारित न्यूतम मूल्य और घोषित एफआरपी के आधार पर मई तक गन्ना का बकाया नई ऊंचाइयों को छू सकता है, क्योंकि सरकार द्वारा अभी तक किसानों को पिछला बकाया 17 करोड़ का भुगतान नहीं किया गया है। हालांकि सरकार द्वारा किसानों के लिए कई तरह की पैकेज की घोषणा की गई है, जिसमें एथनॉल उत्पादन वाली मिलें लगाने और उनके संचालन की बात कही गई है।
सवाल है कि सरकार इतनी जल्दी इन मिलों को कैसे लगाएगी। अगर इन मिलों को आज से लगाना शुरू करें तो दो साल का समय लग सकता है। गन्ना मुद्दे को भापकर विपक्षी पार्टियां राजनीतिक लाभ लेने से नहीं चूकेंगी। गन्ना किसानों के समर्थन के लिए उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने राज्य में भाजपा के खिलाफ मोर्चे खोल दिए हैं। सपा के समर्थन में कॉंग्रेस भी खड़ी है और पार्टी ने अगले माह के लिए राज्य स्तरीय अंदोलन की रुपरेखा भी तैयार कर ली है।
गन्ना उत्पादन में पश्चिमी यूपी का बहुत बड़ा योगादान है। किसानों के नेता व राष्ट्रीय लोकदल पार्टी के अध्यक्ष अजीत सिंह भी पश्चिमी यूपी से आते हैं और ऐसे में माना जा रहा है कि अजीत सिंह भी गन्ना अंदोलन के लिए सपा व कॉंग्रेस का साथ दे सकते हैं क्योंकि उपचुनाव में कैराना सीट पर उन्होंने सपा गठबंधन को सपोर्ट किया था।
इस तरह से देखें तो 2019 में सबसे ज़्यादा लोकसभा सीटों वाले प्रदेश में बीजेपी की पकड़ कमज़ोर हो सकती है। वहीं महाराष्ट्र में भी फरवरी-मार्च में किसानों ने अपनी मांगों को लेकर अंदोलन किया था। शिवसेना पहले से ही बीजेपी से नाराज़ चल रही है। ऐसे में बीजेपी को समय रहते इस मुद्दे का हल निकालना ज़रूरी हो गया है।