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जॉनसन & जॉनसन दोबारा जम जाएगा क्योंकि बाज़ार ही तो तय करता है हमारी ज़रूरतें

पिछले हफ्ते इंटरनेशनल बिजनेस टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के मिसौरी राज्य में 22 महिलाओं ने विख्यात अमेरिकी फार्मा कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन के खिलाफ एक याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने कंपनी पर यह आरोप लगाया कि कंपनी के पाउडर आधारित उत्पादों के चलते उनमें गर्भाशय का कैंसर विकसित हुआ है। शिकायतकर्ताओं के अनुसार, टैलकम पाउडर आधारिक उत्पादों में मौजूद एसबेस्टस ने उनमें गर्भाशय कैंसर विकसित होने में योगदान दिया है।

ज्यूरी ने इस मामले में सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए जॉनसन एंड जॉनस कंपनी पर 32000 करोड़ रुपये (4.7 बिलियन डॉलर) के भारी-भरकम जुर्माने का आदेश जारी किया है। जुर्माने की वजह कंपनी के पाउडर संबंधित उत्पादों के कारण बड़ी संख्या में महिलाओं को गर्भाशय का कैंसर होना बताया गया है। हालांकि कंपनी ने इस बात का खंडन करते हुए आगे इस मामले में अपील करने की बात कही है।

खैर, मामला चाहे जो भी हो ज़ाहिर-सी बात है इसका सीधा असर जॉनसन पाउडर की बिक्री पर पड़ेगा, क्योंकि अब लोग इस पाउडर को यूज़ करने से डरेंगे। आखिर कोई भी मुफ्त में भी बीमारी मोल नहीं लेना चाहता, फिर पैसे देकर मोल लेना कौन चाहेगा? हो सकता है भविष्य में जॉनसन कंपनी यह केस जीत जाये या फिर वह अपने उत्पाद में कुछ आमूलचूक परिवर्तन करके उसे मार्केट में उतारे, तो दोबारा से लोग उसके उत्पाद को खरीदने में इच्छुक होंगे।

याद कीजिए, करीब दो साल पहले युवाओं की लोकप्रिय ‘बस दो मिनट में पकनेवाली मैगी‘ पर भी स्वास्थ विरोधी आरोप लगे थे। भारतीय खाद्य नियामक संस्था FSSI ने मैगी में कुछ लेड जैसे तत्व की मात्रा स्वीकार्य स्तर से अधिक पाये जाने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसके बाद नेस्ले कंपनी अपने इस उत्पाद के 550 टन का स्टॉक नष्ट करना पड़ा था। इन सबका सीधा प्रभाव मैगी की बिक्री पर पड़ा। ज्ञात हो कि मैगी नेस्ले कंपनी की सबसे ज़्यादा बिकनेवाले उत्पादों में से एक है। लेकिन इस विवाद के बाद लोगों ने मैगी खाना बंद कर दिया। जो मम्मियां समय के अभाव में अक्सर ‘दो मिनट वाली मैगी’ बनाकर अपने बच्चों को खिलाया करती थीं, वे अब 10-15 मिनट देकर उनके लिए कुछ हेल्दी नाश्ता बनाने पर ध्यान देने लगीं।

इसके कुछ ही दिनों बाद अचानक से फिर खबर आयी कि नेस्ले के इस उत्पाद में कोई खामी नहीं है। कंपनी ने बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर FCCI से मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में जब मैगी के नमूनों की जांच करवायी, तो उसमें मैगी को पूरी तरह से सुरक्षित पाया गया। यही नहीं अमेरिका, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया आदि कई अन्य देशों में भी भारत में निर्मित मैगी को सुरक्षित पाया गया। उसके बाद नेस्ले ने मैगी में कुछ आमूलचूक बदलाव करके उसे एक बार फिर से मार्केट में उतार दिया। नतीजा, एक बार फिर मैगी हर घर के ग्रोसरी लिस्ट में शामिल हो गयी।

इसी तरह भारत की एक गैरसरकारी संगठन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरनमेंट (सीएसई) द्वारा दो बहुप्रचलित शीतल पेयों पेप्सी कोला और कोका कोला की बोतलों में निर्धारित मानकों से ज़्यादा कीटनाशक होने का आरोप लगाये जाने के बावजूद उसकी बिक्री पर इसका कुप्रभाव देखने को मिला। इसके अलावा कई नामी-गिरामी कंपनियां अब तक अपने प्रोडक्ट की गुणवत्ता, उससे जुड़े उत्पाद के विज्ञापन आदि को लेकर अब तक विवादों में फंस चुकी हैं और ऐसे किसी भी विवाद के प्रकाश में आने के बाद उसकी बिक्री पर इसका तुरंत प्रभाव पड़ता है। आज के दौर में लोग ”जो चीज़ मार्केट में हिट है, वही आपके लिए फिट है” वाली अवधारणा पर भरोसा करते हैं।

भारतीय संस्कृति की मार्केटिंग है ट्रेंड में

इसमें कोई दो राय नहीं है कि हमारी भारतीय सभ्यता-संस्कृति विश्व की सर्वोत्तम सभ्यता-संस्कृतियों में से एक है लेकिन, अफसोस कि पश्चिमी प्रभाव में हमने इसे कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया। फिर जैसे-जैसे हम पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में आते गये, वैसे-वैसे हमें अपनी संस्कृति में तमाम तरह की खामियां नज़र आने लगीं। फिर तो धीरे-धीरे हमने ना केवल अपना पहनावा बदला, बल्कि हमारे विचार-व्यवहार आदि सभी में पश्चिमी प्रभाव दिखने लगा। हमें होली के रंग फीके लगने लगे, दीवाली की रौशनी आंखों में चुभने लगी, तीज और करवाचौथ में खामियां नज़र आने लगीं। अन्य व्रत-त्यौहार, हवन, पूजा आदि सब अर्थहीन प्रतीत होने लगे। चूड़ी-कंगन, काजल, टीका, पायल, बिछुआ आदि सब झंझट लगने लगे। सरसों तेल की जगह लोगों को रिफाइंड भाने लगा। बाजरे की रोटी और चने का साग खाने के बजाय उन्हें बर्गर, पेटीज़ और पिज्ज़ा आदि खाने में में ज़्यादा मज़ा आने लगा।

फिर अचानक से एक दिन बाज़ार ने बाबा रामदेव को भारतीय संस्कृति के ब्रांडिंग प्रोडक्ट के रूप में मार्केट में उतारा। बाबा ने योग और ध्यान के ज़रिये एक बार फिर से लोगों को भारतीय संस्कृति का पाठ पढ़ाया। मीडिया ने भी उनके बारे में जमकर प्रचार-प्रसार किया। सरकार तो पहले से ही उनके समर्थन में थी ही। फिर क्या था, लोगों को एक बार फिर से अपनी संस्कृति में सबकुछ अच्छा-अच्छा दिखने लगा।

बाबा ने प्राकृतिक उत्पादों के सेवन पर ज़ोर दिया, तो मार्केट में कद्दू के जूस, ऐलोवेरा, नीम, तुलसी, हल्दी, चंदन, गौ-मूत्र आदि से बने उत्पादों की बाढ़ आ गयी। उसके बाद धीरे-धीरे उन्होंने प्राकृतिक चीज़ों से बने अपने प्रोडक्ट को मार्केट में उतारना शुरू किया, जिसे लोगों ने हाथों-हाथ लिया। लोगों को एक बार फिर भारतीय तीज-त्यौहार अच्छे लगने लगे, अपनी संस्कृति पर गर्व होने लगा और पश्चिमी संस्कृति में खामियां नज़र आने लगी। हालांकि, बाबा रामदेव से पहले भी कई प्राचीन ऋषि-मुनियों ने योग, ध्यान, प्राकृतिक उत्पादों आदि की विशेषताओं पर बल देते हुए उन्हें अपने जीवन में शामिल करने पर बल दिया था, लेकिन उस समय उनकी ब्रांडिग करने के लिए मार्केट मौजूद नहीं था ना।

बाज़ार हमारे जीवन पर हावी होता जा रहा है-

क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि आज बाज़ार ने हमारे जीवन में इस कदर घुसपैठ कर ली है कि हमारे आहार, विचार, व्यवहार सब उससे प्रभावित हैं। हमारे अपने सोचने-समझने की क्षमता कुंद पड़ती जा रही है। जो चीज़ कुछ दिनों पहले अच्छी लगती थी, अचानक से बाज़ार ने उसे गलत साबित कर दिया और हमें भी वह गलत लगने लगी। पिछले कुछ समय से देश-दुनिया में होने वाले राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तन इस बाज़ार की ही देन है।

बाज़ार का यह प्रभाव इतने खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है कि आज हम व्यक्तिगत संबंधों पर भी इससे अछुते नहीं रहे हैं। बेटे को फलां कंपनी की जींस चाहिए, क्योंकि उसका प्रचार फलां अभिनेता करता है, बेटी को फलां कंपनी की लिपस्टिक चाहिए, क्योंकि बाज़ार बता रहा है कि वह प्राकृतिक समाग्री से निर्मित है। श्रीमती जी स्टोर से फलां कंपनी का तेल खरीदेंगी, क्योंकि बाज़ार कह रहा है कि उसमें वसा की मात्रा काफी कम है और श्रीमान जी भी फलां कंपनी का रेज़र चाहिए क्योंकि बाज़ार कहता है कि यह अधिक स्मूदनिंग प्रदान करता है।

इससे पहले चाहे हमारे बड़े-बुजुर्ग कहें, डॉक्टर कहें या फिर खुद भी भले समझ आ रहा हो कि फलां चीज़ हमारे स्वास्थ या हमारे जीवन के लिए सही नहीं है, लेकिन हमने उस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन आज बाज़ार कह रहा है, तो वह चीज़ हमारे लिए अच्छी या खराब हो गयी। ऐसा प्रतीत होता है मानो अपनी बुद्धि तेल लेने चली गयी है। हमारे लिए कौन-सी चीज़ अच्छी है और कौन-सी बुरी, यह जानते हुए भी अक्सर हम बाज़ार के दबाव में आकर बुरी चीज़ को अपना लेते हैं। इस बारे में अगर हम अब भी सचेत ना हुए और हमने अपनी बुद्धि से काम लेना शुरू ना किया, तो आनेवाले समय बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।

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