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“हम गौरक्षा चाहते हैं लेकिन रकबर, अखलाक या पहलू खान की मौत की शर्त पर नहीं”

“बीफ-गौरक्षक-मॉब लिंचिंग-राजनीति-घृणा” भारत में इस श्रृंखला की पुनरावृत्ति एक साल में कम-से-कम दो बार हो ही जाती है। ये श्रृंखला बेहद भ्रामक है। ये भ्रामक श्रृंखला बेतरतीब तरीके से देश के सभी अखबारों और न्यूज़ चैनलों पर 7-10 दिनों तक गोते खाती रहती है।

इन माध्यमों के द्वारा ये भ्रामक श्रृंखला भारत के अधिकतर घरों तक पहुंच ही जाती है और लोगों के मन-मस्तिष्क में असमंजस की स्थिति पैदा करके उड़ जाती है।

मामला हाइलाइट होने के बाद बेशक पीड़ित को न्याय मिल जाता है लेकिन, इसके साथ सबकुछ सही समझ लिया जाता है और हम उस भ्रम को अपने मस्तिष्क की ज्ञानज्योति रहित अंधेरी कंदराओं में रखकर अपने-अपने दैनिक जीवन में उलझ जाते हैं। तो क्या हमें वाकई पीड़ित को न्याय मिलने के बाद संतुष्ट हो जाना चाहिये?

इस पूरे घटनाक्रम के बाद भी बीफ प्रतिबंधित राज्यों में बीफ की स्मगलिंग पुनः शुरू हो जाती है, इसके चलते गौरक्षक पुनः सक्रीय हो जाते हैं, एक और लिंचिंग बेसब्री से अपनी बारी का इंतज़ार कर रही होती है। इस दौरान गौ तस्करी के शक में कई बार किसी मासूम को ही भीड़ का शिकार बना दिया जाता है। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान राजनीति जमकर अपना माल लूट चुकी होती है और वापस ऐसे ही किसी वोटों के सेल का अधीरता से इंतज़ार कर रही होती है और घृणा लोगों के दिलों में बड़ी गहराई तक उतर चुकी होती है।

फिर वाकई हम न्याय दिलाने में कहां सफल हुए? जो मर गया उसकी मौत को रोकने में कहां सफल हुए? जिसने अपराध कर दिया उसे अपराध करने से रोकने में कहां सफल हुए? हमें किसी एक मामले को उसके अंजाम तक पहुंचाने के बाद संतुष्ट नहीं होना होगा।

हमें भविष्य के रकबर को बचाना होगा, हमें भविष्य के अखलाक को बचाना होगा, हमें भविष्य के पहलू खान को बचाना होगा, तभी वास्तविकता में हम रकबर,अखलाक और पहलू खान को न्याय दिला पाएंगे।

सदियों से भारतीय संस्कृति में गाय को मां माना गया है। “अस्माकं देशे गौ: मातृवत् पूज्या अस्ति” यह पंक्ति हर कोई अपने बचपन से पढ़ते आ रहा है। गाय को मां क्यों माना जाता है यह विषय अलग है और इसकी विवेचना भी वृहद है।
जब किसी व्यक्ति का लगाव किसी पालतू से उसकी मां के रूप में होता है तब स्वाभाविक है कि वह उसे कटते हुए नहीं देख सकता।

यहां पर कुछ चीज़ें स्पष्ट करने की भी ज़रूरत है कि बीफ का अर्थ सिर्फ गौमांस नहीं होता। बीफ दो तरह का होता है: बीफ और काराबीफ। अक्सर बीफ का अर्थ केवल गौमांस से लगाया जाता है। मगर भैंस का मांस, यानी काराबीफ भी भारत समेत कई देशों में केवल ‘बीफ’ के नाम से जाना जाता है।

बीफ के इन दोनों प्रकारों का प्रयोग भारत के 11 राज्यों (भारत प्रशासित कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महराष्ट्र, छत्तीसगढ़) और दो केन्द्र प्रशासित राज्यों (दिल्ली तथा चंडीगढ़) में प्रतिबंधित है।

इन राज्यों में बीफ प्रतिबंधित होने के बावजूद ये गौ-तस्कर पुलिस के हाथ ना लगकर इन गौरक्षकों के हाथ लग जाते हैं और कई बार तो गौ तस्करी के शक में किसी मासूम को पकड़कर मार दिया जाता है। यह राज्य सरकारों एवं पुलिस की बड़ी नाकामी है।

लेकिन, प्रश्न यह है कि गौरक्षक उन्हें पकड़कर स्वयं ही न्याय क्यों करने की कोशिश करते हैं? क्या उन्हें राज्य सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बारे में जानकारी नहीं? ये तो संभव नहीं हो सकता, क्योंकि अगर कोई व्यक्ति अपना इतना समय निकालकर गौरक्षा का कार्य करता है तो उसे उन नियमों के बारे में कुछ तो पता होगा ही। तो क्या ये गौरक्षक शक के आधार पर या वास्तविक तौर पर पकड़े गए तस्करों को पुलिस के हवाले नहीं कर सकते?

कर सकते हैं, बेझिझक कर सकते हैं। लेकिन यहां घृणा आ जाती है। कुंठित राजनीति द्वारा जनित एक समुदाय की दूसरे समुदाय के प्रति घृणा।

ये तथाकथित गौरक्षक राजनीति के चलते घृणा में अंधे हो जाते हैं फिर वे ये नहीं देख पाते कि जिस सरकार से वे संरक्षण की उम्मीद रखते हैं उसी सरकार के शासन में भारत दुनिया का सबसे बड़ा बीफ निर्यातक देश बना हुआ है। वे ये नहीं देख पाते हैं कि जिस घृणित राजनीति की परिणति के रूप में वे हत्यारें बन जाते हैं, वही राजनीति बीफ के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने में पंगु साबित हो रही है। वे ये नहीं देख पाते हैं कि यह राजनीति उनका सिर्फ उपयोग कर रही है और निचोड़ कर फेंक रही है।

ये बात तो स्पष्ट है कि भारत और भारतीय ना तो गाय को कटते हुए देख सकते हैं और ना ही रकबर, अखलाक और पहलू खान को।

तो आइये ना! हम और आप, गौरक्षक और पीड़ित सभी मिलकर गौहत्या पर संपूर्ण देश में पूर्ण प्रतिबंध एवं लिंचिंग पर फास्ट ट्रैक कोर्ट व अत्यंत कड़ी सज़ा के प्रावधान की मांग करें। और किसी और रकबर, अखलाक, पहलू की हत्या ना होने दें और ना ही किसी की आस्था और विश्वास की।

अगर इसमें हम सफल हो जाते हैं तो असली गौरक्षक अपने उद्देश्यों में सफल हो जाएंगे, रकबर, अखलाक और पहलू को सम्पूर्ण न्याय मिल जाएगा और घृणा की राजनीति ने जिस भ्रामक श्रृंखला का निर्माण किया है वह ध्वस्त हो जाएगी।

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