भारत में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। थॉमसन रायटर्स फाउंडेशन ने अपने सर्वे में भारत को महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित मुल्क बताया है। थॉमसन ने ही साल 2011 में सर्वे कराया था, जिसमें भारत महिला सुरक्षा के मामले में चौथे स्थान पर था। मतलब किसी और मामले में भारत में भले ही विकास नहीं हुआ हो, लेकिन इस मामले में जमकर ‘विकास’ हुआ है।
थॉमसन राइट्स फाउंडेसन के सर्वे में भारत की स्थिति गृहयुद्ध झेल रहे अफगानिस्तान और सीरिया से भी बदहाल बताया गया है।
सर्वे आने के तुरंत बाद ही जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने एक ‘शानदार’ पहल करते हुए लड़कियों के हॉस्टल आने का वक्त कम कर दिया। लड़कियों के रात में हॉस्टल लौटने का वक्त 10:30 बजे से 9 बजे कर दिया गया है। पहले तो हॉस्टल में वापस आने का समय रात के 8 बजे हुआ करता था। लड़कियों के आंदोलन करने के बाद 10:30 किया गया था।
हॉस्टल लौटने का समय कम करते हुए जामिया प्रशासन ने ये भी कहा है कि छात्राएं रात में जामिया के ही किसी दूसरे हॉस्टल में नहीं जा सकती हैं।
शुक्रिया जामिया इस बेहद ‘साहसिक’ कदम के लिए आपको हमारा ‘बेहद’ ख्याल है। लेकिन आपसे भी ज़्यादा वो मां-बाप हैं जो अपनी बेटियों को पैदा होने से पहले ही मार देते हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि इस दुनिया में आकर वो महफूज़ नहीं रहेंगी। उन्होंने इस दुनिया को लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं बनाया है।
थॉमसन के सर्वे आने के बाद कुछ लोगों ने उसे गलत बताना शुरू कर दिया। तभी मध्यप्रदेश के मंदसौर में सात साल की बच्ची के साथ बेरहमी से रेप की खबर आई। 7 साल की मासूम बच्ची से बलात्कार ही नहीं किया गया बल्कि उसका गला रेतकर हत्या की भी कोशिश की गई। उसके शरीर पर जगह-जगह दांत से काटा गया। अभी मासूम का इलाज इंदौर में चल रहा है।
इसके बाद भी आप कहते हैं कि सर्वे झूठा है। सरकार को बदनाम करने की कोशिश है तो अखबार पढ़ा कीजिए भ्रम दूर हो जाएगा। इस मुल्क को कूड़ा बना दिया है।
जामिया में लड़कियों के हॉस्टल लौटने का समय कम किए जाने पर कुछ लड़के सहमत हैं। वो कह रहे हैं कि रात नौ बजे के बाद लड़कियों को कौन सा काम होगा। तो मेरे दोस्त, इसी तर्ज़ पर बॉयज हॉस्टल का भी समय निर्धारित कर दिया जाए। आपको भी नौ बजे के बाद कौन सा काम होता है?
दुनिया आखिर कब तक लड़कियों के लिए खतरनाक बनी रहेगी? बेटी को देवी कहते हैं और उसी का बलात्कार करते हैं।लड़कियों को सुरक्षा देने के नाम पर कब तक उनपर पाबंदियों का जाल लगाया जाएगा। अब तो घरों में भी सुरक्षित नहीं लड़कियां। रिकॉर्ड कहता है कि सबसे ज़्यादा हमारे अपने ही दुश्मन हैं। पिता और भाई भी दुराचार करता है।
अब बाहर निकलने का समय आ गया है। इंतज़ार की बेड़ियां तोड़ने का समय गया है। पाबंदी लगाने से बेहतर है आप लड़कियों को बाहर निकले दीजिए।
जब एक लड़की निकलेगी तो निगाहें ज़रूर उठेगी, लेकिन जब हज़ारों लड़कियां निकलेंगी तो उठती निगाहें सहम जाएंगी।
लेखिका अनुराधा बेनिवाल ने अपनी किताब, ‘आज़ादी मेरा ब्रांड’ में लिखा है,
तुम चलोगी तो तुम्हारी बेटी चलेगी और मेरी बेटी भी चलेगी। और जब सब साथ चलेगी तो सब आज़ाद, बेफिक्र और बेपरवाह चलेगी।
अब बेफिक्र चलना होगा। कैफ़ी आज़मी ने भी तो कहा है,
कद्र अब तक तेरी तारीख ने जानी ही नहीं, तुझमें शोले भी हैं बस अश्क-फिशानी ही नहीं