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Jio इंस्टिट्यूट: पूंजीवाद के आगे राजनीति के समर्पण का उदाहरण

मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 6 शिक्षण संस्थानों को ‘उत्कृष्ट संस्थान’ (Institute of Eminence) का दर्जा देने की घोषणा की। इस सूची के आखिरी में जो है वो है JIO INSTITUTE

अम्बानी के द्वारा बनाया जाने वाला यह संस्थान अभी तक ना बना है ना इसके लिए कोई ठोस कार्यनीति मौजूद है, फिर भी सरकार इसे ‘उत्कृष्ट संस्थान’ मान चुकी है।

पूंजीवाद की ऐसी चाटुकारीता बहुत अनोखी नहीं है, पर निश्चित रूप से व्यापक भी नहीं है। जहां आश्चर्य होता है ऐसी बेशर्मी भरी चापलूसी पर, मालिक के प्रति “निष्ठा” पर, वहीं हमें पूंजीवाद के असली चरित्र का भी दर्शन होता है। पूंजीवाद मतलब वर्ग विभाजित समाज, पूंजीपति वर्ग और मज़दूर वर्ग, यानि एक वह है जिसके पास उत्पादन के साधन हैं, दूसरा वह जिसके पास श्रम शक्ति है और जीवन निर्वाह के लिए उसका बेचना अनिवार्य है!

यहां पर, राज्य सत्ता और उसके “कर्णधार” राजनीतिज्ञ, प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी, बड़े न्यायाधीश आदि पूंजी के सेवा में लगे रहते हैं और यहीं से जन्म होता है चाटुकारिता, भ्रष्टाचार और अपराध का। संक्षिप्त में निजी पूंजी के दुर्गुण! पूरी कोशिश होती है इस वर्ग विभाजित समाज में ऊपर के पायदान पर चढ़ने की। निचले पायदान के सर्वहारा तो रोज़ी रोटी में ही ज़िंदगी निकाल देते हैं!

वहीं, पूंजीपति वर्ग चाहे अमेरिका हो या भारत, अपने पसंद के अनुसार देश के लिए प्रतिनिधि चुनकर जनता के सामने पेश करवाती है, ताकि चुनाव के द्वारा जनता अपना “प्रतिनिधि” चुन सके! उसके बाद भारी मात्र में पूंजी के निवेश, मीडिया और सोशल मीडिया, गुंडे, राज्य सत्ता के विभिन्न विभाग के मदद से “लोकप्रिय” हवा बनाई जा सके। वैसे यदि यह दाव असफल होता है तो भी प्रतिद्वंदी दल भी पूंजीवादी खेमे के लिए ही काम करता है। यह तो सर्व विदित है की पूंजीपति दोनों या तीनों खेमों को अनुदान देता है!

तो, साथियों मोदी सरकार का अम्बानी या अदानी के हक में काम करना, उनके बकाये अरबों-खरबों ऋण या कर माफ कर देना, संविधान में कानून बदलकर उनके फायदे के तरीकों को बहाल करना कोई धमाकेदार खबर नहीं है। हां, काँग्रेस छुपकर कराती थी पर भाजपा खुलेआम कर रही हैं और लगता ही नहीं की अम्बानी या अदानी और भारतीय सरकार में कोई दीवार भी है। दोनों एक-दूजे के लिए बने हैं!

और इस सबसे ध्यान हटाने के लिए धर्म, जाति, व्यक्तिवाद, देशवाद का नारा बुलंद हो रहा है! यानि फासीवाद हमारे बीच आ चुका है।
समय कम है, इस बात को, इस आर्थिक, राजनितिक, धार्मिक, सामाजिक परिवर्तन को, लक्षण को पहचानना ज़रूरी है, यह फासीवाद है और इसके खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष ज़रूरी है।

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