तोड़ कर समाज की बंदिशें
इन्हें रसोईघर भूल जाने दो
मत बांधो शादी के बंधन में
इन्हें अभी स्कूल जाने दो
इनके छोटे कोमल हांथों को
चूल्हे की आग में मत जलाओ
ये रोटी सेकने की उम्र नहीं, इनके
छोटे कोमल हांथों को कलम पकडाओ
गर ये प्यारी बच्चियाँ होंगी आजाद
तो खुदा भी ना किसी से नाशाद होगा
जब ये बेटियां बन जाएंगी अफसर
तो जमाने को भी इनपे नाज़ होगा!