कश्मीर और कश्मीरियों को समझने के लिए आपको अपनी इंसानियत की चादर पूरी ओढ़नी पड़ेगी और राष्ट्रवाद के कंबल से आपको बाहर निकलना होगा।
इतिहास, कानून और राजनीति के पहलू में ना जाते हुए इस लेख को एक कश्मीरी की नज़र से आपको कश्मीर से अवगत कराना चाहूंगा। हालिया कश्मीर के दौरे से बहुत कुछ सीखने और परखने का अवसर मिला। इतनी खूबसूरत वादी जिसको अमीर खुसरो ने धरती का स्वर्ग कहा है उसको जिस तरह बदनाम किया गया और किया जा रहा है ये देखकर बड़ी तकलीफ होती है।
किस तरह खौफ का एक मंज़र पैदा किया जाता है, लोगों को हकीकत से दूर रखा जाता है इस दौरे से साफ ज़ाहिर होता है। राष्ट्रवाद के नाम पर कुछ राजनीतिक गुट की रोटी पकती है, नफरत की दाल गलती है पर इस सिलिंडर से कई मासूम कश्मीरियों के घर जल चुके हैं।
जिस तरह मीडिया कश्मीर के बारे में खबर पेश करता है वो एकतरफा है। उसका आइना कश्मीर को एक आतंक, उग्रवाद का क्षेत्र और पाकिस्तान का समर्थक बताने में बीत जाता है। मीडिया की नज़र उन चंद किस्सों पर ही आधारित है जिससे उनको फायदा मिलता है। बहस का आधार मुद्दों पर नहीं बल्कि राष्ट्रवाद और भावनाओं के पहलू को इस तरह छूता है कि आपकी नज़र में कश्मीर और कश्मीरी बुरा दिखने लग जाता है।
मीडिया का दृष्टिकोण भी उसी आम नागरिक की तरह हो जाता है जब वो कश्मीर की बात करता है। उसमें एक खौफ है, राष्ट्रवाद की धारा है। पर वो सच नहीं है जो वो उस तक पहुंचना चाहिए। यह वो सच जो इंसान को इंसान से दूर करता है। मीडिया का आइना सिर्फ अलगाववाद, आतंकवाद, पाकिस्तान की तरफ इशारा करता है जिससे एक आम भारतीय में एक नफरत, आक्रोश और राष्ट्रवाद को और ओर उग्र करना है।
सेना को विशेष दर्जा प्राप्त होने से वहां कई मानवाधिकार हनन हुए हैं और कई महिलाओं के साथ बलात्कार, मासूम बच्चों और इंसानों के कत्ल हुए हैं और इंसाफ मात्र एक भद्दा मज़ाक बनकर रह गया है। एक लोकतांत्रिक देश में सेना को इतनी शक्ति दे देना कि आप उस पर सवाल खड़े नहीं कर सकते ये अपने आप में अन्याय है।
एक कश्मीरी जिसका बचपन अपने गली, मोहल्ले, चौक, बाज़ार के नज़दीक एक बंदूक ताने जवान को देखकर गुज़रा हो तो उसके ज़हन में सेना के लिए क्या मुजसमा बनता होगा ज़रा सोचिए। इसी वजह से वहां के लोगों में आक्रोश है और आज़ादी की मांग उग्र है।
एक कश्मीरी की भी वो ही मांग है जो एक आम आदमी की होती है शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ और अमन। हालांकि कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है और AFSPA होने के चलते यहां के हालात अलग हैं।
जिस तरह एक नज़र पैदा की गई कश्मीरियों के लिए इससे हमारी दूरी और बढ़ी है। जिस तरह इस राजनीतिक मसले को हिन्दू मुस्लिम का रंग दिया और पाकिस्तान समर्थक का एक नक्शा बनाया गया जो कई राजनीतिक गुट के एजेंडे में फिट बैठता है। जिस तरह से कई राजनीतिक गुट चाहे वो पीडीपी हो, नेशनल कॉंग्रेस हो या भाजपा हो इन्होंने राज्य के हालात और बदतर किये हैं। केंद्र सरकार की गलत नीतियों का असर हर युवा, आम कश्मीरी को भुगतना पड़ा है। कश्मीर की राजनीति सिर्फ कश्मीर पर ही असर नहीं डालती परंतु देश के हर हिस्से में कश्मीर को मोहरे की तरह इस्तेमाल किया जाता है।
क्या हमने कभी कश्मीरियों की नज़र से कश्मीर को देखा है? इस भारत-पाकिस्तान की लड़ाई में कश्मीर को मोहरा बना दिया गया है। विभाजन तो कश्मीर की वजह से नहीं हुआ तो इस राष्ट्रवाद की बहस में इन बेचारों को क्यों घसीटा जा रहा है?
लोग बड़े शौक से कश्मीर घूमते हैं, वहां की वादियों का आनंद लेते हैं, प्रकृति को निहारते हैं। अखरोट, बादाम, केसर, सेब खरीदते हैं। पश्मीना और शॉल जैसे खूबसूरत हैंडलूम ले आते हैं और घर वापस आकर उन बढ़िया ज़ायकों का आनंद लेते हुए न्यूज़ चैनल देखकर कश्मीर को गाली देते हैं।
पिछले 10-15 सालों में लगभग कश्मीर में टूरिज़्म, हैंडलूम, डॉयफ्रूट्स जैसे विभाग जो मुख्य स्त्रोत हैं राज्य की कमाई का उनमें काफी गिरावट आई है। एक आम भारतीय के ज़हन में ये बात आराम से फिट कर दी गयी है कि वहां मत जाओ हालात खराब है, आपकी जान को खतरा है, वहां जाओगे तो कुछ हो जाएगा। हालिया दौरे से यह ज़रूर साफ होता है कि असलियत कुछ और ही है। जिस तरह कश्मीर के बाहर कश्मीर को पेश किया गया उसका मकसद सिर्फ एक सच छुपाना है।
रबिन्द्रनाथ ठाकुर की किताब “Nationalism” में राष्ट्रवाद के ज़िक्र को आपके सामने रखना चाहूंगा। वो कहते हैं कि जब जब इंसानियत को राष्ट्रवाद के आइने से देखने की कोशिश की गई तब तब मासूम लोगों की जान गई है। समाज के प्रमुख तबकों की आवाज़ को दबा दिया जाता है और “राष्ट्रहित” और “राष्ट्रवाद” का नया मॉडल तैयार किया जाता है।
आपसे दरख्वास्त है कि कश्मीर घूम कर आइये, प्रकृति का आनंद लीजिये, वहां के लोगों से बात कीजिये, वाज़वानी ज़ायके का लुत्फ उठाइये और कश्मीर के हालात और स्थिति को सवेंदशील होकर पढ़िए, समझिये। आपका अपना सच ढूंढ़िये, आपका अपना अनुभव देखिए, अपने आप से सवाल पूछिए और इंसानियत को इंसानियत के नज़रिए से देखिए ना कि राष्ट्रवाद के नज़रिए से।