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“हमारे यहां बलात्कार पर कानून बनकर मानो शो केस में रख दिए जाते हैं”

देश अब बलात्कारियों का पनाहगाह हो चला है। बलात्कार शब्द जितना घिनौना है यह अब उतना ही आम हो चला है और इसका अनुमान हम इस शब्द के अब कानों में पड़ने पर हमारे क्रोध की नपुसंकता से लगा ही सकते हैं। आज देश का कोई भी प्रदेश, शहर, कसबा, मोहल्ला या गली इससे अनछुए नहीं है। हर सुबह तमाम अखबार ऐसे सैकड़ों बलात्कार की खबरें लाते हैं और हमारी अनदेखी का शिकार हो जाते हैं। हर दिन कोई ना कोई संसकृति, दिव्या, आसिफा, निर्भया बलात्कारियों की दरिंदगी का शिकार होती हैं। और हम बड़ी ही सहजता से उन पर कुछ किलो लानत भेजकर अपने आप को फिलांथ्रोपिस्ट की थपथपी दे देते हैं।

मगर, उस लड़की के घाव ना तो आपके फिलांथ्रोपिस्ट होने से भरेंगें और ना ही आपके फेमिनिज़्म के पेले गये लेक्चर से और उसे आपके मिसोजनिस्ट होने से या आपके “बाॅयज़ मेक मिस्टेक” कह देने से भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।

अक्सर लोगों को कहते सुना होगा कि हम आपकी परेशानी समझ सकते हैं, हम जानते हैं आप पर क्या बीत रही है, पर असल मुद्दा ही यही है कि आप नहीं जानते, (यहां मैं लड़कियों को स्पेसीफाई नहीं कर रही, आप लड़के हैं और शारीरिक शोषण का शिकार हुए हैं तो वह भी आम है, शर्माएं नहीं उससे आपकी मर्दानगी कम नहीं होगी।) जब कोई अनचाहा हाथ शरीर के हिस्सों को महज छू जाता है तब मौत का वह एहसास ऐसा लगता है मानों हज़ारों कीड़े शरीर पर चल गये हों, तो बलात्कार क्या है इसका अनुमान मैं या आप सपने में भी नहीं लगा सकते।

बहरहाल, यह तो बात रही सिचुएशन्श की अब बात आ जाती है बलात्कार पर बने कानूनों की तो देश में रोज़गार के अवसरों से अधिक बलात्कार पर कानून हैं पर उसका अफेक्ट कहीं से कहीं तक दिखाई नहीं देता, अब इन नल्लों को बताये कौन कि कानून बनाकर उनको शो केस में रखने की नहीं होती, उसके इफेक्टिव एग्ज़ीक्यूशन की भी होती है।

बलात्कार अब सिर्फ खबरों तक ही सीमित नहीं है यह हम सबके सर पर मंडराते खतरे की चेतावनी है। और यह बलात्कारी हमारे ही आस-पास रहते हैं, हमें देखते हैं, नुक्कड़ पर भद्दे कमेन्ट्स करते हैं, कभी सरेआम छूकर बाइक का एक्सीलरेटर बढ़ा लेते हैं, ऐसे जब हिम्मत बढ़ जाती है फिर मौका मिलते ही नोच खाते हैं।

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