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हे गौरक्षकों, मेरे नाम पर इंसानी खून बहाना बंद करो, तुम्हारी गौ माता

मैं भूरी, आज जब मैं कचड़े के ढ़ेर में पड़े प्लास्टिक को खाने का प्रयास कर रही थी, तभी मेरी नज़र एक अखबार पर पड़ी। मैंने देखा कि तुम हमारी रक्षा और सुरक्षा को लेकर इतना कर्मठ हो कि तुमने हमारी खातिर अपनी ही प्रजाति के एक अंग की जीवन लीला को समाप्त कर दिया।

भूख से लड़खड़ाते मेरे पांव में मानों बिजली सी कौंध गई, मुझे एहसास हुआ कि चलो कोई तो है जो हमारे लिए मरने-मारने पर उतारू है। हमारी सुरक्षा और सुविधाओं के लिए कर्मठ है, ये सोचकर मैं निकल पड़ी इस तलाश में कि कहीं तुम मिलोगे और मुझे भोजन दोगे, ताकि मैं इस बेस्वाद ज़हरीली प्लास्टिक से निजात पा सकूं।

सुबह से शाम मैंने पूरा शहर छान मारा किन्तु तुम कहीं नहीं मिले। आखिरकार हारकर फिर उसी कचड़े के ढेर पर बैठकर मैं तुम्हारे द्वारा फेंकी गयी हरी-हरी प्लास्टिक को हरी घास समझकर चबाने का प्रयास करने लगी। तभी वहां उजली का आगमन हुआ। मेरा उतरा चेहरा देख उसने मुझसे कारण पूछा तो मैं फफकर रोने लगी, मैंने उसे पूरी कहानी सुनायी लेकिन, उसने मेरी बात सुनने के बाद मुस्कुराते हुए जो कुछ मुझे सुनाया वो और हैरान करने वाला था।

उस दिन मुझे ज्ञात हुआ कि इस देश में मैं और उजली अकेले नहीं जो इस भयावह स्थिति में जीने को मजबूर हैं। पूरे देश में तकरीबन 59 लाख गौ बहनों का कोई नहीं है, अर्थात इतनी गायें जितनी अफगानिस्तान और वियतनाम में पाली भी नहीं जाती उतने हम आवारा घूम रहे हैं। वो भी तब, जब तुम जैसे बेटे मेरी रक्षा के लिए अपनी ही प्रजाति के अंश को समाप्त करने पर तुले हो।

हमारी चरागाहों को भूमाफियाओं ने हड़प लिया है पुत्र कृपया, तुम उसे आज़ाद कराओ। गरीबों की हत्या करने से कुछ हासिल नहीं होगा पुत्र, अपनी मां को उसका हक दिलवाओ। आखिर कब तक हम सड़कों पर प्लास्टिक के भरोसे जीवित रहेंगे, दर-दर की ठोकरें खाते रहेंगे।

सुना है तुम जिसे अपना राष्ट्रपिता मानते हो, वो भी हमारी हत्या के विरोधी थे किन्तु, उन्होंने कभी हिंसा के बल पर हमारी रक्षा को जायज नहीं ठहराया। हमें भी हिंसा नहीं, अपना चारागाह चाहिए। मेरे सर पर हत्या का कलंक मत मढ़ो। मैंने अपने दूध से हर किसी को बिना जाति-धर्म का भेद किये सींचा है अर्थात हर मनुष्य मेरी संतान के सामान है।

मेरे सर पर संतान हत्या का कंलक मत लगने दो। सैकड़ों वर्ष पहले अंग्रज़ों में मेरा इस्तेमाल मेरे ही बच्चों के बीच फूट डालने के लिए किया था। याद करो सन् 1921 का वो नेहरू जी का भाषण जिसमें उन्होंने ऐसी गतिविधियों से हिंदुओं को सतर्क रहने और मुसलमानों को सहयोग करने को कहा था ताकि मेरे दोनों बच्चे हिन्दू और मुसलमानों के मध्य कोई मनमुटाव नहीं आ सके। कसाई तो फिर भी रहम करके एक बार में मेरी इहलीला समाप्त कर देता है, किन्तु तुम देख, जान और समझकर भी इस प्लास्टिक के कचड़े के सहारे मुझे तिलतिल कर मरने के लिए छोड़ देते हो।

मेरे गौरक्षकों मेरी रक्षा करो, मेरे नाम पर संतान हत्या का कंलक ना लगने दो। मैं तो सर्वदा यहीं चाहूंगी, चाहे कल मुझे फिर कचड़े से ही क्यों ना पेट भड़ना पड़े, मेरे सभी बच्चे चाहे वो किसी भी जाति या धर्म का हो आपस में मेल-मिलाप से रहें। मेरे लिए हिंसा नहीं अहिंसा के मार्ग से मेरी रक्षा करें।

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