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“ओ मेरी दिल्ली! हम लड़कियां अब तुमसे डरने लगी हैं”

आज उसे एक ईमेल मिला। उसने उस मेल को एक नहीं, दो नहीं पूरे तीन बार पढ़ा और चहक उठी। दरअसल, उसे एक नामी शहर की प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी का ऑफर मिला था। उसने यह खुशखबरी फोन पर अपने अभिभावकों को दी। अभिभावकों को भी बेटी की इस सफलता पर खुशी हुई, लेकिन जगह का नाम सुनते ही उनकी तरफ से एक अप्रत्याशित सा जवाब मिला, जिसे सुनकर बेटी अवाक रह गई। लेकिन आगे कुछ नहीं बोली, क्यों? क्योंकि वह अपनी खुशियों और अधिकारों के लिए लड़ते-लड़ते थक चुकी थी। उस बेचारी को तो यही नहीं समझ में आ रहा था कि वह अपने लड़की होने पर आंसू बहाए या फिर उस बदनाम शहर में नौकरी मिलने पर?

यह तो थी एक लड़की की छोटी-सी कहानी, जिसे सिर्फ मैं जानती हूं। ऐसी ही ना जानें कितनी लड़कियां होंगी, जिनकी उड़ान सिर्फ एक बदनाम शहर की वजह से रोक दी जाती है। मैं बात कर रही हूं एक ऐसे शहर की, जहां साल दर साल रेप की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। आए दिन इस शहर में कोई ना कोई जघन्य अपराध होते ही रहते हैं। देश के इतिहास में दर्ज सबसे ज़्यादा शर्मनाक निर्भया कांड भी इसी शहर की राजधानी में ही हुआ था।

इस देश की राजधानी का सच ये है कि यहां औसतन दुष्कर्म की 6 घटनाएं रोज़ घट रही हैं। 2012 में राजधानी में, जहां 706 महिलाओं के साथ दुष्कर्म की भयावह घटनाएं घटी थीं, 2016 में यही आंकड़ा 2,155 के शर्मनाक स्तर तक जा पहुंचा था। राजधानी दिल्ली में महिलाओं के लिए स्थिति कितनी असहज है, इसका अंदाज़ा तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां रोज़ 9 महिलाओं का अपहरण हो जाता है।

ये तो थी आंकड़ों की बात, लेकिन उन घटनाओं का क्या, जो पुलिस के सामने ही नहीं आ पाती। ऐसे मामलों की संख्या दर्ज हो रहें, अपराध की तुलना में बहुत ज़्यादा होंगी। ऐसे माहौल में वाजिब है कि मां-बाप अपनी बच्चियों को वहां पढ़ाई या जॉब के लिए भेजने से ही डरते हैं।

क्या सच में ईंट, पत्थर, हवा, पानी से बना कोई शहर इतना खतरनाक हो सकता है कि मन में हर बात को लेकर खौफ पैदा हो जाए। पढ़ाई के लिए कॉलेजों की और जॉब के लिए कंपनियों की अपार संभावनाओं के होते हुए भी लोग इस शहर में अपनी बच्चियों को भेजने से पहले इतना क्यों सोचते हैं?

इसका एक मात्र उपाय यही है कि प्रतिरोध की मोमबत्ती मार्च इंडिया गेट पर नहीं, हमको और समाज को अपने अंदर जलानी होगी। जब तक मोमबत्तियां भीतर भी कुछ नहीं जलाती तब तक रौशनी नहीं, धुआं उगलती रहेगी। भारत में महिलाओं से जुड़े तमाम सवालों की हकीकतों से आंखें चुराकर हम कहीं नहीं पहुंच सकेंगे। अगर शहर बदनाम है तो उससे भागने की बजाए उसका सामना करने की हिम्मत होनी चाहिए ।

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