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कॉमेडी के नाम पर मां-बहन की गालियां देना फूहड़ता है

कॉमेडी किसी भी व्यक्ति के अच्छे स्वभाव का प्रदर्शन करती है। यदि कोई व्यक्ति खुशमिजाज़ है एवं खुद के साथ-साथ औरों की भी हंसाता है तो वह सबका प्यार पाता है, उससे सभी प्रेम करते हैं। हास्य जितना मनोरंजक होता है उतना ही स्वास्थ्यवर्धक भी। हास्य द्वारा स्वास्थ्य को होने वाले लाभों से लगभग हर व्यक्ति परिचित है।

लेकिन हास्य की भी अपनी एक शालीनता होती है, मर्यादा होती है। व्यंग्य, हास्य का ही रूप है। व्यंग्य में बड़ी ही तीक्ष्णता के साथ विभिन्न लोगों एवं मुद्दों पर कटाक्ष किया जाता है। लेकिन, व्यंग्य जितना तीखा होता है उतना ही शालीन भी।

इन दिनों सोशल मीडिया पर कॉमेडी के नाम पर मां-बहन की गालियां देने का फैशन चल रहा है। जिस वीडियो में जितनी अधिक गालियां वो वीडियो उतना ही अधिक फनी, उतने ही अधिक व्यूज़ और उतने ही अधिक लाइक्स। सोशल मीडिया साइट्स पर हर दूसरे मीम में बी* या एम* टाइप की गालियां दिखती हैं।

यहां पर लड़कों से समकक्ष लड़कियां भी इन गलियों का प्रयोग जमकर करती हैं। उनका एक तर्क मुझे बड़ा ही बचकाना लगता है। वो कहती हैं, “अगर लड़के गाली दे सकते हैं, तो लड़कियां क्यों नहीं?” मेरा उनसे सिर्फ एक ही प्रश्न है कि गाली देना ओलंपिक में पदक जीतने की रेस है क्या? इन गालियों का विरोध करने की बजाय लड़कियां इन्हें अपना हक समझती हैं।

दरअसल, इस फूहड़ कॉमेडी ने फैशन के नाम पर परम अंधत्व को प्राप्त हो चुकी एक भीड़ तैयार की है। जो स्त्री एवं समाज के अन्य वर्गों के मान-अपमान का निर्धारण ही नहीं कर पा रही है।

अगर यह कहूं कि स्त्री को गाली देने वाली और उस गाली पर हंसने वाली यह वही मानसिकता है जो किसी बलात्कारी की होती है तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। एक बलात्कारी अपने दुष्कर्म से स्त्री का बलात्कार करता है वहीं ये छद्म मॉडर्न लोग अपने शब्दों से सम्पूर्ण स्त्री जाति का बलात्कार करते हैं।

अचरज तो तब होती है जब ये लोग किसी बलात्कार की घटना पर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिये स्त्री जाति के प्रति अपनी ढोंगी संवेदना व्यक्त करते हैं। यह तो ऐसा ही है जैसे एक बलात्कारी खुद को पाक-साफ बताते हुए दूसरे बलात्कारी को सज़ा देने की मांग करे।

इनसे इतर स्टैंड अप कॉमेडी में भी आजकल फूहड़ता की कोई कमी नहीं है। देश के नेताओं और उनके द्वारा की जाने वाली राजनीति पर तो कटाक्ष ठीक है लेकिन, जब स्टैंड अप कॉमेडियन देश के वृद्धजनों का मज़ाक बनाते हैं, गरीबों का मज़ाक बनाते हैं, पिछड़े राज्य और उनमें रहने वाले लोगों का मज़ाक बनाते हैं, लोगों की सांस्कृतिक भावनाओं का मज़ाक बनाते हैं, बड़े महानगर में खड़े होकर देश के अन्य छोटे शहरों का मज़ाक बनाते हैं, विभिन्न राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित महान लोगों का मज़ाक बनाते हैं तब वे कॉमेडी नहीं अपमान कर रहे होते हैं। वे देश में क्षेत्रवाद का ज़हर घोल रहे होते हैं। वे देश के लोगों में आत्म निर्णय लेने की शक्ति को फूहड़ कॉमेडी से क्षीण कर रहे होते हैं।

इन सबके बचाव में वे यह तर्क देते हैं कि अगर आपको ये सब नहीं पसंद तो मत देखिये। आप देखने के लिए बाध्य नहीं हैं। अरे साहब! आप कॉमेडी के नाम पर सार्वजानिक तौर पर (इनकी एक-एक वीडियो पर लाखों व्यूज़ आते हैं) किसी के आत्म सम्मान की नृशंस हत्या कर दें, आप कॉमेडी के नाम पर देश की वयोवृद्ध आबादी का घोर अपमान कर दें, आप कॉमेडी के नाम पर सार्वजानिक तौर पर स्त्री जाति का अपने शब्दों से बलात्कार कर दें, अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर देश में क्षेत्रवाद का ज़हर घोल दें और जब आपकी कोई आलोचना करें तब आप उसकी ही अभिव्यक्ति की आज़ादी की हत्या करते हुए उसे अपने वीडियोज़ से दूर रहने की सलाह दे डालें। तो मेहरबान, ज़रूरत खुद के गिरेबान में झांकने की है।

नेम और फेम कमाने की लालसा में आप कहीं खुद का, खुद के समाज का और खुद के देश का कोई अहित तो नहीं कर रहे हैं। इस बात पर स्वचिन्तन की ज़रूरत है आपको।

बाकी मॉडर्निटी के नाम पर परोसी जा रही फूहड़ कॉमेडी की समाज ही पहचान करे और सामूहिक तौर पर नकारे तो बेहतर है। अगर इनकी इस फूहड़ कॉमेडी को भाव नहीं मिलेगा तो ये फूहड़ कॉमेडी अपने आप ही कहीं कब्र में दफ्न हो जायेगी।

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