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“बेटा कॉन्स्टेबल है, 8 लाख दहेज मिल रहा है, थोड़ा और दाम बढ़े तो शादी कर दूं”

सामान्यतः यूपी, बिहार में जब बच्चों की सरकारी नौकरी लग जाती है तो उनके मां-बाप और नज़दीकी परिजनों की बात, आवाज़ और बॉडी लैंग्वेज देखते ही बनती है। वो वीवीआईपी हो जाते हैं और उनमें एक ऐरोगेंस देखते बनता है।

मेरे गांव में एक लड़का कॉन्स्टेबल के लिए सेलेक्ट हुआ है, और शादी के लिए लड़की वालों की भीड़ लगी हुई है।

इस यात्रा के दौरान मैंने उसके पिता से पूछा, “इस साल शादी होगी ना?” जिसपर उन्होंने जवाब दिया, “क्या बताएं, इतना लोग आ रहा है कि हम परेशान हो गए हैं। दुआर पर धक्का लगा हुआ है। खाली चाय-पानी ही पिला-पिलाकर लगता है गरीब हो जाएंगे।”

मैंने कहा, “कर क्यों नहीं देते?” जवाब था, “अभी देखते हैं रेट कहां तक जाता है? आठ लाख और एक पल्सर तक पहुंच चुका है। पर अभी और बढ़ेगा।”

मैं- “लड़की क्या करती है?”

लड़के के पिता- “बारहवीं में पढ़ती है।”

मैं- “कम नहीं है? कम-से-कम BA तो हो?”

लड़के के पिता- “अरे महाराज, जितनी पढ़ी होगी, उतना ही दिमाग खराब रहेगा। कम पढ़ा लिखा ही ठीक है। चिट्ठी पत्री भर ठीक है। हमें कौन सी नौकरी करवानी है।”

मैं-“नौकरी में क्या हर्ज़ है?”

लड़के के पिता- “अरे महाराज, लड़की कमाएगी तो किसी को पूछेगी? दिमाग हमेशा खराब रहेगा। कंट्रोल में नहीं रहेगी।”

मैं- “देखने में कैसी है?”

लड़के के पिता- “ठीके ठाक है। हमें कौन सा सिनेमा में काम कराना है? ज़्यादा सुंदर रहेगी तो दिमाग भी खराब रहेगा। रेट सही मिले तो बाकी सब उन्नीस- बीस चल जाएगा।”

मैंने पूरे वार्तालाप के दौरान पाया कि उस व्यक्ति के विचारों में कितनी स्पष्टता थी, कोई संशय नहीं। बस लड़की ऐसी चाहिए जिसका “दिमाग खराब” ना हो और पैसा जितना अधिक हो सके मिल जाए।

ऐसा ही लड़की वाले के मन में भी होता है। लड़का सरकारी नौकरी में है तो परिवार, खानदान, चरित्र, कुछ भी देखने की ज़रूरत नहीं।

आप सोचते होंगे, दहेज गैर कानूनी होने के बाद भी समाप्त क्यों नहीं होता?

समाजशास्त्र की भाषा में इसे “VICTIM LESS CRIME” कहा जाता है। अर्थात इस अपराध में कोई पीड़ित नहीं होता। मियां बीबी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी वाला मामला है। जब दोनों पक्ष अपनी इच्छा से धन का आदान प्रदान कर रहे हैं, तो कानून क्या कर सकता है? शिक्षा और जागरूकता ही अंतिम उपाय है।

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