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वाजपेयी को पोस्टर तक से हटाने वाली BJP अब अस्थि से वोट बैंक बनाना चाह रही है

15 अगस्त की रात करीब 8 बजे की बात है, सर ने केबिन में बुलाया और कहा कि चन्द्रकान्त अटल जी पर एक पैकेज लिख लो,  उनकी कुछ कविताएं, उनके भाषण डाउनलोड कर लो, एक सेगमेंट तैयार रखो, पैकेज बनाकर मैं घर आ गया। बिस्तर पर कई बार करवटें बदली, अगले दिन मेरा वीक ऑफ था। दिन भर टीवी के सामने बैठा रहा, लाइव कवरेज चल रही थी, आखिरकार वो बुरी खबर आई, जिसे कोई नहीं सुनना चाहता था। अटल जी दुनिया को अलविदा कह चुके थे। लोगों की आंखों में आंसू थे। अटल जी की अंतिम यात्रा निकली। दिल्ली की सड़कों पर जनसैलाब आ गया। उसके बाद बीजेपी ने एक ऐलान किया कि अटल जी के अस्थि कलश बीजेपी शासित हर राज्य में जाएंगे। हरिद्वार में सबसे पहले कलश प्रवाहित किया गया, फिर तो लगभग हर ज़िले में अस्थि कलश यात्रा निकाली जा रही है।

अटल जी की स्मृतियों को सहेजना चाहिए, वो महामानव हैं लेकिन मुझे आपत्ति है बीजेपी के तरीके से। वो बीजेपी जिसने अटल जी को अपने पोस्टरों से गायब कर दिया था, जिसके लिए अटल विमर्श का विषय ही नहीं रह गए थे, वो बीजेपी महज़ सियासी फायदों के लिए अटल जी के नाम को इस्तेमाल कर रही है।

असल में बीजेपी अटल जी के नाम से भावुक हो जाने वाली जनता का वोट 2019 में हासिल करना चाहती है। सम्मान देने का ये कौन सा तरीका है कि जब लखनऊ में झूलेलाल वाटिका में अटल जी के लिए श्रद्धांजलि सभा हो रही थी, तो अटल जी की विशेष कृपा से सांसद और अटल जी की ही वजह से राज्यपाल बने लालजी टंडन, अटल जी की ही कृपा से सरकार चला पाने वाले मुलायम सिंह यादव, अटल जी की सरकार में पेट्रोलियम मंत्री रहे और वर्तमान में यूपी के राज्यपाल राम नाईक, कल्बे जवाद जूते और सैंडिल पहनकर अटल जी को श्रद्धांजलि दे रहे थे।

ये है आपके सम्मान देने का तरीका? अस्थि कलश यात्राओं में नारेबाज़ी हो रही है, शहर के शहर होर्डिंगों से पाट दिए गए हैं, कई छुटभैय्ये खुद को अटल का सबसे बड़ा अनुयायी बता रहे हैं। अपनी-अपनी तस्वीरें दिखाने की चेहरा चमकाने की होड़ है। जहां दुख होता है वहां सादगी होती है, समारोह नहीं होता। मेरा दर्द ये है कि ब्रांडिग करने में माहिर लोगों ने मौत को भी मेगा इवेन्ट बना दिया। तमाशा बना दिया। छत्तीसगढ़ से सामने आया वीडियो सबने देखा, क्या ये है श्रद्धांजलि? अटल जी पोस्टर बैनर वाले नेता नहीं थे। उन्होंने प्राण प्रण से बीजेपी को खड़ा किया था।

अटल जी के नाम से पार्क बनाइए, रोड का नाम रखिए, यूनिवर्सिटीज़ का नाम रखिए लेकिन एक शरीर की अस्थियों के इतने टुकड़े करके अलग-अलग नदियों में प्रवाहित करके आप साबित क्या करना चाहते हैं?

माफ कीजिएगा आप नदियां भी उतनी साफ नहीं कर पाए, जितने साफ दिल के इंसान को आप नदियों में प्रवाहित कर रहे हैं। अटल जी इन यात्राओं को मोहताज नहीं हैं। लोग उन्हें अपने दिल में रखते हैं, वो हिन्दुस्तान की सियासत के पितृ पुरुष हैं।

अटल जी का मेरे व्यक्तिगत जीवन पर प्रभाव

मैं उन्नाव की धरती से आता हूं, जहां प्रधान के चुनाव से लेकर सांसद के चुनाव तक की चर्चा हर चौक चौराहे, हर गली मोहल्ले में होती है। ये वो उन्नाव है जिसने मुख्यमंत्री भी दिए, राज्यपाल भी दिए, केन्द्रीय मंत्री भी दिए। ये वो उन्नाव है जिसने निराला भी दिए, सुमन भी दिए, तो हसरत मोहानी भी दिए।

कभी ये नहीं पता चला कि उन्नाव सिर्फ किसी एक की जागीर हो, चाहे वो बात सियासत की हो, या साहित्य की। गंगा जमुनी तहज़ीब वाला ये ज़िला संस्कारों को सहेजे हुए है।

मैंने भी 1992 में उन्नाव की धरती पर जन्म लिया। ये वो दौर था जब सियासत दो धड़ों में बंट चुकी थी। घर का माहौल शुरू से ही सियासी था। उम्र 5 या 6 साल के करीब रही होगी। मुझे नहीं पता था कि बीजेपी कौन है, कॉंग्रेस कौन है? लेकिन हां बचपन में एक नारा सुना था, जो उन दिनों गलियों में गूंजा करता था। सड़कों पर जिसका शंखनाद होता था, “राज तिलक की करो तैयारी, आ रहे हैं अटल बिहारी”

मैंने बहुत बाद में जाना कि अटल बिहारी कौन हैं। अटल जी से मेरे बालमन में पहला प्यार इसलिए थे क्योंकि वो मुझे अपने बीच के लगते थे, उनके नाम के साथ वाजपेयी जुड़ा था और मेरे मोहल्ले में वाजपेयी चाचा की मिठाई की दुकान थी।

मुझे लगता था ये भी वाजपेयी वो भी वाजपेयी। ये सारी बातें बालमन से जुड़ी हुई थीं। इनमें कोई लॉजिक, कोई तर्क नहीं था। चौथी-पांचवीं क्लास में जब आया तो अक्सर पापा के मुंह से सुना करता था, अटल बिहारी ने ये किया, अटल बिहारी ने वो किया। फिर टीवी पर आने वाला वो एड, “स्कूल चले हम”, इन सब चीज़ों ने मुझे अटल बिहारी वाजपेयी के काफी करीब ला दिया।

मैंने बहुत कम उम्र में मुलायम सिंह को पास से देखा है, कल्याण सिंह को देखा है, बचपन में ही मायावती की रैली को देखा है। मैंने आपको बताया कि सियासी माहौल बचपन से ही मिला है, पापा ने कभी स्कूल के बारे में नहीं पूछा लेकिन ये ज़रूर बताया कि उन्नाव में जिया उर रहमान अंसारी थे, उमा शंकर दीक्षित थे, विश्वंभर दयाल त्रिपाठी थे।

हृदय नारायण दीक्षित का पहला लेख मैंने दैनिक जागरण में छठी क्लास में रहते हुए पढ़ा था। जैसे-जैसे बड़ा हुआ, यूपी में मायावती की सरकार देखी, अखिलेश यादव की सरकार देखी। कभी नहीं सोचा था कि पत्रकारिता करूंगा। हां, स्कूल के दिनों में भाषण बहुत दिए थे, अपने ज़्यादातर भाषणों में मैं कहा करता था कि मैं आपको अटल जी की 4 पंक्तियां सुनाना चाहता हूं-

झील पर बादल बरसता है मेरे देश में,

खेत पानी को तरसता है मेरे देश में,

पागलों और दीवानों को छोड़कर

कौन हंसता है मेरे देश में

पापा अक्सर बताते थे कि मैंने अटल जी को करीब से देखा है, उनके भाषण सुने हैं और मेरे मन में हमेशा ये रहता कि एक दिन अटल जी ज़रूर ठीक होंगे और लखनऊ आएंगे। मुझे भी उन्हें देखने का मौका मिलेगा लेकिन ये मेरा और मेरी पीढ़ी के सभी लोगों का दुर्भाग्य है कि अटल जी हमारे बीच नहीं हैं।

अटल जी की आत्मा आज भी हिन्दुस्तान में है। लखनऊ में है, कानपुर में है, बलरामपुर में है, मथुरा में है। जहां जहां वो गए वहां है। मेरे दिल में है, सबके दिल में है। अटल जी मेरी स्मृतियों में हमेशा रहेंगे। मैं हमेशा उनसे प्रेरित होता रहूंगा, उन्हें सुनता रहूंगा।

मोदी जी, आप अंतिम यात्रा में पैदल चले थे। आपके लिए उस दिन सम्मान बढ़ गया था लेकिन मृत्यु को इवेंट में तब्दील करके आप मेरी नज़रों में फिर वहीं आ गए जहां थे। अटल जी को हृदय की गहराइयों से नमन।

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