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खत्म होती जिम्मेवारियां

 

                  खत्म होती जिम्मेवारियां
हम सभी एक परिवार मे रहते है।एक अच्छे परिवार की बात करे तो उसमे हर व्यकित को कुछ न कुछ जिम्मेवारी मिली होती है और  वह  उसे अच्छे ढंग से पुरा भी करने की कोशिश करते हैं।लेकिन ऐसे भी पुरूष व महिलाएं हैं जो अपनी जिम्ममेदारियो से पल्ला झाड लेते हैं अब मै  बात उन परिवारो की करना चाहता हूं जो  समाज मे कहने को तो परिवार है पर लेकिन जिम्मेदारियो का  नाम आते से ही उस परिवार के लोग आना कानी करना  शुरू कर देते हैं।
ऐसे ही हमारे मे से कुछ महिलाएं व पुरूष समाज मे व अपने घरो मे करते हैं।हमारा देश भी हम सभी का एक परिवार ही है।अगर बात की जाए 15अगस्त या 26जनवरी की लोग दो  तीन दिन पहले वाट्स एप्प,फेसबुक  पर मैसेज करना शुरु कर देते हैं फिर दो दिन बात वह सारी देशभक्ती  खत्म सी हो जाती है अर्थात  उस देश भक्ति का पता ही नही चलता कि वह कहां छुपा दी गयी है इस दौरान भी लोग एक दुसरे की टांग खिचाई करना ,मार पिटाई व लूट पाट करना अपनी इज्जत सी मानते हैं।
बात 15अगस्त की है मैने एक स्कूल मे विजिट किया।स्कूल मे मैने जैसे एंट्री की तभी बच्चो ने मुझे देख लिया वे सभी बहुत खुश हुए।
सभी बच्चे लाईनो मे बैठे हुए थे।थोडी  देर बाद  15 अगस्त का कार्यकर्म शुरू हुआ।इस कार्यकर्म मे बच्चो ने काफी अच्छे तरीके से अपनी प्रस्तुती दी।जहां पर बच्चे बैठे थे उसके समीप ही गांव के कुछ लडके आपस मे लडाई झगडा कर रहे थे।लडाई से  पता चला कि लडाई मे स्कूल के भी बच्चे शामिल थे।पर स्कूल के सभी अध्यापक व अध्यापिकाएं सभी अपनी अपनी कुर्सीयो पर से उठने को तैयार ही नही थे।हर कोई बस कुर्सी  जहा खाली मिली तो बस वही बैठकर रह गये।जिम्मेवारी की बात आई तो एक दुसरे को कह रहे थे कि ये तेरी जिम्मेवारी दी।ये स्कूल ही बाते नही है  ब्लकि एक परिवार समाज की कडवी सच्चाई है कि जब बात जिम्मेवारी की आती है तो जिम्मेवारी तो सभी ले लेते है पर जब उस जिम्मेवारी को निभाने की बात आती है तो लोग उस  जिम्मेदारी को  एक दुसरे के ऊपर डाल देते है।हमे एक दुसरे के ऊपर डालने की बजाय सभी को चाहिए कि हर व्यकित जिम्मेदारी को डयूटी समझकर निभाए व अच्छे से उसका पालन करें।तभी हमारा देश व समाज तरक्की करेगा।
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