साल 2014 हमेशा भारतीय समाज के बदलने के साल के रूप में याद किया जाएगा। क्योंकि यही वह समय था जब भारत में एक सरकार के बदलने के साथ-साथ कई सारी चीजें एकदम से बदलीं। ऐसा नहीं था कि इन सारे बदलावों के पीछे सरकार की ही भूमिका थी,बल्कि कई सारे बदलाव परिस्थितिजन्य थे और वे स्वतः हुए।
खैर, जिस बड़े बदलाव की मैं यहां चर्चा करूंगा वो आम जन मानस की इतिहास में रुचि बढ़ जाना है।ध्यान देने योग्य बात यह है कि यहाँ सिर्फ रूचि ही नहीं बढ़ी बल्कि इतिहास की अलग-अलग व्याख्या अपने-अपने तरीके से देने का रिवाज़ चल पड़ा है इन कुछ सालों में।
कुछ उदहारण आप जानते भी होंगे,जैसे कि इस बात पर इतिहास को बहुत कुरेदा गया कि मैसूर का राजा टीपू सुल्तान राष्ट्रवादी था या कट्टर इस्लामी विचारधारा को मानने वाला था।एक बहस यह भी चली थी कि अकबर रोड का नाम बदल कर महाराणा प्रताप रोड कर दिया जाए चूँकि कुछ लोगों के अनुसार अकबर एक लुटेरा था और महाराणा प्रताप एक राष्ट्रवादी थे।ऐसे ही कई और परस्पर विरोधाभासी मुद्दों का स्मरण आपको हो रहा होगा।
इन मुद्दों को उठाने वालों के साथ दिक्कत यह है कि वे इतिहास को जानना तो चाहते हैं परंतु इतिहास को पढ़ने और समझने की क्या शर्त होती है,इससे अनभिज्ञ रहते हैं। दरअसल इतिहास को पढ़ते समय मन पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होना चाहिए।साथ ही ऐतिहासिक घटनाओं और संघटनाओं को तर्क की कसौटी पर तौलना चाहिए। इतिहास लेखन के क्रम में विभिन्न इतिहासकारों के घटनाओं के संबंध में अवलोकनों को जानने का प्रयास करना चाहिए।ऐसा करने पर आप पाएंगे कि हर ऐतिहासिक घटना का पूर्ण निष्कर्ष नहीं निकला जा सका है।कहने का अर्थ है ये विद्वान लोग भी कई ऐतिहासिक तथ्यों की सटीक विवेचना करने से बचते हैं।ऐसा इसलिए है क्योंकि वे जानते हैं कि एक बीत चुकी घटना की सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध कर पाना लगभग असंभव है।आप किसी भी इतिहासकार की कोई भी किताब पढ़ लीजिए,आपको ज़्यादातर बातें सिर्फ पाठ्यक्रम से संबंधित ही मिलेंगी।किवदंतियों,कहानियों और दूसरी कई गैर-महत्वपूर्ण चीजों का इतिहास लेखन से कोई वास्ता नहीं है।मसलन,एक तथ्य यह है कि अवध के नवाब वाज़िद अली शाह एक कुशल नर्तक थे।अब इस जानकारी का इतिहास के निर्धारण में भला क्या काम? एक किवदंती सम्राट अशोक के बारे में भी है कि अशोक के कुरूप होने के चलते उसका पिता बिंदुसार उसे राजा बनाना नहीं चाहता था।अब ये कितना सत्य है,यह नहीं मालूम,परंतु इतना अवश्य सत्य है कि अशोक से सम्बंधित अभी भी कई जानकारियां हमसे ओझल हैं,जिनके बारे में कोई भी दावा नहीं किया जा सकता।
परंतु मैं हमारी जनता से इतिहास से विमुख होने को नहीं कह रहा हूं।सभी लोग बेशक इतिहास को जानें परंतु ऐतिहासिक संदर्भों की सुविधानुसार व्याख्या ना करें,क्योंकि जो बातें बीत चुकी हैं वो आपके बोलने से बदल नहीं जाएंगी,बल्कि नए विवाद जन्म लेंगे।लोग इतिहास को सिर्फ जानकारी के लिए निरपेक्ष भाव से पढ़ेंगे तो उनके अंदर एक इतिहास बोध पैदा होगा जो भविष्य के समाज के निर्माण में सहायक होगा।विदित हो कि अमेरिका और चीन जैसे देशों में लोग अपने देश के गौरवशाली अतीत से परिचित रहते हुए अपने उद्यम में लगे हुए हैं और यह कोई बुरी बात नहीं है।